High Court : लोन वसूली में ‘गुंडों’ के इस्तेमाल पर हाईकोर्ट सख्त:, जानें क्या कहा...

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोन रिकवरी के नाम पर निजी वित्तीय संस्थाओं द्वारा की जा रही मनमानी पर सख्त रुख अपनाते हुए एक निजी बैंक द्वारा कथित रूप से “गुंडों के ज़रिए वसूली” के मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ ने मोहम्मद ओवैस की याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया और कानपुर नगर के संबंधित बैंक के अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए डाक द्वारा समन जारी करने का आदेश दिया है।

याची ने बताया कि वह एक सूक्ष्म उद्यम संचालित करता है और एक निजी वित्तीय संस्था से लिया गया ऋण समय पर चुका रहा था। इसके बावजूद बैंक के रिकवरी एजेंट लगातार उसे परेशान कर रहे हैं, जबकि सभी ईएमआई समय से जमा की जा रही थी और लोन खाता एनपीए घोषित नहीं किया गया था।

याचिका में यह भी कहा गया है कि लोन के साथ एक बीमा पॉलिसी भी ली गई थी, जो किसी साझेदार की मृत्यु की स्थिति में बकाया ऋण को कवर करती है।  इसके बावजूद बैंक ने बीमा दावा प्रक्रिया में सहयोग न करते हुए जबरन वसूली शुरू कर दी। 

याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी ने सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कोई भी वित्तीय संस्था ‘मसल पावर’ या गैरकानूनी तरीकों से वसूली नहीं कर सकती। ऐसा करना नागरिकों के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है और भारतीय रिजर्व बैंक के फेयर प्रैक्टिस कोड के भी विपरीत है।

कोर्ट ने इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि यह जांच आवश्यक है कि क्या संबंधित बैंक ‘कानून के शासन’ का पालन कर रहा है या नहीं। कोर्ट ने विपक्षी को 10 अक्टूबर 2025 तक डाक द्वारा समन की तामील सुनिश्चित करने और 13 अक्टूबर तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर 2025 को तय की गई है, साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि बैंक इस आदेश का अनुपालन नहीं करता तो अगली तिथि पर स्थगन प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है।

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