सम्मेलन का रुख
रूस-यूक्रेन युद्ध एक महत्वपूर्ण चरण में पहुंच रहा है। अगले सप्ताह यह दूसरे वर्ष में प्रवेश कर जाएगा। तीन दिवसीय म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (एमएससी) में भी रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। उससे यूक्रेन युद्ध की शीघ्र समाप्ति की उम्मीद करना बेकार है। शुक्रवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि रूस को हराना चाहिए लेकिन कुचला नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने पश्चिमी देशों से यूक्रेन के लिए सैन्य समर्थन बढ़ाने का आग्रह किया और कहा कि वह लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्त्ज़ ने कहा कि हमारा देश यूक्रेन में बहुत जल्द लेपर्ड टैंक तैनात करेगा। यह टकराव की भाषा है। सुलह के लिए टैंक की तैनाती नहीं होती। म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का एक बड़ा मंच है।
हालांकि सम्मेलन निजी तौर पर आयोजित किया जाता है, इसलिए इसे जर्मन सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम नहीं मानना चाहिए। फिर भी ‘एमएससी‘में अमेरिकी वर्चस्व दिखता है, जिसकी वजह से यह सम्मेलन रूस से शत्रुता का केंद्र बनता रहा है। जानकारों के मुताबिक पश्चिमी देश एक देश के रूप में रूस के विघटन का सपना देख रहे हैं।
उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार वाले रूस के विघटन का क्या नतीजा होगा। राष्ट्रपति पुतिन ने सोवियत संघ का विघटन देखा है। वह रूस के विघटन के लिए प्रेरित किसी भी प्रयास को असफल बनाने को किसी भी हथियार का प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेंगे। उधर सम्मेलन के अवसर पर भारत के संबंध में दिए गए अमेरिका के पूंजीपति जॉर्ज सोरोस के बयान को भारत ने गंभीरता से लिया है। ध्यान रहे एमएससी की शुरुआत 1962 में एक जर्मन सैन्य अधिकारी एवाल्ड फोन क्लाइस्ट ने की।
सम्मेलन की पहुंच मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ साथ एशिया तक बढ़ गई। पिछले ही दशक में यह सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के सबसे अहम मंचों से एक बना जिसमें नियमित तौर पर विश्व नेता, मंत्री और रक्षा विशेषज्ञ हिस्सा लेते हैं। दो दशकों के इतिहास में पहली बार रूस को सम्मेलन में भाग लेने के लिए न्योता नहीं भेजा गया।
साफ है कि पश्चिमी देशों की ओर से रूस को डिपलोमेट तरीके से अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है। पुतिन को नहीं बुलाकर, वे उनकी औकात कम दिखाना चाहते हैं। जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अपनी बात कहने का अवसर मिला। तो क्या म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन का रुख एक पक्षीय माना जाए।
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