ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए परामर्श के परिणाम से अवगत कराने का केंद्र को निर्देश 

ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए परामर्श के परिणाम से अवगत कराने का केंद्र को निर्देश 

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए मसौदा नियमों पर हितधारकों के साथ परामर्श और विचार-विमर्श के परिणाम के बारे में सूचित करने के लिए केंद्र को छह सप्ताह का समय दिया है। अदालत दवाओं की अवैध ऑनलाइन बिक्री पर प्रतिबंध लगाने तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दवाओं एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए प्रकाशित मसौदा नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि इन मामलों का लंबित रहना केंद्र सरकार द्वारा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के आड़े नहीं आएगा जो ऑनलाइन फ़ार्मेसी द्वारा लाइसेंस के बिना दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने वाले अदालत के 12 दिसंबर, 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं।

केंद्र द्वारा दायर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन करने पर, अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत संघ ने अभी तक अगस्त 2018 की मसौदा अधिसूचना को अंतिम रूप नहीं दिया है और यह परामर्श एवं विचार-विमर्श के लिए लंबित है। पीठ ने कहा, ‘‘भारत संघ को परामर्श एवं विचार-विमर्श के परिणाम की सूचना देने और इस मामले में भारत संघ द्वारा अपनाए गए अंतिम रुख की भी जानकारी देने के लिए छह सप्ताह का समय दिया जाता है। 28 अगस्त, 2023 के लिए सूचीबद्ध किया जाए।

यह स्पष्ट किया जाता है कि 12 दिसंबर, 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ भारत संघ के कार्रवाई करने में वर्तमान मामलों का लंबित रहना आड़े नहीं आएगा। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए 28 अगस्त, 2018 की अपनी अधिसूचना में नियम, 1945 में नियमों को शामिल करने के लिए मसौदा संशोधन जारी किया था और केंद्र सरकार द्वारा विचार किए जाने के लिए सभी हितधारकों से आपत्तियों और सुझावों को मांगा था।

मंत्रालय ने स्थिति रिपोर्ट में कहा है कि इसके बाद, प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों के आधार पर, उचित विचार के बाद, आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशन के लिए मसौदा नियमों को अंतिम रूप दिया जा सकता है। इसने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अधिकारियों को प्रतिवेदन दिया है जो विचाराधीन है।

रिपोर्ट में कहा गया है, तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए, जिसमें विभिन्न हितधारकों से प्राप्त मसौदा अधिसूचना पर बड़ी संख्या में चिंताएं जताई गई हैं, उनके विचारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए और इस मामले पर और विचार-विमर्श की आवश्यकता है।" यह भी कहा गया है कि अधिकारियों को मसौदा नियमों पर विभिन्न हितधारकों से बहुत से अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं और उनमें से अधिकांश ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर मसौदा नियमों का विरोध किया है।

इसमें कहा गया है कि मसौदा अधिसूचना विचार-विमर्श के लिए लंबित है और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) विभिन्न संघों या प्रभावित पक्षों के साथ नए हितधारक परामर्श आयोजित करने पर विचार कर रहा है। स्थिति रिपोर्ट दवाओं की "अवैध" ऑनलाइन बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर दायर की गई थी।

मंत्रालय की अगस्त 2018 की अधिसूचना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता एसोसिएशन ‘साउथ केमिस्ट्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन ने कहा कि उचित नियमों के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के कारण होने वाले स्वास्थ्य खतरों की अनदेखी करते हुए नियम मसौदे को कानून के गंभीर उल्लंघन के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है।

याचिकाकर्ता जहीर अहमद ने इस तरह की गतिविधि पर रोक लगाने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद दवाओं की ऑनलाइन बिक्री जारी रखने को लेकर ई-फार्मेसी के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया है। याचिका में ई-फार्मेसी के खिलाफ कथित रूप से कोई कदम नहीं उठाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ भी अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया गया है। उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर, 2018 को अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ऑनलाइन फार्मेसी द्वारा लाइसेंस के बिना दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी थी।

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