समय पर समन तामील करने में पुलिस की असमर्थता अभियुक्तों के अधिकार का उल्लंघन : हाईकोर्ट  

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पुलिस अधिकारियों की विफलता और राज्य सरकार द्वारा क्रमशः अपने वैधानिक कर्तव्यों और संवैधानिक दायित्वों को स्वीकार करने की उपेक्षा से न्याय की हानि हो रही है। कैदी लंबे समय तक जेल में सिर्फ इसलिए रहते हैं, क्योंकि पुलिस अधिकारी समय पर गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं कर पाते। न्याय की विफलता उस स्थिति में और अधिक गंभीर हो जाती है, जब कैदी समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों से आते हैं और गरीबी तथा कानूनी अशिक्षा के कारण न्याय प्रक्रिया को समझने में अक्षम होते हैं। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने एक आरोपी की जमानत अर्जी स्वीकार करते समय की। 

मामले में न्यायालय ने कहा कि समन और कार्यकारी दमनात्मक प्रक्रियाओं की तामील करने में पुलिस की विफलता देखी जा रही है जो आरोपी के जमानत अधिकारों को प्रभावित कर रहा है‌। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि मुकदमे में इसलिए देरी हुई, क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने समन जारी नहीं किया और गवाहों को अदालत में पेश होने के लिए समय पर कठोर कदम नहीं उठाए। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत दी गई संवैधानिक स्वतंत्रता और विचाराधीन कैदी की जमानत का वैधानिक अधिकार आपस में जुड़े हुए हैं और एक आरोपी को लंबे समय तक कैद में रखना उसके मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे पुलिस अधिकारियों से निपटने का प्रावधान भी है जो समन तामील करने तथा उत्पीड़नात्मक प्रक्रियाओं को निष्पादित करने में असफल रहते हैं, लेकिन कानून के तहत ऐसी कार्यवाही से कीमती न्यायिक समय बर्बाद होगा। 

कोर्ट ने राज्य को इस संबंध में निर्देश देते हुए कहा कि समन की सेवा सुनिश्चित करने और समयबद्ध ढांचे में दंडात्मक प्रक्रियाओं के निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए पुलिस बल में एक स्वतंत्र और प्रभावी आंतरिक जवाबदेही प्रणाली समय की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि राज्य को पहले भी इस मुद्दे पर आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा जा चुका है। इसके अलावा कोर्ट ने गवाहों की अनिवार्य उपस्थिति के लिए विभिन्न स्तरों पर नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के लिए भी निर्देश दिए। अदालत के आदेश पर गवाहों को प्रस्तुत होने के लिए बाध्य करने हेतु पुलिस अधिकारियों पर लगाए गए वैधानिक दायित्व को नोडल अधिकारियों के कर्तव्यों के चार्टर में भी शामिल किया जाना चाहिए। जिसके प्रति वे जवाबदेह  होंगे, साथ ही पुलिस अधिकारियों के प्रदर्शन का भी मूल्यांकन करने की बात कही गई, जिससे गड़बड़ी होने पर विभाग द्वारा उसे ठीक किया जा सके। अंत में कोर्ट ने इस आदेश की प्रति डीजीपी, गृह सचिव, निदेशक, जेटीआरआई, लखनऊ और यूपी सरकार को भेजने का निर्देश दिया है।

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