दूषित भावना से बने संबंध में महिला की सहमति अनुमन्य नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपी की याचिका
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाह के झूठे आश्वासन पर यौन संबंध बनाने वाले आरोपी की याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया है कि जिस वादे का जन्म ही छल से हुआ हो, ऐसी परिस्थितियों में महिला की ‘सहमति’ वैधानिक सहमति नहीं मानी जा सकती। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की एकलपीठ ने दुष्कर्म के आरोपी को निरस्त करने की मांग वाली रवि पाल की याचिका खारिज करते हुए पारित किया।
कोर्ट ने माना कि आरोपी द्वारा शुरुआत से ही भ्रामक वादों का सहारा लेकर शारीरिक संबंध स्थापित करना भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय है। मामले के अनुसार गोरखपुर की एक युवती ने आरोपी के विरुद्ध जनवरी 2024 में साहजनवां थाने में आईपीसी की धारा 376 व 120-बी के तहत मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें आरोप था कि आरोपी ने विवाह के आश्वासन पर उसे अपने घर व होटल में बुलाकर कई बार दुष्कर्म किया।
बाद में दिल्ली ले जाकर भी शादी से मुकर गया और उसे छोड़कर फरार हो गया। कोर्ट ने पीड़िता द्वारा सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों को विश्वसनीय पाया और रिकॉर्ड पर आए तथ्यों को आरोपी के ‘दूषित आशय’ का संकेत तथा पीड़िता की सहमति का दुरुपयोग माना। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब झूठा वादा करके महिला से संबंध बनाए जाते हैं, तो यह आईपीसी की धारा 375 के तहत 'यौन शोषण' की श्रेणी में आता है।
आरोपी ने अपने बचाव में यह तर्क दिया था कि संबंध ‘सहमति से’ बने थे और विवाह का कोई ठोस वादा नहीं किया गया था। कोर्ट ने इस तर्क को अनुपयुक्त ठहराते हुए कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में तथ्यों की गहन जांच ट्रायल के दौरान ही संभव है। अंत में कोर्ट ने कहा कि न्यायालय के समक्ष मौजूद प्रथमदृष्टया सामग्री अभियोजन के मामले को पुष्ट करती है। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही निरस्त करने का प्रश्न नहीं उठता।इसी के साथ कोर्ट ने अंतरिम स्थगन आदेश भी निरस्त कर दिया।
