गुरुद्वारा रीठा साहिब: जब गुरुनानक देव ने अपनी अलौकिक शक्तियों से कड़वे रीठे का स्वाद मीठा कर दिया
देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि में ऐसे अलौकिक धाम हैं जहां आकर न केवल मन की शांति मिलती है बल्कि सच्चे मन की मुरादें भी पूरी होती हैं। गुरुद्वारा रीठासाहिब न सिर्फ सिख संगतों का अटूट आस्था का केंद्र है। चंपावत जिले में लधिया व रतिया नदी के संगम की बीच गुरुद्वारा रीठा साहिब स्थित …
देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि में ऐसे अलौकिक धाम हैं जहां आकर न केवल मन की शांति मिलती है बल्कि सच्चे मन की मुरादें भी पूरी होती हैं। गुरुद्वारा रीठासाहिब न सिर्फ सिख संगतों का अटूट आस्था का केंद्र है। चंपावत जिले में लधिया व रतिया नदी के संगम की बीच गुरुद्वारा रीठा साहिब स्थित है। कहा जाता है कि गुरुनानक देव अपने जीवनकाल में यहां आए थे। जिसके बाद यह पावन स्थल सिख संगत के साथ ही देश-दुनिया के लोगों के लिए अपार आस्था का केंद्र बन गया।

जब गुरुनानक देव की दृष्टि ने कड़वा रीठा मीठा कर दिया
रीठा साहिब के गुरुद्वारे से जुड़ी एक मान्यता काफी प्रचलित है। बताते हैं कि 1501 में गुरुनानक देव अपने शिष्य बाला और मरदाना के साथ रीठा साहिब आए थे। इस दौरान बाला और मरदाना को भूख लगी थी, तब यहां केवल रीठे के ही पेड़ थे। असमंजस थी कि क्या खाया जाए लेकिन गुरुनानक देव की दृष्टि पड़ने से पेड़ में लगे रीठे मीठे हो गए। पेड़ के एक हिस्से में रीठे कड़वे स्वाद से मीठे में बदल गए जबकि पेड़ का एक हिस्सा आज भी कड़वा है।
रीठा साहिब के ग्रंथी ओमकार सिंह ने बताया कि इस दौरान गुरु नानक देव ने सिद्ध गोष्ठी भी की थी। सिद्ध गुरु गोरखनाथ के चेले ढेरनाथ के साथ गुरु नानक देव की भेंट यहीं हुई थी। यही वजह है कि गुरुद्वारा रीठा साहिब आने वाले श्रद्धालु मत्था टेककर मन्नतें मांगते हैं और मीठे रीठे का प्रसाद चखते हैं।
