पति का गुजारा भत्ता देने का दायित्व खत्म नहीं होगा: हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक मामले में स्पष्ट किया कि तलाक की कार्यवाही पर रोक लगने या उसके अपीलीय/पुनरीक्षण स्तर पर लंबित रहने के बावजूद हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पति का पत्नी को भरण-पोषण देने का दायित्व समाप्त नहीं होता।
भले ही अभियोजन के अभाव में कार्यवाही खारिज कर दी गई हो और उसकी बहाली लंबित हो, तब भी आदेश प्रभावी रहेगा, जब तक उसे वापस नहीं लिया जाता या रद्द नहीं किया जाता। उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने अंकित सुमन की याचिका खारिज करते हुए पारित किया, जिसने वर्ष 2018 में तलाक की अर्जी दाखिल की थी।
पत्नी ने धारा 24 के तहत भरण-पोषण की मांग की, जिसे परिवार न्यायालय, पीलीभीत द्वारा खारिज कर दिया गया था।हालांकि पत्नी की अपील पर हाईकोर्ट ने नवंबर 2021 में आवेदन को अनुमति देते हुए पत्नी को दस हजार रुपए प्रति माह और नाबालिग बेटी को भी समान बकाया राशि और मुकदमे की लागत के लिए तीस हजार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसे पति ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी तो आदेश को संशोधित कर पत्नी को दस हजार प्रतिमाह और बेटी को पांच हजार रुपए प्रतिमाह का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। जब राशि का भुगतान नहीं किया गया तो पत्नी ने निष्पादन का मामला दाखिल किया। इसके बाद सितंबर 2024 में पति के विरुद्ध वसूली वारंट जारी कर परिवार न्यायालय द्वारा याची के विरुद्ध वसूली आदेश पारित किया गया।
उपरोक्त आदेश को चुनौती देते हुए याची ने वर्तमान याचिका में कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि अधिनियम, 1955 की धारा 24 के अनुसार भरण- पोषण केवल कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ही दिया जा सकता है, परंतु हाईकोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि केवल कार्यवाही पर रोक लगने से पति की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। भरण-पोषण के आदेश को न तो वापस लिया गया है और न ही उसे रद्द किया गया है, इसलिए आदेश के अनुसार पति का भुगतान करने का दायित्व जारी है।
