मीता! पंचलैट वालेः गोधन और मुनरी की प्रेमकथा

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Published By Anjali Singh
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असमानता, विपन्नता और कमतर होने से उपजे एहसास को कम करने का सफल प्रयास जब अपने चरम पर जाता है तब उपजती है कहानी ‘पंचलाइट’ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखी गई कालजयी कहानी को नई नजर से मंच पर लाने का प्रयास निर्देशक लव तोमर और उनकी टीम ने किया है। नाटक का नाम- “मीता! पंचलैट वाले”। तीसरी कसम कहानी से महुआ घटवारन का प्रसंग भी कथा का हिस्सा है। यह अपने होने का सिंबॉलिज्म गोधन और मुनरी की प्रेमकथा में खोजता है, लेकिन सफल प्रेम के संदर्भ में। रचनात्मक स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए नाटक में कुछ घटनाएं, चरित्र और भावों का प्रयोग किया गया है, जो मूल कहानियों का हिस्सा नहीं हैं।-फीचर डेस्क बरेली

फणीश्वर नाथ रेणु की एक कहानी है। इस आंचलिक कहानी का का नाम है पंचलाइट। इसका समय-काल पुराना है। उन दिनों का जब गैसबत्ती या पंचलाइट को रात में रोशनी के लिए जलाया जाता था। उसे जलाना भी कमाल था। इसी को आधार बनाकर रेणु ने एक प्रेम कथा की रचना की है। उन्हीं की एक कहानी है तीसरी कसम। इन दोनों रचनाओं को मिलाकर एक नाटक रचा गया। नाम है मीता पंचलैट। अस्तिता फाउंडेशन, ड्रामा ड्रॉप आउट्स और वेग्माइन सिटी मॉल ने बरेली नाट्य महोत्सव के तहत प्रभावे ऑडिटोरियम, अर्बन हाट, बरेली में मंचन किया। नाटक में फणीरेश्वर नाथ रेणु जी की दो कहानियों पंचलाइट और तीसरी कसम को मिलाकर एक नया सिंबोलिक खोजकर नाटक को गढ़ा गया। इसमें पंचलाइट जो समस्या है वह तो है ही। साथ ही उसमें गोधन और मुनरी की प्रेम कहानी को भी स्थापित किया है। नाटक के मंचन में एक समय पंचलाइट का अभाव और प्रेम कहानी एक दूसरे के पूरक बन  जाते हैं। 

फणीरेश्वर नाथ रेणु की कहानी तीसरी कसम की महुआ घटवारन का प्रसंग भी जोड़ा गया। गोधन और मुनरी की प्रेम कहानी दोहराई गई है। प्यारे लाल कहानी चल रही होती है पंचलाइट के अभाव की। यहां पर इनका प्रेम पूरा होता है, जिसका कारण पंचलाइट बनती है। गांव व टोले वालों की इज्जत बच जाती है। कहानी के अनुसार गोधन गांव में रहता है, लेकिन गोधन को पंचायत से बाहर रखा और अंत में वही आगे पंचलाइट जलाता है। नाटक में गोधन को शहर भेज दिया जाता है। जहां वह अच्छे से अपना व्यापार जमा लेता है। फिर वहां से साल-डेढ़ साल बाद आकर गोधन गांव के मेले में ही पंचलाइट की दुकान खोलता है, जो कि गांव व मेले की सबसे बड़ी पंचलाइट की दुकान होती है।

पंचलाइट की आंचलिक कहानी

पंचलाइट रेणु जी की आंचलिक कहानी है। कहानी में बिहार के एक पिछड़े गांव के परिवेश का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया गया है। रामनवमी के मेले में महतो टोली के पंचों ने एक पेट्रोमैक्स खरीदा, जिसको गांव वाले पंचलाइट कहकर पुकारते थे। पंचलाइट खरीदने के बाद दस रुपये बचे थे, जिससे पूजा की सामग्री भी खरीदी गई। उसी में कीर्तन का आयोजन किया गया उस टोली के सभी लोग पंचलाइट देखने के लिए आ गए, लेकिन प्रश्न उठा कि इसको जलाएगा कौन ? क्योंकि खरीदने के पहले यह बात तो दिमाग में आए ही नहीं लोगों ने यह निर्णय लिया की दूसरी टोली के लोगों से नहीं जलाया जाएगा भले ही वही पड़ा रहे। आज किसी ने अपने घर ढिबरी भी नहीं जलाई थी। 

पंचलाइट न जलने से सभी के चेहरे उतर गए वही राजपूत टोली के लोग कहने लगे सभी लोग कान पकड़कर दस बार उठे-बैठे पंचलैट जल जाएगा, लेकिन ऐसा मजाक को भी धैर्यपूर्वक सहना पड़ा। वहीं पर गुलरी काकी की बेटी मुनरी बैठी थी। वह जानती थी कि गोधन पंचलाइट जलाना जानता है, लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का पानी बंद कर रखा था, क्योंकि वह सलीमा का गाना गलियों में गाता रहता था और लड़कियों को छेड़ता रहता था। मुनारी गोधन से प्रेम करती थी। इसलिए वह अपने न कहकर अपनी सहेली कनेली को बताई। 

कनेली सरदार तक यह बात पहुंचा दी कि गोधन पंचलाइट जलाना जानता है, लेकिन सभी लोग सोच में पड़ गए कि गोधन को बुलाया जाए कि नहीं बुलाया जाए। अंत में लोगों ने निर्णय लिया कि उसे बुलाया जाए। सरदार ने छड़ीदार को भेजा, लेकिन उसने आने से मनाकर दिया। अंत में गुलरी काकी झोपड़ी में गई और उसे मनाकर ले आई। गोधन ने पंचलाइट में तेल भरा और पूछा स्प्रिट कहां है, सभी लोग उदास हो गए लेकिन गोधन होशियारी से गाड़ी की तेल की सहायता से पंचलाइट जला देता है। पंचलाइट के जलने से लोगों के मन में प्रसन्नता आ गई। मुनरी ने हसरत की निगाहों से उसे देखा दोनों की नजरें चार हो गई। गुलरी काकी ने शाम को उसे खाने पर बुलाया पंच भी अति उत्साहित होकर गोधन को कह देते हैं – ‘तुम्हारा सात खून माफ, खूब गाओ सलीमा का गाना’।

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