फर्स्ट राइड
कुछ नया सीखने और हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ललक सदैव रही। पापा- मम्मी ने इसी बात की प्रेरणा भी देते थे कि किसी के आश्रित रहने की जगह प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है। इसी कड़ी में मैंने कार चलाने की ठानी। जब पहली बार ड्राइविंग सीट पर बैठी तो मन में थोड़ी सी हिचक थी कि चला पाऊंगी भी या नहीं, लेकिन अपनों का साथ मिला था, तो धीरे-धीरे कार चलाना सीख लिया।
पहली बार जब मैं अकेले ड्राइविंग सीट पर बैठी, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। यह ऐसा पल था जब कोई मेरे बगल की सीट पर मुझे गाइड करने वाला नहीं था। अब समझ में आता है कि हर महिला को कार या बाइक चलाना आना चाहिए ताकि उसे बाहर जाने के लिए किसी का इंतजार न करना पड़े।-स्नेहा सिंह कानपुर
