हल्द्वानी: पहाड़ के जंगलों में आग, मधुमक्खी कहां करें रसपान
हल्द्वानी, अमृत विचार। शहर से 15 किमी दूर स्थित मधु ग्राम ज्योली में 140 परिवार हैं और यहां निवासरत 90 प्रतिशत लोग मौन पालक हैं। इस गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय शहद पर निर्भर है। गांव के लगभग प्रत्येक व्यक्ति के पास करीब 70-80 मधुमक्खी के डिब्बे होते हैं, जिसमें वह मधुमक्खी पालते हैं …
हल्द्वानी, अमृत विचार। शहर से 15 किमी दूर स्थित मधु ग्राम ज्योली में 140 परिवार हैं और यहां निवासरत 90 प्रतिशत लोग मौन पालक हैं। इस गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय शहद पर निर्भर है। गांव के लगभग प्रत्येक व्यक्ति के पास करीब 70-80 मधुमक्खी के डिब्बे होते हैं, जिसमें वह मधुमक्खी पालते हैं और इसी पर उनके परिवार का भरण- पोषण हो पाता है।
इस बार जंगलों में आग लगने से मधुमक्खी पालक निराश हैं क्योंकि यही वह समय होता है जब जंगलों में अच्छी फ्लावरिंग रहती थी लेकिन इस बार आग की वजह से जंगल तबह हो गए हैं और मधुमक्खियों को रसपान के लिए जंगली पुष्प भी नहीं मिल पा रहे हैं। आलम यह है कि मधुमक्खियों को उनका आहार न मिल पाने के चलते उनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। मौन पालक धीरज पांडे,भुवन पांडे और मनोज की मानें तो रोजाना बीस से तीस मधुमक्खी दम तोड़ रही हैं।
वहीं ग्रामीणों के अनुसार मधुमक्खियों के शहद बनाने का मुख्य समय 15 मार्च से 25 अप्रैल होता है। इस दौरान वे अपने मौन बक्सों को जंगलो में रखकर जंगलो में रखते हैं ताकि हरे- भरे पेड़ो में होने वाली फ्लावरिंग से मधुमक्खी पर्याप्त रसपान कर सके।
शहद के लिए चार तरह की मधुमक्खियों का होता है चयन
व्यवसायिक मधुमक्खी पालन के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं। इसमें एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया शामिल हैं। एपिस मेलीफेरा मधुमक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है। बताया गया कि मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए संदूकों में पाला जाता है, जिससे मधुमक्खियों को पालने से अंडे एवं बच्चे वाले छत्तों को हानि नहीं पहुंचती तथा शहद अलग छत्तों में भरा जाता है।
