भारत बन सकता है दुनिया का सबसे बड़ा बायो-ईंधन हब! लखनऊ में NBRI सम्मेलन में अमेरिकी वैज्ञानिक का धमाका

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
On

बदलती जलवायु में पुष्पकृषि के सामने चुनौती

लखनऊ, अमृत विचार : सीएसआईआर–राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में पादप एवं पर्यावरण प्रदूषण पर आयोजित 7वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन देश-विदेश से आए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने व्यापक वैज्ञानिक संवाद किया। सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों पर चर्चा हुई, जिससे पुष्पकृषि सहित कृषि क्षेत्र में नई चुनौतियां सामने आई हैं। अमेरिका से आए विशेषज्ञ ने बताया कि भारत आने वाले समय में ईंधन का सबसे बड़ा हब बन सकता है, क्योंकि भारत बायोमॉस का विश्व का सबसे बड़ा हब है।

सेमिनार की शुरुआत पोस्टर सत्र से हुई, जिसमें जैव विविधता संरक्षण, जैव-अर्थव्यवस्था व सतत विकास लक्ष्य, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में एथ्नोबॉटनी और बदलती जलवायु में पुष्पकृषि जैसे विविध विषयों पर महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत किए गए।

मुख्य सत्र और व्याख्यान:

यूएसए के डॉ. जेसन सी. व्हाइट ने नैनो-जैव प्रौद्योगिकी आधारित रणनीतियों द्वारा फसल तनाव सहनशीलता पर प्रकाश डाला।

संस्थान के निदेशक डॉ. अजित के. शासनी ने पौधों की आंतरिक प्रतिरक्षा का उपयोग कर जलवायु परिवर्तन के तनाव के प्रति सहनशीलता बढ़ाने की संभावनाओं पर व्याख्यान दिया।

प्रो. ऋषिकेश भालेराव (स्वीडिश यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज) ने ऑनलाइन जुड़कर पादप-परितंत्र की प्रतिक्रिया और अनुकूलन रणनीतियों पर दृष्टिकोण साझा किया।

तकनीकी सत्रों में चर्चा के विषय:

जैव विविधता व पुराविज्ञान

जैव अर्थव्यवस्था एवं सतत विकास लक्ष्य

प्रकृति-आधारित तकनीकें

पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवविज्ञान

माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण जैसे उभरते पर्यावरणीय खतरों

प्रमुख वैज्ञानिकों के विचार:

प्रो. पुनीत के. द्विवेदी (यूएसए): लकड़ी के अपशिष्ट से टिकाऊ विमानन ईंधन उत्पादन पर आपूर्ति श्रृंखला आधारित दृष्टिकोण।

डॉ. बी. प्रभाकर (आईएफएस): ग्राम पंचायतों की भूमिका पर जोर देते हुए जैव विविधता संरक्षण।

डॉ. अयनदार अरुणाचलम (केंद्रीय कृषि-वनीकरण अनुसंधान संस्थान): खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए कृषि-वनीकरण आधारित समाधान।

प्रो. महेश जी. ठक्कर (बीरबल साहनी पुराजीव विज्ञान संस्थान): पृथ्वी के ऐतिहासिक पर्यावरणीय साक्ष्यों को भविष्य की पर्यावरणीय चुनौतियों से जोड़ना।

संस्थान और विश्वविद्यालयों की भागीदारी:

यूएसए की लिंकन यूनिवर्सिटी, आईआईटी खड़गपुर, बांग्लादेश के शेर-ए-बांगला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान सम्मेलन में शामिल हुए।

संबंधित समाचार