Indian poet

दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है

दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है ज़र्रों में रौशनी-ए-तजल्ली-ए-तूर है इक आफ़्ताब-ए-रुख़ की ज़िया दूर दूर है कोसों ज़मीन अक्स से दरिया-ए-नूर है अल्लाह-रे हुस्न तबक़ा-ए-अम्बर-सरिश्त का मैदान-ए-कर्बला है नमूना बहिश्त का हैराँ ज़मीं के नूर से है चर्ख़-ए-लाजवर्द मानिंद-ए-कहरुबा है रुख़-ए-आफ़्ताब-ए-ज़र्द है रू-कश-ए-फ़ज़ा-ए-इरम वादी-ए-नबर्द उठता है ख़ाक से …
साहित्य 

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार या इलाही ये माजरा क्या है मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ काश पूछो कि मुद्दआ’ क्या है जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है ये परी-चेहरा लोग कैसे …
साहित्य 

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़ तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना …
साहित्य 

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं मैं मुंतज़िर हूँ मगर तेरा इंतिज़ार नहीं हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत पे ए’तिबार नहीं न जाने …
साहित्य 

Birthday Special: टाइटल गीत लिखने में माहिर थे हसरत जयपुरी, जानें उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें

मुंबई। बॉलीवुड गीतकार हसरत जयपुर ने अपने सिने करियर के दौरान कई तरह के गीत लिखे, लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। हिन्दी फिल्मों के स्वर्णयुग के दौरान टाइटल गीत लिखना बडी बात समझी जाती थी। निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी, हसरत जयपुरी से …
मनोरंजन 

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया कौन रोता …
साहित्य 

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा जिस तरह से थोड़ी सी तिरे साथ कटी है बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा वैसे तो तुम्हीं …
साहित्य 

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ जो कहा नहीं …
साहित्य