बरेली: श्मशान में प्रयोग होने वाली राल बनेगी डायबिटिक घाव का काल

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Published By Vishal Singh
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आईवीआरआई के भैषज्य विभाग के वैज्ञानिकों ने चूहों पर किया शोध

बरेली, अमृत विचार। श्मशान में चिता जलाने के लिए इस्तेमाल होने वाली राल डायबिटिक मरीजों के घाव भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने चूहे पर इसका प्रयोग किया है, जो सफल रहा है। अब अन्य पशुओं पर इसका प्रयोग किया जाएगा। यदि प्रयोग सफल रहा तो इसका मानवीय परीक्षण किया जाएगा।

भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के भैषज्य एवं विष विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार और वैज्ञानिक डाॅ. अंशुक शर्मा के मुताबिक शाल के पेड़ की गोंद को राल कहा जाता है। ये राल प्राकृतिक रूप से ज्वलनशील होती है। आयुर्वेद में राल का इस्तेमाल घाव भरने में भी किया जाता है। इस पर शोध की शुरुआत की गई। शोध में इस्तेमाल के लिए उड़ीसा के जंगलों में मिलने वाली शुद्ध राल को मंगाया गया।

उन्होंने बताया कि शोध के लिए उन्होंने चूहों के तीन समूह तैयार किए, इसमें सामान्य चूहे, सामान्य घाव वाले चूहे और मधुमेह से पीड़ित घाव वाले चूहों को रखा गया। अध्ययन के दौरान राल को सरसों, तिल, अलसी के तेल और गोघृत के साथ मिलाकर लगाया गया। जिस समूह में राल को तिल के तेल के साथ मिलाकर लगाया, उसके परिणाम अन्य के मुकाबले जल्दी और अधिक प्रभावी दिखे। शोध में बतौर सहयोगी डाॅ. धवल कमोथी, डाॅ. ठाकुर उत्तम सिंह, डाॅ. अनिशा का सहयोग रहा।

हल्दी के साथ गाय का घी मिलाकर देना भी फायदेमंद
डाॅ. दिनेश कुमार ने बताया कि वे घाव भरने की दवाओं पर करीब 13 साल से शोध कर रहे हैं। इस दौरान कई अध्ययन के साथ शोध पत्रों को प्रस्तुत किया। एक अध्ययन के दौरान हल्दी को गाय के घी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया गया तो उसके परिणाम ज्यादा बेहर आए। इसके लिए हल्दी को तमिलनाडु से मंगाया गया। इसमें देखा गया कि हल्दी को गाय के घी के साथ मिलाकर देने से घाव सामान्य से कम समय में ठीक होता है।

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