इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली पुलिस को हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पेश करने का दिया आदेश

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए बरेली के शीर्ष पुलिस अधिकारियों जैसे पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी), पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को 65 वर्षीय महमूद बेग को कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है।

याची की पत्नी परवीन अख्तर का आरोप है कि उनके पति को 20 अगस्त से अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है और कथित अवैध धर्मांतरण मामले में यातनाएं दी जा रही हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति ज़फीर अहमद की खंडपीठ ने परवीन अख्तर द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि एसओजी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) के पुलिस अधिकारियों ने बेग की रिहाई के लिए एक लाख रुपये की रिश्वत की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि 20 अगस्त की रात लगभग 11:15 बजे 11 व्यक्ति तीन जीपों में उनके घर पहुंचे और महमूद बेग को जबरन अपने साथ ले गए। विरोध करने पर दंपति के बेटे को रिवॉल्वर दिखाकर धमकाया गया।

इस पूरी घटना का फुटेज याची के घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे में दर्ज है। याचिका में यह भी कहा है कि लगभग 65 वर्षीय बेग बीमारियों से पीड़ित हैं, उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, फिर भी उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को 8 सितंबर, 2025 को साक्ष्य सहित उपस्थित होने का निर्देश दिया है, साथ ही बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित रहने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में नाम की त्रुटि को गंभीरता से न लेते हुए कोर्ट ने उसे सुधारने की अनुमति दी है।

दरअसल याचिका में बंदी का नाम परवीन अख्तर दर्शाया गया था, जबकि वास्तविक बंदी उनके पति महमूद बेग हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले के महत्व को देखते हुए याची अपनी याचिका में पक्षकारों का सही नाम दर्ज कर सकते हैं।

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