मुरादाबाद : अंग्रेजों की तमाम यातनाएं सही पर धर्मवीर ने नहीं छोड़ा कर्तव्य पथ
लखीमपुर खीरी जिला कारागार से रिहा होने के बाद अंग्रेजों से बचने को कलकत्ता में तीन महीने चलाया रिक्शा, गांधी जी ने भेंट में दिया था चरखा
गांधी जी द्वारा दिए गए चरखे के बारे में जानकारी देतीं शोभा।
निर्मल पांडेय,अमृत विचार। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से ऐसे ही आजादी नहीं मिल गई। आजादी की जंग में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जीवन कितनी यातनाओं से भरा रहा है, इसका एक उदाहरण हम देते हैं...। पश्चिम पाकिस्तान के रहने वाले मंगूराम के दो बेटे ईश्वरदत्त व धर्मवीर थे। ईश्वरदत्त मद्रास में रहे। छोटे बेटे धर्मवीर को पढ़ने के लिए मंगूराम ने हरिद्वार भेजा था। उस समय धर्मवीर पांच वर्ष के थे। वह मां-बाप से दूर रहकर यहीं हरिद्वार में पढ़ाई किए और बड़े हुए।
पढ़ाई के बाद धर्मवीर दोबारा मां-बाप से नहीं मिल पाए। उसी बीच स्वतंत्रता आंदोलन भी शुरू हो गया था। वह ठक्कर बाबा के संपर्क में आए फिर महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे से स्नेह पाकर वह धीरे-धीरे कर स्वतंत्रता आंदोलन में आ गए। अंग्रेजों की तमाम यातनाएं झेली। लखीमपुर खीरी के जिला कारागार से जब वह रिहा हुए तो भी अंग्रेज पुलिस पीछे लग गई। उन्हें मुरादाबाद छोड़कर कलकत्ता भागना पड़ा। कलकत्ता में तीन महीने रहे और रिक्शा चलाकर समय व्यतीत किया।
हम बात कर रहे हैं धर्मवीर आयुर्वेदालंकार की...। जी हां, धर्मवीर...ये वह नाम है जिसे लंबे समय तक भुलाया नहीं जा सकता। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उस समय हिंदू-मुस्लिम दंगा हुआ था। इसमें धर्मवीर दो बार बचे। तमाेली मुहल्ले में एक मुस्लिम परिवार ने ही धर्मवीर को अपने घर में शरण देकर बचाया था। ये बात खुद धर्मवीर की बेटी शाेभा आर्य बताती हैं।
वह कहती हैं कि उनके पिता धर्मवीर को गांधी जी ने चरखा दिया था। जिससे धर्मवीर चरखा कातते थे और मां कौशल्या खादी बुनती थी। वह चरखा शोभा आर्य आज भी सुरक्षित किए हैं। आजादी मिलने के बाद धर्मवीर बांस मंडी में ही स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित आर्य समाज संगठन से जुड़े और कई वर्षों तक प्रधान एवं मंत्री जैसे पदों पर रहकर लोगों की सेवा करते रहे। आयुर्वेदालंकार को 1975 में केंद्र व राज्य सरकार की ओर से ताम्रपात्र एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन का सम्मान मिला था।
नौकरी छोड़ अविवाहित शोभा ने की मां-बाप की सेवा
1952 में जन्मी शोभा अविवाहित हैं। बताती हैं कि वह चंडीगढ़ में पटियाला यूनिवर्सिटी में शास्त्री संगीत में म्यूजिक की शिक्षक थीं। लेकिन, मां जब बीमार रहने लगी तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी। फिर 1988 में उनकी मां और मार्च 1990 में पिता धर्मवीर की मौत हो गई थी। धर्मवीर के चार बेटियां, दो बेटे थे। इनमें शोभा पांचवे नंबर की हैं। भाई-बहन में सुधा स्याल बड़ी थीं। वर्तमान में स्नेह लता व शोभा जीवित हैं। स्नेहलता दिल्ली और शोभा मुरादाबाद में रहती हैं। शोभा आज भी खादी ही पहनती हैं।
शोभा को अखरती सरकार की बेरुखी...
मुरादाबाद रेलवे जंक्शन के सामने मालवीय नगर में भाई डाॅ.विनय संग रहती थी। 2002 में भाई के निधन के बाद शोभा आर्य अकेले रहती हैं। पिता की केंद्रीय पेंशन के 10,000 रुपये मिलते हैं। राज्य सरकार से उन्हें पेंशन कोई लाभ नहीं मिला। डीएम की लिखापढ़ी भी काम नहीं आई है।
बचपन में मां चल बसीं और ब्याह का भी अजीब संयोग
धर्मवीर का जन्म एक नवंबर 1907 में पाकिस्तान (पश्चिम पाकिस्तान) में नसीर की बस्ती के डेरा गाली खां में हुआ था। धर्मवीर के बचपन में ही उनकी मां चल बसी थीं। इन्होंने 1929 में आयुर्वेदालंकार की डिग्री प्राप्त कर ली थी। ये हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी व गुरुकुल रेजीडेंशियल मेडिकल कॉलेज में पढ़े। इसी गुरुकुल में हरिद्वार में ब्याही सुशीला के पति विष्णु दत्त संस्कृत पढ़ाते थे। सुशीला का मायका क्वेटा (पाकिस्तान) में था। उसी दौर में पाकिस्तान में आए भूकंप में सुशीला के मायके वाले प्रभावित हो गए थे। छोटी बहन कौशल्या देवी को सुशीला ने ही शरण दी थी। इसी बीच संयोग बना और वर्ष 1935 में सुशीला के घर में ही धर्मवीर का विवाह कौशल्या संग हो गया।
धर्मवीर की पत्नी को मिला कस्तूरबा गांधी का सानिध्य
धर्मवीर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी कर नमक आंदोलन में शामिल हुए और 8 जुलाई 1930 को सहारनपुर अदालत ने उन्हें छह महीने का कठोर कारावास की सजा सुना दी थी। सहारनपुर जेल से उन्हें लखीमपुर खीरी के जिला कारागार में स्थानांतरित किया गया था। फिर वह ठक्कर बाबा के संपर्क में आए। ठक्कर बाबा उन्हें दिल्ली ले गए और महात्मा गांधी व विनोबा भावे से मिलाया था।
धर्मवीर वर्ष 1931 में दिल्ली जाकर हरिजन सेवक समाज से जुड़े। इसी बीच वर्ष 1935 में उनका विवाह हो गया और पत्नी कौशल्या संग 1939 तक दिल्ली में रहे। कौशल्या महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ रहती थीं। सैकड़ाें महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखाकर आत्मनिर्भर बनाया था। धर्मवीर उस समय मुरादाबाद में सभी से अपरिचित थे। फिर वह बांस मंडी में ही स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित आर्य समाज संगठन से जुड़े थे। यहां भी वह स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए तो उनकी अंग्रेजों में शिकायत हो गई। इस स्थिति में धर्मवीर अपने दोनों बच्चों व पत्नी कौशल्या देवी को हरिद्वार में छोड़कर कलकत्ता चले गए थे। लौटने पर अमरोहा गेट के पास अलंकार चिकित्सालय की स्थापना की थी।
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