बच्चों और किशोरों के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बहुत जरूरी : Study

बच्चों और किशोरों के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बहुत जरूरी : Study

ब्रिटिश कोलंबिया (कनाडा)। शारीरिक निष्क्रियता वैश्विक स्तर पर मौतों की चौथी सबसे बड़ी वजह है। विभिन्न अध्ययनों में शारीरिक निष्क्रियता के दीर्घकालिक बीमारियों और अक्षमता से गहरे संबंध भी पाए गए हैं। एक हालिया अनुसंधान में आशंका जताई गई है कि अगर लोग शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय नहीं होंगे, तो 2030 तक वैश्विक स्तर पर प्रमुख दीर्घकालिक बीमारियों से ग्रसित लगभग 50 करोड़ नए मरीज सामने आ सकते हैं। टहलना, साइकिल चलाना या पसंदीदा खेल खेलना शारीरिक रूप से सक्रिय रहने का सबसे आसान और कारगर तरीका है।

नियमित रूप से इन गतिविधियों का अभ्यास करने से कई दीर्घकालिक बीमारियों से बचाव और निदान में मदद मिलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पांच से 17 साल तक के बच्चों और किशोरों को रोजाना औसतन 60 मिनट तक मध्यम या तीव्र स्तर का व्यायाम करने की सलाह देता है। व्यायाम में कम से कम तीन दिन तीव्र एअरोबिक गतिविधियों के अलावा हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाने वाली कसरत जरूर शामिल की जानी चाहिए। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों को स्क्रीन (टेलीविजन, कंप्यूटर, स्मार्टफोन) पर दिनभर में दो घंटे से अधिक समय गुजारने की छूट नहीं दी जानी चाहिए।

 इन उपायों का मकसद न सिर्फ बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखना है, बल्कि उनकी बौद्धिक क्षमता में सुधार लाना भी है। कोविड-19 महामारी की दस्तक के पहले से ही बच्चों और किशोरों की शारीरिक सक्रियता का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित मानक से कम था। वर्ष 2016 में दुनियाभर में 11 से 17 साल के 81 फीसदी बच्चे शारीरिक रूप से असक्रिय माने जाते थे। लड़कियां, लड़कों के मुकाबले ज्यादा असक्रिय थीं। महामारी ने स्थितियां और बिगाड़ दी हैं। बच्चों और किशोरों में शारीरिक निष्क्रियता वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता बन गई है। इसे अब वैश्विक कार्य योजनाओं में शामिल किया गया है। 

‘एक्टिव हेल्दी किड्स ग्लोबल एलायंस’ ने हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित किया है, जो बच्चों और किशोरों में शारीरिक सक्रियता के स्तर का व्यापक मूल्यांकन करता है। अक्टूबर 2022 में प्रकाशित इस शोध में कोविड-19 से पहले और उसके प्रकोप के दौरान जुटाया गया डेटा शामिल किया गया है। इसमें पाया गया है कि बच्चों और किशोरों में शारीरिक सक्रियता के स्तर में कोई सुधार नहीं आया है। वैश्विक स्तर पर लगभग एक-तिहाई बच्चे और किशोर ही पर्याप्त शारीरिक गतिविधियां करते हैं। जबकि, एक-तिहाई से थोड़े अधिक बच्चे और किशोर ही बेहतर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनुशंसित स्क्रीन टाइम का पालन करते हैं। 

कोविड का असर
हमारे अध्ययन में शामिल ज्यादातर विशेषज्ञ इस बात से सहमत थे कि बचपन की शारीरिक निष्क्रियता एक सतत सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है और कोविड-19 महामारी ने इसे और भी बदतर बना दिया है। 90 फीसदी से ज्यादा विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड-19 का बच्चों की सक्रियता, खेल-कूद और शारीरिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। हमारे अध्ययन के निष्कर्ष कई अन्य अध्ययनों द्वारा समर्थित हैं। महामारी की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान स्कूल और पार्क बंद कर दिए गए, जिससे बच्चों की शारीरिक सक्रियता प्रभावित हुई। एक अध्ययन से पता चला कि महामारी के दौरान बच्चों की मध्यम से तीव्र गति की शारीरिक सक्रियता में रोजाना 17 मिनट की कमी आई। यह रोजाना के लिए निर्धारिक मानक (60 मिनट) का लगभग एक-तिहाई समय है। एक अन्य अध्ययन में देखा गया कि कोविड-19 संबंधी प्रतिबंध लागू किए जाने के 30 दिन बाद लोगों द्वारा रोजाना चले जाने वाले कदमों में औसतन 27.3 प्रतिशत की कमी आ गई। यह अध्ययन 187 देशों में किया गया था।

 हमारा अध्ययन
हमारे अध्ययन में चार अफ्रीकी देश-बोत्सवाना, इथियोपिया, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे शामिल थे। इसमें बच्चों और किशोरों को ‘ए+’ से लेकर ‘एफ’ तक ग्रेड दिए गए। ‘ए+’ ग्रेड का मतलब था कि 94 से 100 प्रतिशत बच्चे और किशोर अनुशंसित स्तर पर खरे उतरते थे। वहीं, ‘एफ’ ग्रेड का अर्थ था कि 20 फीसदी से भी कम बच्चे और किशोर निर्धारित मानक को पूरा करते हैं। चारों अफ्रीकी देशों के बच्चे और किशोर दुनिया के बाकी हिस्सों के बच्चों और किशोरों के मुकाबले शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय थे। उन्हें ‘सी’ ग्रेड हासिल हुआ, जिसका मतलब है कि 47 से 53 फीसदी बच्चे और किशोर अनुशंसित मानक पर खरे उतरते हैं। वहीं, बाकी दुनिया को ‘डी’ ग्रेड दिया गया, जिसका अर्थ है कि 27-33 प्रतिशत बच्चे और किशोर ही निर्धारित मानक को पूरा करते हैं। इन चार अफ्रीकी देशों के अधिक बच्चे सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते थे (बी- ग्रेड, 60 से 66 फीसदी), उनमें निष्क्रियता का स्तर कम था (सी- ग्रेड, 40 से 46 प्रतिशत) और वे शारीरिक रूप से ज्यादा फिट थे (सी+ ग्रेड, 54 से 59 फीसदी), जबकि शेष दुनिया के बच्चों और किशोरों को इन मामलों में क्रमश: सी-, डी+ और सी- ग्रेड हासिल था। अफ्रीकी देशों का प्रदर्शन बेहतर होने की वजह वहां के बच्चों और किशोरों का शारीरिक सक्रियता पर ध्यान देना नहीं है। बल्कि इसके लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी और वित्तीय चुनौतियां जिम्मेदार हैं, जिसके चलते बच्चों को पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

आगे का रास्ता
हमें बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। स्कूलों में लंच ब्रेक के दौरान बच्चों को खेलने-कूदने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उनके लिए पाठ्येतर गतिविधियां संचालित की जानी चाहिए। इसके अलावा, सरकारों को मुक्त एवं सुरक्षित सार्वजनिक स्थल, हरित क्षेत्र, मैदान और खेल प्रतिष्ठान उपलब्ध कराने पर जोर देना चाहिए।

ये भी पढ़ें:- पाकिस्तान के पेशावर शहर में फिदायीन हमला, मस्जिद के अंदर धमाके में 2 की मौत, 50 से ज्यादा घायल