लखनऊ: आठ सौ से अधिक सरकारी वकीलों की आबद्धता हुई समाप्त, नये वकीलों को दिया जाएगा मौका
लखनऊ। यूपी में इलाहाबाद HC और लखनऊ खंडपीठ के आठ सौ से अधिक सरकारी वकीलों की सेवा समाप्त कर दी गई है। उसकी जगह अब नये वकीलों को मिलेगा मौका दिया जाएंगा। आपको बतादें की सरकारी करीब आठ सौ से अधिक वकीलों की आबद्धता समाप्त कर दी गई है। उनकी जगह अब सेवा में नए …
लखनऊ। यूपी में इलाहाबाद HC और लखनऊ खंडपीठ के आठ सौ से अधिक सरकारी वकीलों की सेवा समाप्त कर दी गई है। उसकी जगह अब नये वकीलों को मिलेगा मौका दिया जाएंगा।
आपको बतादें की सरकारी करीब आठ सौ से अधिक वकीलों की आबद्धता समाप्त कर दी गई है। उनकी जगह अब सेवा में नए वकीलों की नियुक्ती हुई है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उप्र में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार-2 ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में 366 और हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में 220 नए सरकारी वकील नियुक्त किए हैं।
वहीं पिछली सरकार के कार्यकाल में नियुक्त हुए लगभग 841 वकील (राज्य विधि अधिकारी) हटेंगे, क्योंकि उनके कार्यकाल का नवीनीकरण नहीं किया गया। हटने वाले तमाम वकील ऐसे हैं जिनकी सम्बद्धता अवधि का समय-समय पर विस्तार होता रहा है, लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं हो सका।
परिवर्तन की इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से वादों की प्रभावी पैरवी करने के लिए मुख्य स्थायी अधिवक्ता- द्वितीय अभिनव नारायण त्रिवेदी की उच्च न्यायालय लखनऊ खण्डपीठ, लखनऊ के पद से आबद्धता समाप्त करते हुए उन्हें मुख्य स्थायी अधिवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
शासन के विशेष सचिव निकुंज मित्तल की ओर से जारी 1 अगस्त 2022 के आदेश में स्पष्टतौर पर उच्च न्यायालय खण्डपीठ लखनऊ में पूर्व से आबद्ध मुख्य स्थायी अधिवक्तागण को पुनक्रर्मांकित किया गया है।
इस क्रम में प्रशान्त सिंह अटल को मुख्य स्थायी अधिवक्ता प्रथम, शैलेन्द्र कुमार सिंह को मुख्य स्थायी अधिवक्ता द्वितीय, रवि सिंह सिसोदिया को मुख्य स्थायी अधिवक्ता तृतीय, दीप शिखा को मुख्य स्थायी अधिवक्ता चतुर्थ, सुनीता सचान को मुख्य स्थायी अधिवक्ता पंचम और अजय कुमार सिंह को मुख्य स्थायी अधिवक्ता षष्टम, के नामों, पदनामों का उल्लेख है।
मालूम हो कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से विचार और परामर्श करने के बाद की जाती है। वहीं जिला न्यायालय में वकीलों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। गौरतलब है कि सरकार की ओर से सम्बद्धता पर नियुक्त होने वाले वकीलों का स्थायी वेतनमान नहीं होता।
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