बरेली: अफसरों का गोलमाल तो कहीं बाबुओं ने बिछाया जाल, जानिए पूरा मामला

नगर निगम की बेशकीमती संपत्तियों के कई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड गायब, सालों से फायदा उठा रहे हैं नाजायज ढंग से जमीनों पर काबिज लोग

बरेली: अफसरों का गोलमाल तो कहीं बाबुओं ने बिछाया जाल, जानिए पूरा मामला

बरेली, अमृत विचार। यह लापरवाही है या कोई साजिश, बहरहाल अपनी कई बेशकीमती संपत्तियों के रिकॉर्ड गायब होने की वजह से नगर निगम को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसी वजह से करोड़ों की जमीनें लंबे समय से नाजायज कब्जे में हैं। कई मामले सामने आने के बावजूद ये रिकॉर्ड अब तक तलाश नहीं किए जा सके हैं। कहा जा रहा है कि नगर निगम के ही कुछ पुराने लोगों को इन संपत्तियों के बारे में पूरी जानकारी है और वे भी इसका फायदा उठा रहे हैं।

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इन्हीं संपत्तियों में एक बेशकीमती संपत्ति इंदिरा नगर में है जहां भूखंड संख्या 350 पर अक्षय बरातघर चल रहा है। नगर निगम की लिखापढ़ी में जिक्र है कि यह संपत्ति उसके राजस्व विभाग की है लेकिन इसके बावजूद इस संपत्ति का कोई रिकॉर्ड उसके पास उपलब्ध नहीं है। इसी वजह से इस संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए भी कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

इसी तरह शहामतगंज पेट्रोल पंप के पास दान की गई 23175 वर्ग गज जमीन पर टायर के गोदाम बने हुए हैं। इस जमीन पर 10 कमरे भी बने हुए हैं। यह जमीन रामपुर बाग में रहने वाले व्यापारी पीयूष अग्रवाल के परदादा सेठ कुमाऊंमल ने 1840 में अस्पताल बनाने के लिए दी थी। बकौल पीयूष, 1967 तक शहामतगंज में इस जमीन पर अस्पताल चलता था। इसके बाद उसे बंद कर दिया गया।

पीयूष कहते हैं कि पिछले साल जून में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दान की इस जमीन पर दानदाता के नाम से अस्पताल खोलने के निर्देश दिए तो उन्हें लगा था कि योगीराज में उनके परदादा का सपना पूरा हो जाएगा। सितंबर 2022 में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने मेयर और सीएमओ को इस बारे में पत्र भेजा तो मेयर उमेश गौतम इस जमीन का निरीक्षण करने पहुंचे। सरकार की मंशा के अनुरूप 20 बेड का अस्पताल खोलने की भी बात कही। इसके बाद नगर निगम में इस जमीन की पत्रावली मांगी गई तो उसका कुछ पता ही नहीं चला।

नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज है जमीन
स्वर्गीय सेठ कुमाऊमल की ओर से दान की गई यह 3664 वर्ग गज जमीन नर निगम की संपत्ति के रूप में दर्ज है। यह भी दर्ज है कि 1840 में यह नगर पालिका को दान दी गई थी। यह भूमि 1918 में नगर पालिका ने 99 वर्ष की लीज पर अस्पताल चलाने को दी थी। लीज की शर्त के अनुसार 30-30 साल में लीज का नवीनीकरण कराना था जो नहीं कराया गया। इसके उलट लीज की शर्तों का उल्लघंन कर अस्पताल की जमीन पर दुकानों का निर्माण करा लिया गया। जिला परिषद ने मौजूदा समय यहां दुकानें बनवा दी हैं। पहले यहां यूपी एग्रो को किराये पर जगह दी गई थी। मौजूदा समय में यहां पर जिला सहकारी बैंक और टायरों के गोदाम हैं। कई और दुकानें भी हैं।

कई दुकानों का नवीनीकरण नहीं हो पा रहा, कई संपत्तियां लीज खत्म होने के बाद भी कब्जे में
अमृत विचार : नगर निगम के रेंट विभाग की ऐसी कई फाइलें अलमारियों में बंद बताई जा रही हैं जिनकी वजह से कई संपत्तियों से राजस्व आने का रास्ता बंद हो गया है। तीन महीनों से ये अलमारियां खुली नहीं हैं। मामला जानकारी में होने के बावजूद अफसर उन्हें खुलवाकर फाइलों को देखने का समय नहीं निकाल पा रहे हैं।

शहर में नगर निगम की तमाम दुकानें हैं जो रेंट विभाग में रजिस्टर्ड है। नगर निगम इन दुकानों के आवंटियों से वार्षिक और मासिक किराया निगम लेता है। सूत्रों के मुताबिक धर्मदत्त सिटी अस्पताल के बाहर निगम की 28 दुकानें हैं जिनकी लीज खत्म हो चुकी है लेकिन रेंट की फाइलें सामने न आने की वजह से कोई इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है। इसी तरह टी रोज होटल की लीज भी खत्म हो चुकी है। तत्कालीन नगर आयुक्त अभिषेक आनंद के समय इसकी पत्रावली देखी गई थी। नगर निगम इस होटल की नीलामी की तैयारी कर रहा था लेकिन यह मामला भी अचानक शांत हो गया।

बताया जा रहा है कि यह होटल जिसे लीज पर दिया गया, मौजूदा समय वह होटल नहीं चला रहा। नगर निगम में अंदरखाने सवाल उठा था कि इस प्रकरण की जांच होनी चाहिए। लीज खत्म होने के बाद भी यदि होटल से किराया लिया गया है तो यह भी जांच हो कि किस अफसर के आदेश पर ऐसा हुआ। कहा जा रहा है कि नगर निगम के तत्कालीन अफसरों ने इस बारे में मौखिक आदेश दिया। अधीनस्थों ने उनके आदेश का पालन किया। अफसर तो तबादले पर बाहर चले गए, अब अधीनस्थ संदेह के घेरे में हैं।

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