जंगल की दुनिया: भारतीय पैंगोलिन, वन्य संपदा का अनमोल प्रहरी
भारतीय पैंगोलिन भारत उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक दुर्लभ एवं अत्यंत विशिष्ट स्तनधारी जीव है। यह अपने पूरे शरीर पर मौजूद कठोर, overlapping शल्कों के कारण अन्य जीवों से बिल्कुल अलग दिखाई देता है। ये शल्क केराटिन से बने होते हैं, वही पदार्थ जिससे मानव के नाखून बनते हैं। खतरा महसूस होने पर पैंगोलिन स्वयं को एक गोल गेंद की तरह समेट लेता है, जिससे शिकारी उसके नाजुक अंगों तक नहीं पहुंच पाते।
रात में सक्रिय रहने वाला यह जीव अत्यंत शर्मीला और एकांतप्रिय होता है। इसका मुख्य आहार चींटियां और दीमक हैं। लंबी, पतली और अत्यधिक चिपचिपी जीभ इसे आसानी से भोजन पकड़ने में सहायता करती है। भूमिगत बिलों में रहना इसकी विशेषता है, जिन्हें यह अपने मजबूत पंजों की मदद से आसानी से खोद लेता है। भारतीय पैंगोलिन जंगलों, झाड़ियों, कृषि भूमि और कभी-कभी ग्रामीण बस्तियों के पास भी देखा जा सकता है।
पारिस्थितिकी दृष्टि से पैंगोलिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कीटभक्षी होने के कारण चींटियों और दीमक की संख्या को नियंत्रित करता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता और कृषि भूमि सुरक्षित रहती है। परंतु इसके बावजूद यह जीव आज गंभीर संकट में है। IUCN ने इसे “Endangered” श्रेणी में रखा है। अवैध शिकार और तस्करी इसका सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि इसके शल्कों और मांस की अवैध बाजार में अत्यधिक मांग है।
भारतीय पैंगोलिन को संरक्षण की सख्त आवश्यकता है। जन-जागरूकता, कड़े कानून, वन विभाग की सक्रियता और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से ही इस अद्वितीय प्राणी को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। यह सिर्फ एक जीव नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण संतुलन का महत्वपूर्ण प्रहरी है।
