Campus: बदल गई पढ़ाई, अब स्किल से ही कमाई

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Published By Deepak Mishra
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शिक्षक ज्ञान के द्वारपाल, तकनीक के हथियार से गढ़ने होंगे नए आकार

शिक्षक दिवस : कबीर की बताई परिभाषा नए जमाने में प्रासंगिक गुरु कुम्हार और शिष कुंभ है, गढि गढि काढै खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। (शिक्षक कुम्हार है, और शिष्य घड़ा। वह भीतर से हाथ का सहारा और बाहर से चोट देकर शिष्य को ऐसे तराशता है, जिससे उसके मन में कोई बुराई न रह जाए। )

गुरुर्ब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
(गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और साक्षात परमब्रह्म हैं, ऐसे गुरु को मैं नमन करता हूं।)

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। गुरु-शिष्य परंपरा हमारी पहचान है। गुरु यानि शिक्षक केवल किताबों का ज्ञान नहीं देते, बल्कि  जीवन जीने की कला, नैतिकता और अनुशासन का मार्ग दिखाकर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत कराते हैं। शिक्षकों की प्रेरणा और मार्गदर्शन से ही विद्यार्थी अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, यह जीवन की महत्वपूर्ण यात्रा है, और शिक्षक इस यात्रा में इंजन हैं। ऐसे में यह दिन शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और आभार प्रकट करने तथा उनके योगदान की सराहना का तरीका है। 

डिजिटल युग ने बदली शिक्षा की परिभाषा और शिक्षकों की भूमिका  

तेजी से बदलती दुनिया में शिक्षकों के लिए समाज में नैतिकता, संस्कृति और परंपरा के महत्व को समझाकर विद्यार्थियों को सही मार्ग पर ले जाने की चुनौती बढ़ गई है। डिजिटल युग ने शिक्षा की परिभाषा और शिक्षकों की भूमिका बदल दी है। ऐसे में शिक्षकों को डिजिटल कौशल और आधुनिक तकनीक का ज्ञान तथा बदलावों के साथ अपने दृष्टिकोण को अपडेट करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी की प्रचुरता के कारण ज्ञान के स्रोत वाली शिक्षकों की पारंपरिक भूमिका को चुनौती मिल रही है। 

एआई के दौर में भावनात्मक बुद्धिमत्ता व रचनात्मकता विकसित करनी होगी 

शिक्षा का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इंटरनेट ने सूचना और ज्ञान तक हर किसी की पहुंच बना दी है। इस बदलाव से शिक्षक अब केवल तथ्यों के वितरक नहीं रह गए हैं। ज्ञान के संरक्षक होने के नाते उनके कंधों पर छात्रों को सूचना के सागर में रास्ता दिखाने की जिमेदारी आ गई है। एआई और नई तकनीक के परिदृश्य में शिक्षकों को भावनात्मक बुद्धिमत्ता, अनुकूलनशीलता और रचनात्मकता जैसे इस तरह के कौशल विकसित करने होंगे जो अभी एआई की पहुंच में नहीं हैं। 

... क्योंकि हर स्टूडेंट कुछ अलग होता है

पहले पढ़ाई सिर्फ किताबों और परीक्षाओं तक सीमित थी। अब स्कूल नई शिक्षण विधियों का उपयोग कर रहे हैं। इसमें शिक्षकों की भूमिका छात्रों की समस्याएं सुलझाने, नए कौशल सिखाने और भविष्य के पथ प्रदर्शक जैसी हो गई है। तकनीक छात्रों को नए तरीकों से सीखने में मदद कर रही है, ऐसे में जरूरी है कि शिक्षक भी नए कौशल सीखें। छात्रों को सही राह पर बनाए रखने के तरीके खोजें। स्कूल-कॉलेज भी व्यक्तिगत शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि हर विद्यार्थी अलग होता है। कुछ जल्दी सीखते हैं, कुछ को थोड़ा समय लगता है। शिक्षकों समझना पड़ेगा कि किस बच्चे की क्या जरूरत है। कक्षाओं में स्मार्टबोर्ड, शैक्षिक ऐप्स और वीडियो का इस्तेमाल शिक्षक पढ़ाई को मजेदार बना सकते हैं। 

बढ़िया मार्क्स या ग्रेड पर न इतराएं, वह क्षमता लाएं जो नियोक्ता को भाए

आज अच्छे मार्क्स या ग्रेड ही काफी नहीं हैं।  कॉरियर में सफल होने के लिए वह कौशल जरूरी है, जिसकी अपेक्षा नियोक्ता करता है। ऐसे में शिक्षकों पर ये कौशल विकसित करने की जिम्मेदारी है। इसके लिए शिक्षकों को व्याख्याता के रोल से बाहर आकर डिजिटल तकनीक के जरिए छात्रों से जुड़ने के तरीके खोजने होंगे। समय के साथ बदलने वाले शिक्षक ही शिक्षा को बेहतर बना सकते हैं।

‘नॉलेज बेस्ड इकॉनमी’ का समय ज्ञान से जुड़ा कौशल सबसे ऊपर

थोड़ा पढ़-लिख गए, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको सब कुछ आता है। सीखने के लिए पूरी उम्र कम पड़ जाती है। पढ़ने और सीखने में फर्क है। सीखना ऐसी कला है, जिससे हम खुद को अपडेट और इंप्रूव कर सकते हैं। आज के प्रतिस्पर्धात्मक दौर में शिक्षण पद्धति में व्यावहारिक कौशल का महत्व समझना होगा। यह समय ‘नॉलेज बेस्ड इकॉनमी’ का है, जिसमें ज्ञान से जुड़ा कौशल सबसे ऊपर है। इसलिए छात्रों को चाहिए कि वे  पारंपरिक विषयों से आगे बढ़कर अपनी रुचि के क्षेत्र में रिसर्च आधारित या व्यावसायिक कोर्सेज का चयन करें।
लेखिका: – डॉ. क्षमा त्रिपाठी, प्रोफेसर, डीजीपीजी कॉलेज, कानपुर।