शैलनट ने हल्द्वानी में जीवंत किया रंगमंच
रंगमंच से निकले निर्मल पांडे और हेमंत पांडे ने भले ही अपने दम पर पहाड़ को एक अलग पहचान दिलाई हो, लेकिन सुविधाओं व प्रोत्साहन के अभाव में हल्द्वानी का रंगमंच लगभग समाप्ति की ओर था। प्रतिभाएं और हुनर दम तोड़ रही थीं। ऐसे में प्रमुख नाट्य संस्था शैलनट ने उम्मीदों की अलख जगाई है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से हल्द्वानी में आयोजित एक माह की कार्यशाला में प्रतिभाओं को निखारने की कोशिश से उम्मीद है कि रंगमंच का आकर्षण फिर लौटेगा। हल्द्वानी में रंगमंच को कई थियेटर ग्रुपों ने ताकत दी, लोगों ने पसंद भी किया, लेकिन सुविधाओं के अभाव में सब दम तोड़ गए।
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वरिष्ठ रंगकंर्मी डॉ. डीएन भट्ट के अनुसार, हल्द्वानी में 1979 में भारतेंदु नाट्य अकादमी से पास आउट हरीश पांडे ने थियेटर ग्रुप की स्थापना की। 90 के दशक में रंगकर्मी अरविंद अग्रवाल ने अंबर कला विकास समिति का गठन किया। इसके बाद अस्तित्व, अनिल सनवाल का निहारिका और पर्वतीय कला केंद्र जैसे ग्रुप भी सामने आए। वर्ष 2001 में हल्द्वानी में वरिष्ठ रंगकर्मी व फिल्म कलाकार श्रीष डोभाल व डीएन भट्ट के प्रयासों से शैलनट की स्थापना हुई। इसकी प्रदेश भर में एक दर्जन से अधिक शाखाएं हैं।
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इस ग्रुप ने वर्ष 2002 में आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय भारत रंग महोत्सव में जगह बनाकर अपना झंडा बुलंद किया। इप्शन थियेटर फेस्टिवल काठमांडू में भी नाटकों का मंचन किया, लेकिन इसके बाद सन्नाटा सा खिंच गया। अब करीब 20 वर्ष बाद शैलनट के प्रयास से रंगमंचीय गतिविधियां फिर शुरू हुई हैं, लेकिन सुविधाओं का अभाव राह का रोड़ा है। शहर में एक अदद ऑडिटोरियम की कमी से एक स्कूल में कार्यशाला करनी पड़ रही है।
युगमंच ने दिए दो दर्जन से अधिक कलाकार
1976 में नैनीताल में स्थापित युगमंच ने दो दर्जन से अधिक ऐसे कलाकार दिए हैं, जिनका एनएसडी व एफटीआई पुणे में न केवल चयन हुआ, बल्कि उन्होंने बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। इनमें निर्मल पांडे, ललित तिवारी, गोपल दत्त व सुनीता रजवार आदि प्रमुख हैं।
ऑडोटोरियम बनने से प्रतिभाओं मिलेगा
शहर में ऑडोटोरियम बनने से एक स्थान पर सभी कलाकार उपस्थित होंगे। रंगमंच को अलग पहचान मिलेगी। कालाकार आवाज लगा रहे हैं कि कला को मरने न दें, क्योंकि रंगमंच सिर्फ अभिनय नहीं, समाज का आईना है। लेखक : हरीश उप्रेती करन
