...शायद इनकी नियति में लिखा है जुटना और बिखर जाना
व्यथा कथा : रामगंगा नदी का पानी उतरा मगर प्रभावित क्षेत्र के लोगों को चैन नहीं
आशुतोष मिश्र,अमृत विचार। शायद उनकी नियति में लिख गया है जुड़ना और बिखर जाना। रामगंगा नदी के तटवर्ती लोग इसके उदाहरण बने हुए हैं। जलस्तर की वृद्धि थमने से ऐसे लोगों को तात्कालिक राहत तो मिली है। लेकिन, भविष्य की चिंता जस की तस बनी हुई है। क्योंकि, बाढ़ के हालात इनकी तकदीर में लिख गये हैं। हालांकि क्षेत्र के लोग स्थानीय निकाय, विधानसभा, लोकसभा सहित सभी सभी चुनावों में जनप्रतिनिधियों के जीत हार का फैसला करते हैं।
हम बात कर रहे हैं रामगंगा नदी के तटवर्ती हजारों परिवारों की। महानगर और समीपवर्ती गांव को बाढ़ की विभीषिका से बचाने की कवायत वर्षों पहले शुरू हुई। महानगर में बाढ़ बचाओ संघर्ष समिति गठित हुआ, जिसने रामगंगा के तटबंध की लड़ाई लड़ी। यह विषय हर बार चुनावी मुद्दा भी बना। बाढ़ नियंत्रण विभाग और बाढ़ बचाओ संघर्ष समिति की लड़ाई वर्षों पुरानी है। नदी तट पर13.5 किलोमीटर लंबाई में बांध बनाने की मांग को विभाग ने सहमति भी दे दी। संघर्ष समिति ने आरएम श्रीवास्तव की अगुवाई में इस लड़ाई को प्रयागराज हाईकोर्ट तक पहुंचा दिया। जिसमें कोर्ट ने वर्ष 2011 में बांध बनाने का निर्णय सुना दिया। लेकिन, इसका क्रियान्वयन अभी अधर में है।
कोठीवाल डेंटल कॉलेज, रामगंगा विहार, जिगर कॉलोनी, वारसी नगर से कटघर क्षेत्र तक हर बार रामगंगा की धारा बाढ़ की इबारत लिखती है। जबकि नदी पार यानी भोजपुर और पीपलसाना क्षेत्र के गांव में पानी की धारा तबाही मचाती है। सप्ताह भर से नदी के गेज में उतार-चढ़ाव जारी है। रविवार को नदी महानगर के मोहल्लों से अपने पाटे में लौट गई। लेकिन यहां रहने वाले बाढ़ की चिंता से नहीं उभर पाए हैं। अमृत विचार की टीम ने रविवार को जामा मस्जिद, वारसी नगर, जिगर कॉलोनी, रामगंगा विहार क्षेत्र का जायजा लिया। जिसमें नदी तट से करीब 200 से 300 मीटर सिमट दिखी। लेकिन, आसपास के लोग बाढ़ की संभावना को लेकर जार- बेजार हैं।
बाबू सलमानी कहते हैं कि हम सभी नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा के प्रतिनिधित्व चुनते हैं। लेकिन, उन्हें हमारी चिंता ही नहीं है। उस्मान अली एडवोकेट कहते हैं कि महानगर का जीवन कहने भर का है। नदी का पानी रिहायत से उतर तो गया है। मगर इन क्षेत्रों में जो हालात है उसमें समय काटना भारी पड़ रहा है। दैनिक मजदूर शाहनवाज कहते हैं कि बेहिसाब गर्मी ने बुखार सहित त्वचा संबंधी रोग ठोक दिया है। हम बाढ़ विभाग और अधिकारियों की कठपुतली बने हुए हैं। लगता है कि हमारी नियत में इसी तरह का जीवन लिख गया है।
ये भी पढ़ें : मुरादाबाद : 73 प्रसूताओं को पौष्टिक आहार की धनराशि का अभी भी इंतजार
