गंगोत्री धाम, जहां भागीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए की थी तपस्या

गंगोत्री धाम, जहां भागीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए की थी तपस्या

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के चारधामों में से एक है गंगोत्री धाम जो कि भागीरथी नदी के तट पर बसा है और गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है। गंगोत्री नाम से तात्पर्य है गंगा का उत्तर की ओर बढ़ना, यह गंगा नदी का उद्गम स्थान गौ मुख से करीब 17 किमी पहले …

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के चारधामों में से एक है गंगोत्री धाम जो कि भागीरथी नदी के तट पर बसा है और गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है। गंगोत्री नाम से तात्पर्य है गंगा का उत्तर की ओर बढ़ना, यह गंगा नदी का उद्गम स्थान गौ मुख से करीब 17 किमी पहले पड़ता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार गंगोत्री ही वह जगह है जहां भागीरथ ने गंगा को धरती पर ले आने के लिए घोर तपस्या की थी भगीरथ के पूर्वज कपिलमुनि के क्रोध से भस्मीभूत हो गए थे। अपने इन्हीं पूर्वजों, जो कि सगर के पुत्र थे, के तारण के लिए वे गंगा को धरती पर लाना चाहते थे। उन्होंने श्रीमुख पर्वत पर घोर तपस्या की और ब्रह्मा के कमंडल में रहने वाली गंगा को धरती पर आने के लिए राजी कर लिया। सवाल यह था कि गंगा जब धरती पर आएगी तो उसके प्रचंड वेग को कौन संभालेगा, इसके लिए शिव राजी हुए। शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को संभाल लिया. वहां से भगीरथ अपने तप के प्रताप से गंगा को गंगासागर ले गए, उन्हीं राजा भगीरथ का मंदिर भी गंगोत्री में है।

यह भी कहा जाता है कि महाभारत में पांडवों द्वारा गोत्र, गुरु, बंधु हत्या के बाद जब शिव उनसे नाराज हो गए थे तो पांडवों ने गंगोत्री में ही शिव की अराधना की गंगोत्री में भगवान शिव के दर्शन करने के बाद पांडव स्वर्गारोहिणी के लिए निकल पड़े थे। यहां पर भगीरथ के मंदिर के अलावा गंगा का एक मंदिर भी है कहते हैं कभी यहां कोई मंदिर नहीं था, उन्नीसवीं सदी में गोरखा शासक अमर सिंह थापा ने यहां एक छोटा सा मंदिर बनवाया। यह मंदिर उसी शिला पर बनाया गया था जिस पर बैठकर भगीरथ ने तपस्या की थी।

अमर सिंह थापा ने ही मुखबा के सेमवाल ब्राह्मणों को यहां का पुजारी नियुक्त किया। मुखबा गांव ही गंगा का शीतकालीन प्रवास भी है। शीतकाल में जब गंगोत्री के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तब उनकी पूजा-अर्चना मुखबा के गंगा मंदिर में ही की जाती है। गंगोत्री में मौजूद भगीरथ शिला के पास ही ब्रह्म कुंड, सूर्यकुंड, विष्णुकुंड है, जहां पर श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद अपने पितरों का पिंडदान किया करते हैं।

नवम्बर में गंगोत्री के कपाट शीतकाल के लिए, दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन, बंद कर दिए जाते हैं, इसके बाद अक्षय तृतीया के दिन भव्य समोराह में कपट पुनः खोले जाते हैं। कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण जयपुर के राजपूत राजाओं द्वारा करवाया गया था. इस मंदिर में मां गंगा की भव्य प्रतिमा है. इसके अलावा जाह्नवी, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, भागीरथी, सरस्वती तथा आदि शंकराचार्य की मूर्तियां भी इस मंदिर में हैं।

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