भदोही का "लाल",क्रिकेट जगत में मचा रहा धमाल
अनिल त्रिगुणायत / "वेस्टइंडीज के खिलाफ पहले ही टेस्ट मैच की पहली पारी में शतक लगाने के बाद बेटे ने भारतीय समयानुसार सुबह तकरीबन 4:30 बजे मुझे फ़ोन किया। मुझसे बात करते समय भावुकता में उसकी जुबां लड़खड़ा रही थी। थोड़ी देर में वह रोने भी लगा। मैं भी भावना की बयार में बह गया, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। वास्तव में वह पल एक बाप-बेटे के लिए अलग सा था। उस वक्त उसने बहुत बात तो नहीं की। लेकिन, सुबकते हुए जब उसने मुझसे पूछा 'पापा मेरे परफार्मेंस से आप खुश तो हैं ना..? ...तो लगा कि मैं दुनिया का सबसे गर्वीला, प्रसन्न व सुखी सख्श हूं। बेटे की उपलब्धि पर बाप का मन मयूर हो जाना लाजिमी भी है।" यशस्वी और अपने मध्य हुए भाव भरे संवाद का जिक्र करते हुए पिता भूपेंद्र जायसवाल काफी विह्वल भी हो गए । जी हां,हम बात कर रहे हैं भारतीय क्रिकेट की नई सनसनी व यूपी के भदोही जिले के मूल निवासी यशस्वी जायसवाल की। चर्चा कर रहे है, करीब 21 बसंत देख चुके विश्व क्रिकेट के जगमगाते नक्षत्र की। सकारात्मक सोच,अथक प्रयास व धैर्य की मिसाल बने ध्रुव तारे की। विनम्रता,कर्मठता व निष्पक्ष सेवा भाव की प्रतिमूर्ति की। "जितना बडा विलेन आपके जीवन में आएगा, उतना बडा आप हीरो बन कर उभरोगे।" बस कभी हार न मानें और न कभी डरे। यशस्वी ने अपनी सफलता के लिए इस गुरुमंत्र को आत्मसात किया। आज जिस मुकाम पर वे खड़े हैं, उसका श्रेय उनकी कठोर तपस्या की बानगी है। आज युवा वर्ग समाज में अपनी पहचान, शक्ति और सत्ता चाहता है। लेकिन,इसे पाने के लिए कड़ी मेहनत जैसे विकल्प से विमुख दिखता है। सफलता का अपना नशा होता है।लेकिन,लंबी रेस के घोड़े अपने ऊपर वह "नशा" हावी नहीं होने देते। यशस्वी भी "लंबी दूरी के धावक" दिख रहे। आज क्रिकेट वर्ल्ड "जायसवाल" को "यशस्वी" के रूप में देख रहा है। टीम इंडिया के कप्तान रोहित शर्मा भी इस युवा क्रिकेटर के कायल हैं। कहा, "उसके पास प्रतिभा है। वह बड़े फलक पर परफॉर्म करने के लिए तैयार है। उसका टेंपरामेंट भी अद्भुत है। किसी भी स्टेज पर वह असहज नहीं दिखाई देता। इस युवा क्रिकेटर में काफी संभावनाएं हैं। टेस्ट मैच के पहले मैंने उससे कहा था कि वो पिच पर जाए और बिना किसी दबाव के खुलकर खेले। अपने को सही साबित करे।" सीनियर क्रिकेटरों की सलाह को यशस्वी ने गंभीरता से लिया व अपने पहले ही टेस्ट मैच में शतकवीर बन गया। कहा भी जाता है, "परिश्रम पूरे मनोयोग से करो ताकि सफलता शोर मचा दे।" वेस्टइंडीज के डोमीनिका में यशस्वी के बल्ले से निकले रनों ने वास्तव में उसे नामचीन क्रिकेटरों के बीच ला खड़ा किया है। उसकी बल्लेबाजी की चमक चहुंदिश रोशनी बिखेर रही है। लेकिन,लाख टके का सवाल है कि उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) की प्रतिभा खोजी टीम क्या यूं ही उदासीन व नींद में रहेगी? प्रदेश के होनहार क्रिकेटरों की प्रतिभा दम तोड़ती रहेगी? ट्रायल के दौरान यशस्वी को उपेक्षित किया जाना क्या यूपीसीए को कठघरे में नहीं खड़ा करती?
कहते हैं, "ईमानदारी से की गई मेहनत फल अवश्य देती है।" यशस्वी को भी ऐसा ही फल मिल रहा है। जब मुंबई आए थे, तब यूपी क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें अंडर-14 टीम के ट्रायल से निकाल दिया था। उन्हें चयन लायक नहीं समझा था। यह देखकर उनके स्थानीय कोच आरिफ खान भी दुखी हो गए थे। लेकिन, आरिफ को विश्वास था कि उनका शिष्य एक दिन अपनी "प्रतिभा का लोहा" जरूर मनवाएगा। उन्होंने आठ वर्षीय यशस्वी को क्रिकेट के गुर सिखाने का संकल्प लिया।यशस्वी ने भी उन्हें अपना शत-प्रतिशत देने का वचन दिया। कोच आरिफ को यह मालूम था कि इस होनहार का भविष्य बड़े शहर में ही बन पाएगा। उन्होंने यशस्वी के माता-पिता को अपने स्तर से समझाया और वर्ष 2009-10 में अपने दम पर मुंबई ले गए।आरिफ मुंबई में भी क्रिकेटरों को प्रशिक्षित करते हैं। उन्होंने बताया कि " पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं।" उन्होंने यशस्वी को इस तरह निखारा कि वह कम उम्र में ही सीनियर टीम के खिलाड़ियों को अपनी बल्लेबाज़ी से चौकानें लगा था। उसके ग्लांस,हुक शाट,कवर व स्ट्रेट ड्राइव देखते ही बनते हैं। "गरीबी एक अभिशाप भी होती है।" यह अधिकांश प्रतिभाओं को अपनी आगोश में ले भी लेती है। यशस्वी के पिता भूपेंद्र भदोही में चूने की दुकान चला किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते थे। यशस्वी का मुंबई में रहकर क्रिकेट का प्रशिक्षण लेने में धन बड़ी बाधा थी। लेकिन, "जहां चाह वहां राह" की कहावत को चरितार्थ करते हुए यशस्वी ने सारी बाधाओं पर पार पाया। इसमें उनके माता-पिता का योगदान तो था ही,प्रशिक्षक आरिफ की भूमिका भी कम नहीं है। उन्होंने अपने शिष्य को इस तरह "तरासा" कि वह आज टीम इंडिया की "रीढ़" बन गया है। बेहतर काम से जब नाम होने लगता है तो धन भी आने ही लगता है। वहीं यशस्वी के साथ भी हुआ। जिस मुंबई शहर में यशस्वी के पास सिर छिपाने के लिए छत नहीं थी..!आज उसने उसी मुंबई में उसने बड़ा फ्लैट खरीद लिया है। उसकी सफलता पर आज सभी इतरा रहे हैं। लेकिन, इसके पीछे कितनी मेहनत की गई है,वह केवल यशस्वी व उनके शुभचिंतक ही जानते हैं। सफलता का एक-एक पायदान पार करने वाले इस युवा खिलाड़ी ने अपनी बैटिंग से क्रिकेट जगत का ध्यान बरबस ही खींच लिया है।
यशस्वी के कोच आरिफ व पिता भुपेंद्र बताते हैं कि मुंबई के नालासोपारा इस होनहार क्रिकेटर का पहला आशियाना था। वह वहीं से अपने ग्रुप के साथ प्रैक्टिस करने आजाद मैदान जाया करता था। यशस्वी के चाचा का किराए का घर उतना बड़ा नहीं था, जहां रह कर वह अपना प्रशिक्षण जारी रख सकें। इसलिए वहां से हट वह काल्बादेवी डेयरी में रात के आशियाने की उम्मीद में काम करने लगा। एक दिन वहां ये कहते हुए यशस्वी का पूरा सामान फेंक दिया गया कि वह कुछ नहीं करता है। उनकी सहायता नहीं करता, बल्कि दिनभर क्रिकेट के अभ्यास के बाद थक कर चूर हो जाने के कारण सो जाता है। इसके बाद कई दिनों तक भूखे-प्यासे गुजरने के बाद यशस्वी को आजाद मैदान के टेंट में रहने की जगह मिल गई। भीषण गर्मी के दौरान उस टेंट में सो पाना बहुत मुश्किल होता था। इसलिए यशस्वी अक्सर रात में बीच मैदान बिस्तर लगा लेते थे। गुजारा करने के लिए आजाद मैदान में होने वाली रामलीला में यशस्वी पानीपुरी और फल बेचने में मदद करने लगे। ऐसी कई रातें आईं, जब साथ रहने वाले ग्राउंड्समैन से उनकी लड़ाई भी हुई। यशस्वी को कई बार भूखा ही सोना पड़ा। रामलीला के दौरान कई बार उसके साथ प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ी उसकी दुकान पर गोलगप्पे खाने आ जाते थे। उसे उस वक्त बहुत शर्म भी आती थी। वो देखता था कि दूसरे खिलाड़ियों के लिए उनके माता-पिता लंच लेकर आते थे, पर उसे तो वह मिल ही नहीं पाता था।वह अपने टीम मेट्स के साथ लंच के लिए जाता था। ये जानते हुए कि उसके पास पैसे नहीं हैं। कुलमिलाकर उसे वह सब देखना पड़ा जो किसी को भी लक्ष्य से भटका दे। अपनी मजबूरी की बात यशस्वी न अपने माता-पिता को बताते थे न ही अपने कोच को। क्योंकि उन्हें मालूम था कि यदि उन्होंने उनसे अपनी परेशानियां बताईं तो उन्हें मुंबई से भदोही वापस बुला लिया जाएगा।
इसी दौरान यशस्वी मुंबई के मशहूर क्रिकेट कोच ज्वाला सिंह के संपर्क में आए। उनसे भी क्रिकेट की बारीकियां सीखने लगे। इस बीच मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन अंडर-14 टीम का ट्रायल ले रही थी। जिस यशस्वी को यूपीसीए ने ठुकरा दिया था उसे ही मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने अपना लिया। यशस्वी ने मुंबई की अंडर-14 टीम में खेलते हुए अगले 5 सालों में 50 शतक जड़ दिए। हर दूसरे मैच में यशस्वी का शतक लगभग पक्का रहता था। उनके उम्दा प्रदर्शन को देखते हुए यशस्वी को भारत की अंडर-19 टीम में शामिल कर लिया गया। यशस्वी ने विजय हजारे ट्रॉफी में भी रनों का अंबार लगाया। मुंबई की सीनियर टीम की तरफ से बतौर सलामी बल्लेबाज उन्होंने अपने पहले ही मुकाबले में 113 रन जड़ दिए। उस टूर्नामेंट में उनका सर्वाधिक स्कोर 203 रन रहा। उस सीजन यशस्वी ने 1 अर्धशतक, 2 शतक और 1 दोहरे शतक की मदद से विजय हजारे ट्रॉफी के 6 मुकाबलों में 564 रन ठोक दिए। उनके बेहतर परफारमेंस को देखते हुए साल 2020 में उन्हें दक्षिण अफ्रीका में होने वाले अंडर-19 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चुना गया। इस टूर्नामेंट में टीम इंडिया ने फाइनल तक का सफर तय किया। बाउंसी विकेट पर यशस्वी ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 400 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 1 शतक और 4 अर्धशतक लगाए। भारत बांग्लादेश के हाथों फाइनल जरूर हार गया, लेकिन " मैन ऑफ द सीरीज" चुने गए यशस्वी का नया सफर शुरू हो गया। वर्ल्ड कप के ठीक बाद हुए आईपीएल नीलामी में राजस्थान रायल्स ने यशस्वी को 2.4 करोड़ रुपये में खरीद लिया। 2021-22 की रणजी ट्रॉफी में यशस्वी ने 3 मुकाबलों में 3 शतक और 1 अर्धशतक के साथ 498 रन जड़ दिए। उन्होंने मुंबई की तरफ से क्वार्टरफाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल में भी धमाकेदार पारियां खेलीं। सेमीफाइनल की तो दोनों पारियों में यशस्वी ने शतक ठोका था।
पश्चिमी क्षेत्र की तरफ से दलीप ट्रॉफी खेलते हुए भी खूब रन बनाया और अपनी टीम को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई। यशस्वी के असाधारण प्रदर्शन को देख उन्हें "इंडिया-ए टीम" में चुन लिया गया। उन्होंने यहां भी बांग्लादेश के खिलाफ ताबड़तोड़ शतक ठोंक दिया। वर्ष 2023 की शुरुआत में यशस्वी "शेष भारत टीम" की तरफ से खेलने उतरे और रणजी ट्रॉफी चैंपियन मध्य प्रदेश के खिलाफ दोहरा शतक जड़कर अपनी टीम को चैंपियन बना दिया। इस वर्ष हुए आईपीएल में यशस्वी ने अपनी टीम राजस्थान रायल्स से खेलते हुए ताबड़तोड़ बल्लेबाजी की मिसाल पेश की। वह "इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट" भी चुने गए। 12 जुलाई को उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया और पहली ही पारी में 171 रन की यादगार पारी खेल डाली। वे ऐसे 17वें भारतीय क्रिकेटर भी बन गए, जिसने अपने पहले ही टेस्ट मैच में शतक ठोंक दिया है। इससे पहले लाला अमरनाथ,दीपक शोधन,एजी कृपाल सिंह,अब्बास अली बेग,हनुमंत सिंह,गुंडप्पा विश्वनाथ,सुरिंदर अमरनाथ,अज़हरुद्दीन,प्रवीण आमरे,सौरव गांगूली,वीरेंद्र सहवाग,सुरेश रैना,शिखर धवन,रोहित शर्मा,पृथ्वी शा व श्रेयस अययर ऐसे भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने पहले ही टेस्ट मैच में शतक लगाया है। गुरबत से निकलकर क्रिकेट जगत में छाने वाले यशस्वी को आज देश का बेहतरीन खब्बू बल्लेबाज माना जा रहा है। आज इनकी तुलना दक्षिण अफ्रीका के महान बल्लेबाज ग्रीम पोलाक,वेस्टइंडीज के सर गैरी सोबर्स,इंग्लैंड के डेविड गावर,आस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट व वेस्टइंडीज के लीजेंड ब्रायन लारा सरीखे खब्बू बल्लेबाजों से की जा रही है। यूं तो भारत के नारी कांट्रेक्टर,अजीत वाडेकर,सलीम दुर्रानी,विनोद कांबली व युवराज सिंह आदि जैसे वामहस्त बल्लेबाजों ने अपनी बल्लेबाजी का जौहर दिखाया है। लेकिन, खब्बू बल्लेबाज यशस्वी का तमाम बाधाओं से पार पा क्रिकेट वर्ल्ड में "ध्रुव तारे" की तरह चमकना स्वप्निल ही है।
