जानिए क्या था शिवाजी को लूटेरे और पहाड़ी चूहा कहने का रहस्य?

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हमारे कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शिवाजी धोकेबाज, लूटेरे और पहाड़ी चुहे थे? ऐसा कहने वाले इतिहाकार तो मर गए और अब कुछ गिने-चुने ही हैं जो ऐसा कहने की हिम्मत नहीं रखते। दरअसल, ऐसे इतिहासकारों का उद्देश्य रहा है कि ढूंढ-ढूंढ कर भारत के गौरव को नष्ट, भ्रष्ट और भ्रमित किया जाए। आप सोचिये, …

हमारे कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शिवाजी धोकेबाज, लूटेरे और पहाड़ी चुहे थे? ऐसा कहने वाले इतिहाकार तो मर गए और अब कुछ गिने-चुने ही हैं जो ऐसा कहने की हिम्मत नहीं रखते। दरअसल, ऐसे इतिहासकारों का उद्देश्य रहा है कि ढूंढ-ढूंढ कर भारत के गौरव को नष्ट, भ्रष्ट और भ्रमित किया जाए।

आप सोचिये, जिनके गुरु समर्थ रामदास, जिनकी ईष्ट और कुलदेवी तुलजा भवानी और जिनकी मां परम धार्मिक प्रवृत्ति की थी वे कैसे लुटेर और चुहे हो सकते हैं। चलिए ये बात छोड़ भी दें तो जरा उनका जीवन परिचय भी अच्छे से पढ़ लेते हैं। भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में सभी लोग जानते हैं। बहुत से लोग इन्हें हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं तो कुछ लोग इन्हें मराठा गौरव कहते हैं, जबकि वे भारतीय गणराज्य के महानायक थे। उन पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाया जाता है जो कि सच नहीं है।

सत्य इसलिए नहीं कि उनकी सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी थे तथा अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। उन्होंने विदेशी लोगों से भारत की भूमि की रक्षा की थी। मुगल विदेशी थे। तुर्क थे। वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था। इसी कारण निकट अतीत के राष्ट्रपुरुषों में महाराणा प्रताप के साथ-साथ इनकी भी गणना की जाती है।

धोकेबाज नहीं थे शिवाजी: शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी ने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा।

उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं। इस घटना के आधार पर लोग शिवाजी को धोकेबाज कहते हैं जबकि धोका तो अफजल खां करने वाला था।

गुरिल्ला युद्ध के अविष्कारक: दरअसल, शिवाजी चारों और से अपने दुश्मनों से घिरे हुए थे। उनके लिए शक्ति से कहीं ज्यादा नीति की जरूत भी थी। ऐसे में शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरम्भ किया। उनकी इस युद्ध नीती से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंगल जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित ‘शिव सूत्र’ में मिलता है।

गोरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रुसेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं। उनकी इसी नीति के कारण विरोधियों ने उन्हें पहाड़ी चुहा घोषित कर दिया।

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