तिल और मस्से का बदले रंग तो हो सकता है कैंसर

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केजीएमयू में 111वें स्थापना दिवस के अवसर पर हुई कार्यशाला 

यदि तिल या मस्से के रंग में तब्दीली आ रही है, खास तौर पर तिल या मस्सा भूरा या काला नजर आए। तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ये लक्षण कैंसर के भी हो सकते हैं।

अमृत विचार (लखनऊ) : शरीर पर तिल व मस्से को हल्के में लेना आपको भारी पड़ सकता है ये कैंसर का लक्षण भी हो सकता है। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टरों ने बुधवार को कही। यहां 111वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यशाला के मौके पर डॉक्टरों ने कहा कि यदि तिल या मस्से के रंग में तब्दीली आ रही है, खास तौर पर तिल या मस्सा भूरा या काला नजर आए। तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ये लक्षण कैंसर के भी हो सकते हैं।

इस बारे में डॉ. नसीम अख्तर ने बताया कि आमतौर पर लोग तिल या मस्से में होने वाले बदलाव को नजरअंदाज करते हैं। यह मरीज की सेहत के लिए नुकसानदेह होता है। त्वचा का कैंसर घातक होता है। तेजी से बढ़ता है। समय पर इलाज से मर्ज काबू में आ सकता है। ऑपरेशन बेहतर विकल्प हो सकता है।

लिवर के मरीज ऑपरेशन से पहले सचेत रहें

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केजीएमयू गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रूंगटा ने बताया लिवर के मरीजों को सेहत का खास खयाल रखने की जरूरत है। डॉक्टरों को भी ऐसे मरीजों के ऑपरेशन से पहले खून व अल्ट्रासाउंड समेत दूसरी जांच करानी चाहिए।

घाव न भरे तो रहें अलर्ट

डॉ. नसीम ने बताया कि आग में झुलसे मरीजों का घाव यदि लंबे समय तक नहीं भर रहा है। जले हुए हिस्से में यदि कोई गांठ पनप रही है। यह प्रक्रिया बहुत ही धीमी गति से होती है। आठ से 10 साल बाद गांठ उभरती है। इसका तुरंत इलाज कराना चाहिए।

दिक्कत देने वाले दांतों से हो सकता है कैंसर

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आपके मुंह में कुछ ऐसे दांत हैं जो मसूड़े या फिर अन्य भाग को घायल करते हैं तो यानी आड़े तिरछे दांत मुंह के कैंसर का कारण बन सकते हैं। ऐसे में इस तरह के दांतों को निकलवा देना ही बेहतर है। इसके अलावा जुबान में दर्द, मुंह से बदबू, तीन सप्ताह से ज्यादा दर्द रहित या दर्द के साथ मुंह का छाला, ये कुछ ऐसे सामान्य लक्षण हैं जो मुख कैंसर का कारण हो सकते हैं।

ऐसी स्थिति में लापरवाही भारी पड़ सकती है। ये जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के जनरल सर्जरी विभाग के 111वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यशाला के दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. अभिनव अरुण सोनकर ने दी है। डॉ. सोनकर ने कहा कि कैंसर का प्रथम स्टेज का इलाज पूरी तरह से संभव है ऐसे में जरूरी है कि समय का विशेष ध्यान रखा जाये। उन्होंने कहा कि यदि मुंह के भीतर कोई छाला जैसा भी लग रहा है और यह दर्द नहीं करता है तो और ठीक भी नहीं होता है तो बायोप्सी कराया जाना चाहिए, इस स्थिति में बहुत दिनों तक दवाओं के सहारे रहना भी मुसीबत खड़ा कर सकता है।

देर से इलाज होना बनता है मौत का कारण : डॉ. सोनकर के साथ पैनल डिस्कशन में शामिल हुए सर्जिकल अंकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार ने बताया कि कैंसर के मरीजों की मौत का बड़ा कारण इलाज देर से शुरू होना होता है। अभी भी काफी मरीज मर्ज की तीसरी स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों में यह चीज ज्यादा देखी जाती है। 80 फीसदी मरीज देर से ही अस्पताल पहुंचते हैं।

मुख कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू

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जनरल सर्जरी विभाग के डॉ. पारिजात सूर्यवंशी ने बताया कि भारत में मुख कैंसर के मामले ज्यादा होने की वजह से तंबाकू का सेवन है। शराब पीने और दांत की वजह से मुंह का कोई हिस्सा बार-बार कट जाना भी कैंसर की वजह बन सकता है। मुंह के कैंसर में सर्जरी ही सबसे बेहतर इलाज है। इसलिए समय रहते ही डॉक्टर की सलाह लेकर इसे कराना चाहिए।