मेरा शहर मेरी प्रेरणा: परिवार छोड़ कोविड मरीजों के लिए संजीवनी बन गए डॉ. वागीश वैश्य 

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Published By Monis Khan
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डॉ वागीश बताते हैं कि कोविड महामारी के दौरान जब उन्हें 300 बेड अस्पताल की जिम्मेवारी सौंपी गई तो ऐसा लगा जैसे बिना हथियारों के जंग में उतार दिया गया हो, लेकिन मन ही मन खुशी थी कि सरकार और वरिष्ठ अधिकारियों को उन पर भरोसा है और यह विश्वास भी था कि वह महामारी की इस जंग में हजारों जिंदगियों के लिए संजीवनी बन पाएंगे और हुआ भी ऐसा ही। इसके लिए उन्हें प्रदेश और देश के कई मंचों पर सम्मानित भी किया गया। फिजीशियन डॉ. वागीश वैश्य जिले में ऐसे पहले डॉक्टर हैं, जिन्होंने कोरोना संक्रमण से जुड़ा केस देखा। उन्होंने हर स्तर पर मरीजों की परेशानी को समझा और लगातार 10 महीने तक बिना छुट्टी लिए इलाज किया।
 
उन्होंने बताया कि महामारी के दौर में लोग जहां अपने परिजनों के नजदीक पहुंचना चाहते थे, ऐसे में वह लंबे समय तक अपने परिवार से अलग रहे। प्रतिदिन 350 मरीजों की ओपीडी के साथ 300 बेड अस्पताल की जिम्मेवारी संभाली। ओपीडी के बाद वह सुनिश्चित करते थे कि कोई भी पेशेंट बिना इलाज के न रह जाए। डॉ. वागीश वैश्य ने कोविड महामारी के दौरान बरेली में सिर्फ चिकित्सा सेवाएं ही नहीं दीं, बल्कि अस्पताल की नेतृत्व क्षमता बढ़ाने, ऑक्सीजन और वेंटिलेटर जैसे संसाधन जुटाने, और कर्मचारियों को जोड़कर कोविड-केयर मैनेजमेंट को मजबूती दी। उनकी यह निस्वार्थ सेवा और समर्पण उन्हें कोरोना योद्धा के रूप में स्थापित करता है। डॉ. वागीश ने कहा कि उनके पदचिन्हों पर चलते हुए उनकी बेटी डॉ. शिवांगी वैश्य ने भी डॉक्टरी की पढ़ाई कर एमडीएस किया और आज रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में सेवाएं दे रही है। बेटा शिवम वैश्य भी बेंगलुरु में इंजीनियर है। 

कोविड की इस जंग में शहर के लोग जुड़ते चले गए
डॉ वागीश बताते हैं जब उन्हें 300 बेड अस्पताल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई तो मन में पहला ख्याल यही आया कि बिना संसाधन जंग कैसे जीतेंगे? लेकिन उन्हें शहर के एनजीओ और समाज सेवियों पर भरोसा था कि उन्हें इस कार्य के लिए आगे बढ़कर मदद मिलेगी। वह आईएमए के मेंबर भी थे जिस कारण उनकी शहर की सामाजिक संस्थाओं से एनजीओ में काफी जान पहचान थी।

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