कागभुशंडी ताल, आस्था का केंद्र… यहां सबसे पहले सुनी गई थी रामायण की कथा
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले का एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है जोशीमठ, यहां सनातन संस्कृति के दीदार के साथ ही पवित्र शक्तिपीठों के दर्शन होते हैं। जोशीमठ के पास कांकुल दर्रे से करीब 4730 मीटर की ऊंचाई पर पवित्र कागभुशंडी ताल है। कागभुशंडी झील हिमालयी क्षेत्र की सबसे ऊंची झीलों में से एक है। …
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले का एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है जोशीमठ, यहां सनातन संस्कृति के दीदार के साथ ही पवित्र शक्तिपीठों के दर्शन होते हैं। जोशीमठ के पास कांकुल दर्रे से करीब 4730 मीटर की ऊंचाई पर पवित्र कागभुशंडी ताल है।
कागभुशंडी झील हिमालयी क्षेत्र की सबसे ऊंची झीलों में से एक है। लंबाई में लगभग 1 किलोमीटर तक फैली हुई कागभुशंडी ताल एक आयताकार झील है, जो हाथी पर्वत के तल पर फैली हुई है। इस झील का जितना प्राकृतिक महत्व है, उतना धार्मिक महत्त्व भी है।

इस झील का नाम रामायण के पात्र कागभुशंडी के नाम पर रखा गया है। इस झील का पानी हल्का हरा होता है और इसके किनारों पर गुलाबी, मौवे, ऑरेंज, प्यूरीज, पेरीविंक ब्लू, क्रिमसन, गेरू रंग के फूल खिलते हैं। यह क्षेत्र प्राकृतिक विविधता के लिए संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में आता है।
कागभुशंडी ताल की यात्रा के दौरान नीलकंठ, चौखंबा और नर-नारायण की चोटियों के खूबसूरत नजारों के दीदार होते हैं। यहां हरी घास के मैदान, कल-कल छल-छल नदियां और अल्पाइन वन से सजा हुआ कागभुशंडी ट्रैक बेहद सुकून देना होता है। इस ट्रेक रूट में बड़ी झाड़ियों, नदियों, ग्लेशियरों, दरारों और फिसलन वाले चट्टानी क्षेत्र का सामना करना पड़ता है। कागभुसंडी ताल के ऊपर दो विशाल अनियमित आकार की चट्टानों को हाथी पर्वत के किनारे पर बैठे देखा जा सकता है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार वे कागा (कौवा) और गरुड़ (ईगल) हैं, जो चर्चा कर रहे हैं।

जब लोमश ऋषि के शाप के कारण कौवा बन गए कागभुशंडी
मान्यता है कि लोमश ऋषि के शाप के कारण कागभुशंडी कौवा बन गए थे। साथ ही लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया था। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन कौवा बनकर ही व्यतीत किया। कागभुशंडी ने वाल्मीकि से पहले ही रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।
दरअसल, युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने भगवान राम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने भगवान राम को नागपाश मुक्त कराया। भगवान राम के नागपाश से बंध जाने पर गरूड़ को उनके भगवान होने पर शक हुआ। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद ने उन्हें ब्रह्मा जी के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव के पास भेजा और भगवान शिव ने उन्हें कागभुशंडी के पास भेज दिया। अंत में कागभुशंडी ने गरूड़ को राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर उनके संदेह को दूर किया।

कागभुशंडी ताल तक जाने के हैं दो रास्ते
कागभुशंडी ताल पहुंचने के लिए पहले जोशीमठ पहुंचना होगा। इससे आगे कागभुशंडी ताल तक जाने के दो रास्ते हैं। एक भुइंदर गांव से घांघरिया के पास से जाता है, जबकि दूसरा गोविंद घाट से जाता है। यहां से निकटतम हवाई अड्डा देहरादून स्थित जॉलीग्रांट हवाई अड्डा है। कागभुशंडी ताल से जॉलीग्रांट हवाई अड्डे की दूरी करीब 132 किलोमीटर है। जॉलीग्रांट हवाई अड्डे से कागभुशंडी ताल के लिए टैक्सी सुविधा है। कागभुरांडी ताल से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। यहां से सड़क मार्ग से जोशीमठ तक पहुंचा जा सकता है।
