कृत्रिम गर्भाधान में खेल, फंसे चार हजार पशुमैत्री... 200 रुपये तक सीमन खरीदकर 1000 तक में करते कृत्रिम गर्भाधान
प्रशांत सक्सेना, लखनऊ, अमृत विचार : प्रदेश में कृत्रिम गर्भाधान (आर्टीफिशयल इनसेमिनेशन) से गाय व भैंस की नस्ल सुधारने के लिए रखे गए करीब चार हजार पशु मैत्रियों की निजी कंपनियों से बड़ी मिलीभगत सामने आई है। जिन्हें गांव-गांव पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए उप्र पशुधन विकास परिषद ने प्रशिक्षित कर रखा है, वे प्रशिक्षण लेकर कंपनियों को लाभ पहुंचा रहे हैं। यह लोग विभागीय लक्ष्य पूर्ण न करके निजी कंपनियों से 200 रुपये तक का सीमन खरीदकर पशुपालक से एक हजार रुपये तक की वसूली करते हैं। जबकि योजना के तहत परंपरागत सीमेन नि:शुल्क और बछिया वाले का 100 रुपये शुल्क लगता है।
ज्यादातर पशु मैत्रियों ने अपने अधीन तीन से चार लोगों को लगा रखा है। इनके अप्रशिक्षित हाथों से पशुओं के अंदर गर्भाधान का उपकरण डालने से बच्चेदानी तक फट जाती है। यह पशु क्रूरता के तहत आता है। जबकि विभाग की ओर से प्रशिक्षित पशुमैत्री, सरकारी चिकित्सक व पशुधन प्रसार अधिकारी ही करते हैं। इनके अलावा कोई नहीं कर सकता है। सीमेन भी कंपनियां नहीं बेच सकती हैं। इसके बाद भी कंपनियां गांवों में बिक्री प्वाइंट बनाकर वाहनों से सीमेन बेच रही हैं। यह बात सम्बंधित पशु चिकित्सकों से छिपी भी नहीं है। इस खेल में शामिल चार हजार पशु मैत्रियों से परिषद 51 हजार रुपये की किट और तीन माह के प्रशिक्षण में खर्च 30 हजार रुपये वसूलने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
सरकारी प्रशिक्षण के नाम पर हजारों कमाते, कानपुर में बड़ा खेल
पशु मैत्री को टीकाकरण और गर्भाधान के लिए रखा जाता है। एक केस पर योजना के तहत 50 रुपये मिलते हैं और बच्चा होने पर प्रोत्साहन के तौर पर 100 रुपये मिलते हैं। पूरी प्रक्रिया की भारत पशुधन एप पर फीडिंग करनी होती है। लेकिन, निजी स्तर से मैत्री इससे अधिक कमाई करते हैं। इन्हीं कारणों से इस माह पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान की प्रगति काफी धीमी है। 5 नवंबर तक 1.44 करोड़ पशुओं में 31.26 फीसद पूर्ति हुई है। कानपुर में बड़े स्तर पर यह खेल होना बताया जा रहा है। पशुमैत्री के अलावा कई युवा ग्रुप बनाकर पशुओं का उपचार करके जान ले रहे हैं।
सरकारी एलएनटू गैस का निजी इस्तेमाल
पशुमैत्री को दी गई किट में एक से तीन लीटर का कंटेनर होता है। इसमें एलएनटू यानी नाइट्रोजन लिक्विड गैस से सीमेन सुरक्षित रहता है। एलएनटू परिषद द्वारा ही उपलब्ध कराई जाती है। किल्लत के कारण बाहर आसानी से नहीं मिलती है। फिर भी पशुमैत्री अस्पतालों से एलएनटू लेकर उनका निजी इस्तेमाल करते हैं।
ऐसे मामलों में केंद्र के पीसीडीआई अधिनियम के तहत डीएम स्तर से कार्रवाई की जाती है। लेकिन, अब प्रदेश सरकार भी कार्रवाई के लिए प्रजनन अधिनियम बना रही है। इसके बनने से और सख्ती के साथ कार्रवाई होगी। करीब चार हजार पशुमैत्रियों से किट व खर्च वसूला जा रहा है।
- डॉ. पीके सिंह, सीईओ, उप्र पशुधन विकास परिषद
