टनकपुर: भारी भूस्खलन से खतरे की जद में आए श्यामलाताल के कई गांव
देवेन्द्र चन्द देवा, टनकपुर। पिछले दिनों क्षेत्र में हुई मूसलाधार बारिश से टनकपुर-चम्पावत राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित पर्यटन स्थल एवं स्वामी विवेकानंद की तप स्थली रहे श्यामलाताल से लगे बिसौरिया क्षेत्र के कुछ गांव भारी भूस्खलन के चलते खतरे की जद में आ गए हैं। खतरे को देखते हुए इस क्षेत्र के आधा दर्जन परिवार अन्यत्र …
देवेन्द्र चन्द देवा, टनकपुर। पिछले दिनों क्षेत्र में हुई मूसलाधार बारिश से टनकपुर-चम्पावत राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित पर्यटन स्थल एवं स्वामी विवेकानंद की तप स्थली रहे श्यामलाताल से लगे बिसौरिया क्षेत्र के कुछ गांव भारी भूस्खलन के चलते खतरे की जद में आ गए हैं।
खतरे को देखते हुए इस क्षेत्र के आधा दर्जन परिवार अन्यत्र शरण लेने के लिए बाध्य हो गए हैं। जबकि अभी भी 49 परिवार खतरे की जद में बने हुए हैं। श्यामलाताल के न्याय पंचायत बमनजोल के सियाला ग्राम पंचायत के तोक अटाली, जल कुनिया, बांजा, पपनाड़ी, कांडा में करीब एक हजार की आबादी निवास करती है।अटाली व बांजा तोक में बिसौरिया से अधिक नुकसान हुआ है।
बताया जाता है कि इन क्षेत्रों में तकरीबन 300 नाली भूमि भूस्खलन की भेंट चढ़ चुकी है। वहीं बांजा गांव में रह रहे नवीन सिंह भंडारी, बिशन सिंह भंडारी, देव सिंह भंडारी, जगत सिंह भंडारी, रमेश भंडारी ने खतरे को देखते हुए श्यामलाताल निवासी खिलानंद पांडे व विशन दत्त तिवारी के घरों में परिवार समेत शरण ली है। पोथ ग्राम सभा के गंगसीर, उदाली, तुसेरी, ब्यूरी, डाकल, अटाली आदि क्षेत्रों में तकरीबन 80 फीसदी लोग भी इस क्षेत्र से पलायन कर जिले के मैदानी क्षेत्र टनकपुर और बनबसा के अलावा जनपद ऊधमसिंह नगर के खटीमा, चकरपुर, बग्गाचौवन आदि क्षेत्रों में बस गए हैं।
बिसौरिया क्षेत्र में वर्ष 2005 से भूस्खलन होना शुरू हुआ था। एक और जहां इस क्षेत्र से पूर्णागिरि मार्ग के बाटनागाड़ में आए दिन मामूली सी बरसात में भी भारी मात्रा में मलबा आ रहा है वहीं उदाली ग्राम के नीचे तुसेरी, खैरलिंग मंदिर के पास डैम बन जाने से खतरा बना हुआ है। वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के समक्ष भी क्षेत्र के लोगों ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया था।
जहां खंडूरी के निर्देशन में इस क्षेत्र में भू वैज्ञानिक डॉ. खड़क सिंह वल्दिया के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस क्षेत्र में पहुंचकर भूगर्भीय सर्वेक्षण किया था, जहां वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को अति संवेदनशील बताया था। साथ ही वैज्ञानिकों की टीम ने चेतावनी देते हुए स्पष्ट किया था कि लगातार हो रहे भूस्खलन से आने वाले समय में यहां काफी खतरा हो सकता है। इधर सियाला के ग्राम प्रधान जगदीश प्रसाद का कहना है कि वह पिछले लंबे समय से इस क्षेत्र में भूस्खलन से हो रही तबाही का मंजर देख रहे हैं। इसको लेकर उन्होंने अपने स्तर से भी कई बार शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को पत्र के माध्यम से लोगों को विस्थापित किए जाने की मांग कर चुके हैं, लेकिन अभी तक उनकी मांग पर अमल नहीं हो पाया है।
कमोवेश इस क्षेत्र में डेढ़ दशक से भी अधिक समय से लगातार हो रहे भूस्खलन को लेकर प्रशासन की ओर से सर्वे जरूर किए हैं, लेकिन निस्तारण के लिए अभी तक ठोस कदम नहीं उठाए जा सकते हैं जिससे यहां रह रहे लोगों के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है।
इस क्षेत्र में लंबे समय से हो रहे भूस्खलन से क्षेत्र को भारी खतरा बना हुआ है, इसके लिए नए सिरे से भूगर्भीय सर्वे करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इससे पहले खतरे की जद में आए लोगों के लिए सुरक्षित स्थान पर उन्हें बसना भी जरूरी है। इसके लिए रिपोर्ट तैयार कर शीघ्र ही शासन को भेजी जाएगी।
– हिमांशु कफलटिया, एसडीएम टनकपुर
पर्यटन स्थल श्यामलाताल से जुड़े क्षेत्र में भूस्खलन से हो रहे भारी भूस्खलन से लोगों को खतरा बना हुआ है। इसके लिए कई बार शासन प्रशासन को पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन इस ओर ठोस पहल अभी तक नहीं की गई है। इससे इस पर्यटन स्थल को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि सिर्फ इस क्षेत्र में चुनाव के दौरान ही वोट मांगने तक ही सीमित रह गए।
– शंकर जोशी, संयोजक, तल्लापाल विलोन संघर्ष समिति
