जौनपुर का शाही किला : ऐतिहासिक धरोहर, वास्तुकला की झलक 

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Published By Anjali Singh
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जौनपुर का शाही किला शहर से करीब दो किलोमीटर दूर गोमती नदी के किनारे शाही पुल के पास स्थित है। इस  ऐतिहासिक किले का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने वर्ष 1362 में कराया था। यह वह समय था जब तुगलक वंश ने जौनपुर को एक मजबूत सैन्य व प्रशासनिक केंद्र का दर्जा दिया था।  यह किला अपनी भव्यता और स्थापत्य कला के लिए मशहूर है। मुख्य द्वार के पास शौर्य का प्रतीक विजय स्तंभ, विशाल द्वार और मेहराब देखने लायक हैं। किले से गोमती नदी का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। जौनपुर की विरासत को दर्शाने के साथ शाही किला इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।- अमित नारायन, कानपुर 

शाही किला अपनी मजबूत दीवारों, ऊंचे दरवाजों और सुरक्षा की दृष्टि से तैयार की गई गहरी खाई के लिए जाना जाता है। किले का मुख्य द्वार काफी बड़ा और नक्काशीदार है। प्रवेश द्वार की ऊंचाई 36 फुट है, इसके उपर एक विशाल गुम्बद बना है। किले के भीतर का गेट 26.5 फुट ऊंचा और 16 फुट चौड़ा है। कभी किले के भीतर कई महल, बावड़ियां और खूबसूरत इमारतें थीं। लेकिन वर्तमान में कुछ ज्यादा नहीं बचा है। किले के भीतर एक मस्जिद और एक तुर्की हम्माम ही केवल दो प्रमुख संरचनाएं बची हैं। परिसर में एक दरगाह के साथ एक गेट जैसी संरचना भी है। हम्माम पर बने ऊंचे,नीचे गुंबद बहुत सुंदर ढंग से बनाये गये हैं। वर्तमान में किला एक संरक्षित इमारत है।

राठौर राजाओं के मंदिरों औरमहलों की सामग्री का प्रयोग

शाही किला को कन्नौज के राठौर राजाओं के मंदिरों और महलों की सामग्री का उपयोग करके बनाया गया था। इस किले को अनेक शासकों द्वारा कई बार नष्ट किया गया। मुगल साम्राज्य के शासन के दौरान किले का व्यापक जीर्णोद्धार और मरम्मत की गई। इसकी वजह किले का सामरिक रूप में महत्वपूर्ण होना था। बाद में यह किला अवध के नवाबों के अधीन रहा, लेकिन ब्रिटिश शासन के समय इसकी स्थिति कमजोर होती गई।  
 
पत्थर की दीवारों से घिरा एक अनियमित चतुर्भुज

पूर्व में इसे केरार कोट किला कहते थे। किले का लेआउट पत्थर की दीवारों से घिरा एक अनियमित चतुर्भुज है। दीवारें उभरी हुई मिट्टी की दीवारों से घिरी हुई है। हालांकि मूल संरचनाओं के अधिकांश अवशेष खंडहर हालत में हैं या दफन हो चुके हैं। मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। सबसे बड़ा आंतरिक द्वार 14 मीटर ऊंचा है। इसकी बाहरी सतह एशलर पत्थर से बनी है। 
 
बाहरी दीवारों पर सजावटी आले,  मेहराबों के बीच नीले-पीले पत्थर

16वीं शताब्दी में जौनपुर के गवर्नर मिनम खान के संरक्षण मंर मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान एक और बाहरी द्वार स्थापित किया गया था। इसे एक बगल की बुर्ज के आकार में डिजाइन किया गया है। बाहरी द्वार के मेहराबों के बीच के स्पैन्ड्रेल या रिक्त स्थान को नीले और पीले रंग के पत्थरों से सजाया गया था। बाहरी द्वार की दीवारों में सजावटी आले बनाए गए हैं। किले की संरचना में स्थापित गुंबदों के शीर्ष पर खुलने के कारण प्रकाश अंदर आता है। 
 
तुर्की शैली का हम्माम, मस्जिद निर्माण में हिंदू व बौद्ध शिल्प 

किले के भीतर एक आदर्श तुर्की शैली का स्नानघर है, जिसे आम तौर पर हम्माम या भूलभुलैया के नाम से जाना जाता है। हम्माम आंशिक रूप से भूमिगत बना हुआ है, जिसमें इनलेट और आउटलेट चैनल, गर्म और ठंडा पानी और इसी तरह की अन्य सुविधाएं हैं। भीतर एक मस्जिद भी है। इब्राहिम बरबक द्वारा बनवाई गई इस मस्जिद के निर्माण में हिंदू एवं बौद्ध शिल्प कला की छाप साफ दिखाई पड़ती है। इसे जौनपुर शहर की सबसे पुरानी इमारत गिना जाता है। इसके बगल में 12 मीटर ऊंचा पत्थर का स्तंभ है, जिस पर एक फारसी शिलालेख खुदा हुआ है, जो मस्जिद के निर्माण की कहानी बताता है। मस्जिद में तिहरे मेहराब हैं और इसके ऊपर तीन निचले केंद्रीय गुंबद हैं।

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