लखीमपुर-खीरी: मानव शरीर और फसल दोनों के लिए बड़ा संकट है गाजर घास

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बांकेगंज-खीरी/लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। गाजर घास जिसे देहात में कांग्रेस घास और कृषि वैज्ञानिक पार्थेनियम हिसटेरोफोरस के नाम से पुकारते हैं फसल और मानव शरीर दोनों को नुकसानदायक है। खाली खेतों, सड़क के किनारों, रेल की पटरियों के आसपास खाली पड़ी जमीनों, आवासीय प्लाटों, में तेजी से पांव पसारती पार्थेनियम घास, गाजर घास या कांग्रेस घास …

बांकेगंज-खीरी/लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। गाजर घास जिसे देहात में कांग्रेस घास और कृषि वैज्ञानिक पार्थेनियम हिसटेरोफोरस के नाम से पुकारते हैं फसल और मानव शरीर दोनों को नुकसानदायक है। खाली खेतों, सड़क के किनारों, रेल की पटरियों के आसपास खाली पड़ी जमीनों, आवासीय प्लाटों, में तेजी से पांव पसारती पार्थेनियम घास, गाजर घास या कांग्रेस घास के नाम से जानी जाने वाली यह घास जैव विविधता के लिए बड़ा संकट है।

पर्यावरणविद एवं वनस्पति विज्ञानी डॉ राज किशोर कहते हैं यह एक विषैली तथा एलर्जी कारक घास है। इसकी पत्तियों, पौधों तथा फूलों के संपर्क में आने वाले मनुष्यों में एग्जिमा, अस्थमा, हे फीवर तथा डर्मेटाइटिस त्वचा रोग जैसी बीमारियां  उत्पन्न होती हैं। इतना ही नहीं खाली पड़ी भूमि चारागाह या खेतों में चरने वाले दुधारू पशुओं यथा गाय भैंस तथा बकरियों में भी इसके संपर्क में आने से त्वचा रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा अन्य घासों को चरते समय यदि ये पशु पार्थेनियम घास को भी चर लेते हैं तब दुधारू पशुओं का दूध कुछ समय बाद कसैला या तीखापन युक्त हो जाता है और लंबे समय तक इस प्रकार के दूध के सेवन का उपयोग करने वाले व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

उन्होंने बताया कि यह घास सिर्फ मानव के लिए ही हानिकारक नहीं है अपितु फसलों जैसे टमाटर,मिर्च तथा बैंगन के फूलों पर यदि  इस घास के फूलों के परागकणों की परत जम जाती है तो वे सूख जाते हैं जिससे उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। भूमि में इकट्ठा होने वाले इस घास के परागकण सेसक्यूटरपिन लैक्टोन्स नामक रसायन का स्रावण करते हैं जिसके कारण दलहनी फसलों की जड़ों में पाए जाने वाले नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणु अक्रियाशील हो जाते हैं जिससे फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह घास जिस भूमि में उगती है उसमें अपनी जड़ों के द्वारा अनेक रसायन छोड़ती रहती है जिनके एलीलोपैथिक प्रभाव के कारण फसलों के बीजों के अंकुरण तथा उनकी वृद्धि बाधित हो जाती है जिसके फलस्वरूप फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

 घास
डॉ राज किशोर वनस्पति विज्ञानी।

डॉ राज किशोर कहते हैं कि यह घास विश्व के सात सबसे खतरनाक खरपतवारों में से एक है। ये पांच मीटर ऊंचाई तक बढ़ती हैं। इसका एक सामान्य पौधा 25000 बीज तक उत्पादित करता है। यह जमीन पर गिरते ही अंकुरित होने लगते हैं अंकुरित होने के लिए काफी दिनों तक अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा करते हैं। इसका फैलाव हवा, पानी, पशु तथा मानव गतिविधियों के द्वारा होता है इसके फैलाव को रोक पाना अत्यंत ही कठिन कार्य है क्योंकि इसके पौधे वर्ष भर खिलते रहते हैं तथा उनमें बीज बनते रहते हैं।

डॉ राज किशोर ने कहा कि इसे रोकने के लिए शासन-प्रशासन को व्यापक स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है। आम नागरिक से लेकर किसान, कृषि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से लेकर पंचायत, नगरपालिका स्तर तक के जनप्रतिनिधियों तक को एक साथ आगे बढ़कर राष्ट्र हित के लिए इसके समूल नाश के जन आंदोलन में बढ़कर सहयोग करना चाहिए।

इस घास को समूल नष्ट किए जाने की विधियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि उगने के बाद जैसे ही यह पौधा उखाड़ने लायक हो जाएं तो उन्हें उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। बड़े क्षेत्र में फैले पार्थेनियम के जंगल को नष्ट करने के लिए वीडीसाइड का छिड़काव भी एक प्रभावी उपाय है।  इसके अलावा पार्थेनियम संक्रमित खेती वाली भूमि में वर्षा ऋतु में गेंदे की फसल उगाने से घास का नियंत्रण होता है।

इस घास के प्रकोप युक्त भूमि में केसिया सेरिसिया की घनी बुवाई करके भी इस घास को नियंत्रित किया जा सकता है। जिस भूमि में जेट्रोफा उगता है वहां इसके एलीलोपैथिक प्रभाव के कारण पार्थेनियम बिल्कुल नहीं उगता है। इस घास का कंपोस्ट बनाकर भी उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए फूल आने के पहले ही इकट्ठा करके उन्हें चारे की तरह छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है।

कटे टुकड़ों को किसी ठोस भूमि पर 10 सेंटीमीटर मोटी एक परत के रूप में फैला देना चाहिए। इस परत के ऊपर ट्राइकोडर्मा विरिडी का पाउडर छिड़क देना चाहिए। इसके बाद इस परत पर यूरिया के 0.5  प्रतिशत जलीय घोल का छिड़काव करना चाहिए। इसी अनुक्रम में कम से कम एक मीटर ऊंचा गट्ठर बनाकर उसे चारों ओर से चिकनी मिट्टी से लीपकर प्लास्टर की भाँति चिकना करके छोड़ देना चाहिए।

लगभग 15 दिनों बाद इस गट्ठर को उलट पलट कर फिर से गट्ठर बना कर चिकनी मिट्टी से लीप देना चाहिए। 40-45 दिनों के बाद यह गट्ठर कंपोस्ट के रूप में खेतों में डालने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है। पार्थेनियम घास के सफल नियंत्रण के बाद देश को करोड़ों रुपये के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन से छुटकारा मिल सकेगा।

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