इटावा: टीबी से ज्यादा सीओपीडी से थम रही मरीजों की सांसे

ठंड के मौसम में बढ़ता है खतरा रहें सावधान 

इटावा: टीबी से ज्यादा सीओपीडी से थम रही मरीजों की सांसे

इटावा, अमृत विचार। क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों को ठंड में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है। विश्व सीओपीडी दिवस पर उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई के पल्मोनोलाजी विभाग के आयोजित संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ आदेश कुमार ने कहा कि टीवी से ज्यादा सीओपीडी से मरीजों की सांसें थम रहीं हैं। जागरूकता के माध्यम से ही इस रोग से बचाव किया जा सकता है। 

प्रो.डॉ आदेश कुमार ने कहा अक्सर लोग सांस फूलने और खांसी को उम्र बढ़ने का सामान्य हिस्सा मानते हैं। शुरुआती चरणों में बीमारी का पता नहीं चलता। गंभीर होने पर फेफड़ों के अंदर और बाहर वायु प्रवाह में रुकावट होना शुरू हो जाती है, जिससे रोगी का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। लगातार धूमपान की वजह से यह कैंसर का रूप धारण कर लेता है। सीओपीडी उन लोग में भी हो सकता है, जिनका कार्यस्थल में रसायन, धूल या धुंए के साथ लंबे समय तक संपर्क रहा हो।देश में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग लकड़ी का कोयला जलाकर खाना पकाते हैं, जिससे वे जहरीले धुंए के संपर्क में आ जाते हैं। यह धूमपान न करने वालों में सीओपीडी का एक प्रमुख कारण है। मौसम में बदलाव के साथसीओपीडी वाले लोगों में बीमारी का खतरा अधिक होता है। ठंड का मौसम सीओपीडी वाले मरीजों के फेफड़ों पर रोग के लक्षणों को बढ़ा देता है और श्वसन तंत्र में बदलाव के कारण उन्हें ज्यादा संक्रमित करता है।

सीओपीडी का कारण
सीओपीडी का प्रमुख कारण धूमपान है। भारत में लगभग 25 करोड़ लोग धूमपान करते हैं। हालांकि कुछ मामलों में यह रोग धूमपान न करने वालों को भी होता है। धूमपान के अतिरिक्त चूल्हे या उद्योगों से निकलने वाले धुएं, प्रदूषित वातावरण व टीबी का पुराना रोग इसकी वजह है।

प्रमुख लक्षण 
इस रोग के लक्षण मौसम में बदलाव के समय, वातावरण में अधिक प्रदूषण बढ़ने पर या अधिक ठंड पड़ने पर दिखते हैं। धीरे-धीरे यह लक्षण हमेशा रहते हैं और स्थिति ऐसी हो जाती है कि पीड़ित अपने दैनिक कार्य भी ठीक से नहीं कर पाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में लंबे समय तक खांसी आना, खांसी के साथ बलगम आना और चलने पर सांस फूलना शामिल है।

उपचार
कुछ वर्षों पूर्व तक इस बीमारी का इलाज नहीं था, लेकिन नए शोधों ने इनहेलर व दवाओं के प्रयोग से इसे नियंत्रित करने में सफलता पाई है। इसे परहेज और उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे बचने के लिए धूमपान से बचें। घर से बाहर निकलने पर मास्क का प्रयोग करें और चिकित्सक की सलाह पर दवाएं लेते रहें। इस रोग से बचाव के लिए चिकित्सक मरीज को दो अलग-अलग प्रकार के इनहेलर का प्रयोग कराते हैं, जिनमें अलग-अलग दवाएं होती हैं। यह चिकित्सकीय परीक्षण के बाद ही तय हो पाता है।