मदरसों के सर्वेक्षण से पहले मुस्लिम समुदाय को भरोसे में लिया जाना चाहिए था: जमीयत

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वेक्षण की तैयारी को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मंगलवार को कहा कि यह कदम उठाने से पहले मुस्लिम समुदाय को भरोसे में लिया जाना चाहिए था। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में यह सवाल भी किया कि …

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वेक्षण की तैयारी को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मंगलवार को कहा कि यह कदम उठाने से पहले मुस्लिम समुदाय को भरोसे में लिया जाना चाहिए था। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में यह सवाल भी किया कि मदरसों के अलावा उन शिक्षण संस्थानों का सर्वेक्षण क्यों नहीं किया जा रहा है जो मान्यताप्राप्त नहीं हैं? उन्होंने आरोप लगाया कि विभाजनकारी ताकतों द्वारा मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है और इस तरह की मानसिकता की वजह से मुसलमानों की जेहन में चिंता है।

उन्होंने कहा, सर्वेक्षण के ऐलान से पहले मुस्लिम समुदाय और संगठनों को भरोसे में लिया जाना चाहिए था। यह बता दिया जाता कि सर्वेक्षण से कोई नुकसान नहीं है। अगर हमें यह बता दिया जाता कि सरकार यह जानना चाहती है कि कितने ऐसे मदरसे हैं जो बोर्ड से संबद्ध नहीं हैं, बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, मदरसे की ज़मीन किन लोगों की है। मदनी ने कहा, इन तमाम चीज़ों को मालूम किया जाए तो इसमें कोई ऐतराज़ नहीं है। पहले दिलों को संतुष्ट करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार ने गत 31 अगस्त को राज्य में संचालित सभी गैर मान्यता प्राप्त निजी मदरसों का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके लिए 10 सितंबर तक टीम गठित करने का काम खत्म कर लिया गया है। आदेश के मुताबिक 15 अक्टूबर तक सर्वे पूरा करके 25 अक्टूबर तक रिपोर्ट सरकार को सौंपने को कहा गया है। प्रदेश में इस वक्त लगभग 16 हजार निजी मदरसे हैं जिनमें प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद भी शामिल हैं। राज्य सरकार के फैसले के बाद अब इनका भी सर्वे किया जाएगा।

ये भी पढ़ें- चुनाव लड़ने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं : न्यायालय

 

 

संबंधित समाचार