आस्था, संस्कृति व परंपरा का मिलन है नंदा देवी महोत्सव, नैनीताल समेत अल्मोड़ा और हल्द्वानी में महोत्सव का आयोजन
सरोवर नगरी नैनीताल 28 अगस्त से भक्ति, संस्कृति और परंपरा की अनुपम छटा से सराबोर होगी। इस दिन से कुमाऊं अंचल का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व अटूट धार्मिक आस्था का उत्सव नंदा देवी महोत्सव आरंभ होगा, जो पांच सितंबर तक चलेगा। यह महोत्सव सदियों से क्षेत्रीय संस्कृति, लोक कला, रीति‑रिवाजों और सामूहिक श्रद्धा का परिचायक है। इस महोत्सव की नींव 16वीं शताब्दी में राजा कल्याण चंद के शासनकाल में रखी गई थी। उन्होंने अपनी बहन नंदा देवी की स्मृति में यह पर्व आरंभ किया था। वर्ष 1902 में अल्मोड़ा के मोतीराम साह ने नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव के भव्य आयोजन की शुरुआत की थी। 1926 से श्रीराम सेवक सभा ने इस महोत्सव की जिम्मेदारी ले ली, और तब से लगातार आयोजन कर रही है। यह धार्मिक महोत्सव देवी नंदा और सुनंदा को समर्पित है।
महोत्सव की शुरुआत आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से कदली वृक्ष लाने के साथ होती। राम सेवक सभा का एक दल श्रद्धालुओं के साथ कदली (केले का पेड़) लेने जाता है, अगले दिन कदली वृक्ष को नगर भ्रमण कराया जाता है, फिर कदली वृक्षों से नंदा व सुनंदा की मूर्तियां तैयार की जाती हैं। यह एक पारंपरिक और पवित्र प्रक्रिया है। मूर्ति निर्माण के बाद नंदाष्टमी के दिन मूर्तियों को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा जाता है।
मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। नंदा देवी महोत्सव नैनीताल के नयना देवी मंदिर परिसर में मनाया जाता है। मां नंदा देवी और सुनंदा देवी कुमाऊं क्षेत्र की कुलदेवी मानी जाती हैं। महोत्सव के अंतिम दिन मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों को शहर में शोभायात्रा निकाली जाती हैं। नगर भ्रमण के बाद मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। यह महोत्सव कुमाऊं की संस्कृति, परंपरा और एकता का प्रतीक है।
झोड़ा, चांचरी व भगनौल लोकगीत व छोलिया नृत्य
महोत्सव में स्थानीय कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है। जिसमें झोड़ा, चांचरी व भगनौल आदि लोकगीत व छोलिया नृत्य आयोजित किए जाते हैं। इसमें कुमाऊं के कलाकार भाग लेते हैं। यह महोत्सव नैनीताल के अलावा अल्मोड़ा, हल्द्वानी, बिन्दुखत्ता, चंपावत मुनस्यारी रानीखेत व भवाली समेत अन्य जगहों पर भी मनाया जाता है। महोत्सव के दौरान धार्मिक अनुष्ठान पंच आरती, कन्या पूजन, हवन और यज्ञ नयना देवी मंदिर परिसर में आयोजित किए जाते हैं। महोत्सव में इको फ्रेंडली वस्तुओं और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। लेखक - मुकेश जोशी, मंटू, पूर्व अध्यक्ष, श्रीराम सेवक सभा, नैनीताल।
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