मेरठ : गाजर घास, पर्यावरण व मनुष्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

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Published By Sakshi Singh
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गाजर घास का सही समय पर प्रबंधन जरूरी है। यह, भारत ही नहीं बल्कि आज विश्व की समस्या है। जमीन गाजर घास की वजह से बंजर हो रही है। मनुष्य और जानवर भी इसके प्रभाव से पीड़ित हो रहे हैं।

मेरठ, अमृत विचार। गाजर घास (पार्थेनियम घास, Santa Maria feverfew) की उत्पत्ति मैक्सिको में हुई थी। लेकिन, आज यह घास भारत से लेकर विश्व तक के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है  खरपतवार गाजर घास सड़क के किनारे, रेलवे, बिना खेती वाले क्षेत्रफल व कभी-कभी फसल में पाया जाता है। जोकि, हमारे पर्यावरण, मनुष्य, जानवर एवं पौधों को बडे़ पैमाने पर नुकसान पहुंचाता है।

पार्थेनियम घास सर्वप्रथम पुणे में 1955 में पाई गई थी। गाजर घास एक शाखी एक वर्षीय जहरीला खरपतवार है। पार्थेनियम घास के पौधे में विभिन्न प्रकार जहरीले पदार्थ पाये जाते है जैसे कि पारथेनिन, कोरोनो प्लेन, लेकटोन नामक विषेले रसायन पाए जाते है। इससे जुड़ी बातें अमर सिंह डिग्री कॉलेज बुलंदशहर से गाजर घास प्रबंधन पर शोध कर रहे एक शोधार्थी ने बताया।

परथेनियम से स्वास्थ्य को खतरा
पार्थेनियम घास के पौधे में एलरजिग रसायन पाए जाते है। जब, कोई मनुष्य पार्थेनियम घास के सीधे स्पर्श में आता है तो उसमें स्कीन रोग जैसी बीमारियों से खतरा बढ़ जाता है और परथेनियम के पुष्प के परागगण मनुष्य के स्वास नली में चले जाने से अस्थमा जैसी बीमारियों का शिकार हो जाते है। 

परथेनियम घास का प्रबन्धन, गैर फसल की स्थिति
गाजर घास के पौधे को जड़ से उखाड कर मिट्टी में दबा देना चाहिए। 10 से 15 प्रतिशत् नमक के घोल का स्प्रे करना चाहिए। गलाईफोसेट एवं गलाईसीनेट अमोनियम की 1 से 1.2 किलो ग्राम हैक्टेयर स्प्रे करना चाहिए जिससे की प्रथनियम अच्छी तरह नियंत्रण हो जायेगा। 

फसल की स्थिति
फसल में गाजर घास को सही समय पर प्रबन्धन कर देना चाहिए, अन्यथा फसल की वृद्धि एवं उपज में प्रभाव पड़ता है। इसके प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित खरपतवार नाशी प्रयोग कर सकते हैं। एट्राजिन की 1.5 किलो मात्रा पर हैक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़काव करना चाहिए। पैन्डिमैथलीन की 1 से 1.5 किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करने से इस घास का अच्छे से प्रबन्धन कर सकते 

फिरोज सैफी, अमर सिंह डिग्री कॉलेज बुलंदशहर, शोधार्थी गाजर घास प्रबंधन

सही समय पर प्रबंधन जरूरी
गाजर घास प्रबंधन पर शोध कर रहे शोधार्थी फिरोज सैफी ने ये भी बताया कि गाजर घास का सही समय पर प्रबंधन जरूरी है। यह, भारत ही नहीं बल्कि आज विश्व की समस्या है। जमीन गाजर घास की वजह से बंजर हो रही है। मनुष्य और जानवर भी इसके प्रभाव से पीड़ित हो रहे हैं।

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