निवारक नजरबंदी कानून के तहत प्राप्त शक्तियां असाधारण, नियमित तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकती

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

  नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि निवारक नजरबंदी कानून के तहत प्रदत्त शक्तियां ”असाधारण” हैं और इसे नियमित रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कड़ा प्रहार करती हैं। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी तब आई, जब उसने तेलंगाना में दो व्यक्तियों को नजरबंद करने …

 

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि निवारक नजरबंदी कानून के तहत प्रदत्त शक्तियां ”असाधारण” हैं और इसे नियमित रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कड़ा प्रहार करती हैं। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी तब आई, जब उसने तेलंगाना में दो व्यक्तियों को नजरबंद करने संबंधी पिछले साल अक्टूबर का आदेश रद्द कर दिया। राचकोंडा कमिश्नरी के पुलिस आयुक्त द्वारा इस आधार पर नजरबंदी आदेश पारित किया गया था कि ये दोनों व्यक्ति सोने की चेन छीनने के अपराधों में शामिल थे, जिससे पीड़ित ज्यादातर महिलाएं थीं।

न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हालांकि अधिकारियों के अनुसार, हिरासत में लिये गये दोनों युवक 30 से अधिक मामलों में शामिल थे, लेकिन चेन छीनने के केवल चार मामलों को नजरबंदी का आधार माना गया, क्योंकि अन्य मामले पिछली अवधि के थे और आयुक्तालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर भी थे। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इन चार मामलों में अपराध कथित तौर पर पिछले साल छह मई से 26 जुलाई के बीच किए गए थे और इन मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा दोनों बंदियों को जमानत दी गई थी।

पीठ ने कहा, ”निवारक नजरबंदी कानून के तहत प्रयोग की जाने वाली शक्तियां असाधारण शक्तियां हैं जो सरकार को एक असाधारण स्थिति में अपने इस्तेमाल के लिए दी गई हैं, क्योंकि यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कड़ी चोट करती है, और इसका नियमित तरीके से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।” शीर्ष अदालत ने 22 जून को बंदियों की पत्नियों द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने इस साल 25 मार्च को तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एहतियाती नजरबंदी के खिलाफ उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।

अपने आदेश में, शीर्ष अदालत ने कहा कि नजरबंदी कानून के प्रावधानों को लागू करने को उचित ठहराने को लेकर अधिकारियों द्वारा सौंपे गए कारणों में से एक यह था कि बंदियों को सभी चार मामलों में जमानत दी गई थी और उनके समान अपराध में लिप्त होने की संभावना थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में दो व्यक्तियों के खिलाफ निवारक नजरबंदी कानून लागू करना ‘उचित नहीं’ था। इसने कहा कि कानून और व्यवस्था की स्थिति और सार्वजनिक व्यवस्था की स्थिति के बीच अंतर को शीर्ष अदालत ने कई फैसलों में बताया है। अपीलों की अनुमति देते हुए, पीठ ने नजरबंदी आदेश के साथ-साथ उच्च न्यायालय के आदेश को भी खारिज कर दिया और कहा कि अगर किसी अन्य मामले में दोनों की आवश्यकता नहीं है तो उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाए।

यह भी पढ़े –जम्मू कश्मीर के लिए जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना सम्मान की बात: सिन्हा

संबंधित समाचार