प्रयागराज : याचिका में मांगे गए हर संशोधन को अनुमति नहीं, जब तक अपूरणीय क्षति की संभावना न हो
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बयान में संशोधन की मांग करने वाले एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि संशोधन आवेदन को तभी अनुमति दी जा सकती है, जब संशोधन की मांग करने वाला पक्ष यह दिखा सके कि मांगे गए संशोधन की अनुमति न मिलने की स्थिति में अपूरणीय क्षति होगी या न्याय नहीं मिल सकेगा। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट,मऊ के आदेश के खिलाफ अभिषेक सिंह की अपील पर सुनवाई करते हुए की।
मौजूदा मामले में लिखित बयान में संशोधन की मांग करने वाली अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह संशोधन आवश्यक नहीं है। दरअसल अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया कि वह पत्नी द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 27 के विपरीत दावा करने पर अपने लिखित बयान में आपत्ति उठाने से चूक गया था। इस पर न्यायालय ने निष्कर्ष निकला कि कार्यवाही अंतिम चरण में थी। तर्कों का आदान-प्रदान पहले ही हो चुका था और पक्षों द्वारा सभी साक्ष्य प्रस्तुत किए जा चुके थे। इसके साथ ही परिवार न्यायालय ने विवादित आदेश में अपीलकर्ता के तर्कों पर विशेष रूप से विचार किया था। अतः अपीलकर्ता की आपत्ति विचारणीय नहीं है। अपीलकर्ता के अधिवक्ता द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम संजीव बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देने पर कोर्ट ने कहा कि उक्त मामले में पारित सिद्धांत मौजूदा मामले में लागू नहीं होते, क्योंकि पूर्व निर्धारित सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि संशोधन की अनुमति केवल उस दशा में ही अनुमन्य है, जब किसी पक्ष की अपूरणीय क्षति का संदेह हो या न्याय का उद्देश्य विफल होने की संभावना हो।
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