बरेली: बिखरा सपना संजोकर ताइक्वांडो चैंपियन बने अक्षय
आंखों पर चश्मा देखकर कोच ने बता दिया था अनफिट, अब राष्ट्रीय स्तर तक जीत चुके हैं पदक
प्रशांत पांडेय/बरेली, अमृत विचार। बचपन से ताइक्वांडो चैंपियन बनने का सपना देखते आ रहे अक्षय आठ साल पहले प्रशिक्षण के लिए स्पोर्ट्स स्टेडियम पहुंचे थे, जहां कोच ने उनकी आंखों पर चश्मा देखा तो यह कहकर एक झटके से उनके सपने को चिंदी-चिंदी कर दिया कि वह ताइक्वांडो नहीं सीख सकते। इसके बाद कुछ दिन हताशा में जरूर गुजरे लेकिन अक्षय ने अपने नाम के अनुरूप अपनी कोशिशों को जिंदा रखा। प्राइवेट कोच के साथ शुरू हुआ उनका संघर्ष ब्लैक बेल्ट हासिल करने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य जीतने तक पहुंच गया है। अब वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।
पवन विहार में रहने वाले अक्षय अब 13 बरस के हो चुके हैं और इतनी ही उम्र में वह जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर पदकों का ढेर लगा चुके हैं। अक्षय की ये उपलब्धियां इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि शुरुआत में ही उन्हें खारिज कर दिया गया था। अक्षय बताते हैं कि पहली बार 2014 में वह चार बरस की उम्र में ताइक्वांडो सीखने के लिए स्पोर्ट्स स्टेडियम पहुंचे थे, जहां कोच ने पहले उन्हें एक साल बाद आने को कहा। साल पूरा होने से पहले उन्हें चश्मा लग गया, वह दोबारा स्पोर्ट्स स्टेडियम पहुंचे तो उन्हें देखते ही कोच ने कह दिया कि वह अब ताइक्वांडो नहीं सीख सकते। कोई दूसरा खेल शुरू करें।
कोच की इस दो टूक मनाही ने अक्षय को बुरी तरह आहत किया। कुछ समय बेहद निराशा में गुजरा। शेरगढ़ के प्राइमरी स्कूल में शिक्षक उनके पिता राजीव शर्मा भी उनकी हालत देखकर विचलित होने लगे।
उन्होंने हौसला बंधाया तो एक बार फिर अक्षय अपना सपना पूरा करने की कोशिश में जुटे। प्राइवेट कोच के निर्देशन में ताइक्वांडो सीखना शुरू कर दिया। अक्षय के जुनून ने चश्मे की बाधा को फलांगकर उन्हें कामयाबी की राह पर इतनी रफ्तार से दौड़ाया कि न सिर्फ उन्होंने ब्लैक बेल्ट हासिल की बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक कई पदक भी जीत लिए। अब वह अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे हैं। पिता राजीव शर्मा अब बेटे की प्रतिभा पर फूले नहीं समाते हैं। अक्षय के मुताबिक पहले कोच की बात सुनकर लगा था कि अब वह कभी यह खेल नहीं खेल पाएंगे लेकिन बाद में जब शुरुआत की तो सारी मुश्किलें आसान होती गईं।
ये पदक हैं अक्षय की झोली में
यूपी स्टेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2015 में कांस्य पदक, ओपन यूपी स्टेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2019 में रजत, 9वीं डिस्ट्रिक्ट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2019 में स्वर्ण पदक, द्वितीय डिस्ट्रिक्ट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2018 में स्वर्ण पदक, 36 वीं सब जूनियर कैडेट यूपी स्टेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप में कांस्य पदक, प्रथम यूपी सेंट्रल जोन ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2022 में दो स्वर्ण पदक, यूपी ऑफिसियल स्टेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2022 में एक स्वर्ण और एक रजत पदक, 5वीं नेशनल कैडेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2022 में कांस्य पदक।
आसान नहीं ब्लैक बेल्ट पाना
ताइक्वांडाे में ब्लैक बेल्ट प्राप्त करने के लिए बहुत ज्यादा परिश्रम की जरूरत होती है। इस उपलब्धि को पाने के लिए काफी समय भी लगता है और चरणबद्ध ढंग से तैयारी करनी पड़ती है। यह टास्क पूरा करना आसान नहीं होता, कई खिलाड़ी इसे बीच में ही छोड़ देते हैं। - भानु प्रताप सिंह, ताइक्वांडो प्रशिक्षक
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