रामपुर : पूर्व मंत्री शिव बहादुर ने फर्श से अर्श तक का तय किया सफर, जानिए...

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Published By Bhawna
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पूर्व मंत्री बोले- अमृत विचार निष्पक्ष और निर्भीक होकर जनता की आवाज उठाता

पूर्व मंत्री शिवबहादुर सक्सेना।

रामपुर, अमृत विचार। स्वार सीट पर भाजपा के टिकट से लगातार के चार बार विधायक रहे और सपा के कद्दावर नेता आजम खां के धुर विरोधी शिव बहादुर सक्सेना का राजनीतिक करियर अपने आप में एक मिशाल है। भारतीय जन संघ के कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुई संघर्ष यात्रा राज्यमंत्री तक पहुंची। इसके बाद भी यह कदम यहीं नहीं रुके...और 2022 के उपचुनाव में चाणक्य बनकर अपने पुत्र आकाश सक्सेना को शहर सीट पर भाजपा के टिकट से 33,702 वोट से सपा प्रत्याशी आसिम रजा को हराकर विधायक बनाया। शुक्रवार को अमृत विचार के ब्यूरो चीफ आशुतोष शर्मा ने पूर्व मंत्री शिव बहादुर सक्सेना से राजनीतिक सफर में आए संघर्ष और आगामी चुनाव को लेकर वार्ता की। इस दौरान उन्होंने बहुत से प्रश्नों के उत्तर दिए। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश।

आपका राजनीति का सफर कहां से शुरू हुआ?
राजनीतिक सफर की शुरुआत भारतीय जन संघ से की थी। फिर 1980 में भारतीय जन संघ जनता पार्टी से अलग हुआ और भारतीय जनता पार्टी बनी। जिसमें हम बतौर कार्यकर्ता शामिल हुए। जून 1980 में जिला कार्यकारिणी का गठन हुआ, जिसमें महामंत्री पद की जिम्मेदारी मिली। यूं कहें कि रामपुर में भाजपा के पहले महामंत्री हम रहे। उस समय सत्यदेव आर्य जिलाध्यक्ष हुआ करते थे। 

राजनीतिक सफर में कब क्या-क्या हुआ?
1980 में भाजपा टिकट से पहला चुनाव रामपुर शहर सीट से लड़ा, जिसमें हार गए। 1985 में भाजपा टिकट से फिर शहर सीट पर चुनाव लड़ा और हार गए। इसके बाद भी हार नहीं मानी और 1989 में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे निसार हुसैन को हराकर स्वार सीट पर भाजपा टिकट से जीत हासिल की। इसके बाद राम जन्म भूमि आंदोलन शुरू हो गया, जिसमें 1000 कार्यकर्ताओं के साथी गिरफ्तारी दी और 28 दिन मुरादाबाद जेल में रहे। तब कल्याण सिंह ने विधानसभा में आंदोलन कर कहा था कि जब तक शिव बहादुर नहीं आएगा तब तक विधानसभा नहीं चलेगी। इसके बाद 28 अक्टूबर को जेल से रिहा हुए।

1991 में फिर चुनाव हुआ, और इस बार भी निसार हुसैन को हराकर जीत हासिल की। प्रदेश में भाजपा सरकार में स्व. कल्याण सिंह जी के नेतृत्व में गन्ना विकास राज्यमंत्री बने। 06 दिसंबर 1992 को सरकार भंग हो गई। 1993 में फिर चुनाव हुआ, और स्वार सीट से फिर विधायक बने। 1996 में फिर चुनाव और इस बार भी स्वार सीट से चुनाव जीता। वर्ष 2000 में विधानसभा का सार्वजनिक उपक्रम समिति का अध्यक्ष बना। इसके बाद 2002 और 2007 में चुनाव हुआ तो सब दल एकजुट हो गए और हार गया। 2012 में चुनाव नहीं लड़ा। 2017 में फिर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी हार गए। इसके बाद अपने बेटे आकाश को 2022 के उपचुनाव में लड़ाकर जीत दिलवाई।

आप अपना राजनीतिक गुरू किसे मानते हैं?
वैसे तो आज तक किसी को राजनीतिक गुरू नहीं बनाया लेकिन मुझे संगठन की शिक्षा-दीक्षा देने वाले पं. गजेंद्र दत्त नैथानी थे। जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। इसके बाद अगर राजनीति की दीक्षा किसी ने दी तो वो थे कल्याण सिंह। जिनसे मेरे पारिवारिक संबंध रहे। जो कुछ बना सब उसमें उनका बड़ा योगदान रहा।

अपने राजनीतिक सफर की कोई ऐसी घटना बताएं जो बेहद संघर्षपूर्ण रही हो?
देखिए संघर्षपूर्ण तो हमारा पूरा जीवन रहा। लेकिन हमारे अंदर एक खूबी रही कि हमने कभी हार नहीं मानी...जिसका परिणाम सभी ने देखा और चार बार स्वार सीट पर लगातार विधायक रहे। संघर्ष तो हमारा तब से शुरू हुआ था जब लोकसभा में भाजपा की दो और विधानसभा में 12 सीटें थीं। आज वही भाजपा है, जिसका पूरे देश में डंका है।

आकाश सक्सेना के विधायक बनने में आपने चाणक्य की भूमिका निभाई है, आगे चुनाव की क्या रणनीति रहने वाली है?
 यह निर्णय पार्टी हाईकमान का है...पार्टी आकाश को जो भी टिकट दे देगी उस पर 110 फीसदी चुनाव जीतेंगे। शहर में जाति-धर्म का अनुपात कुछ भी हो लेकिन जो काम आकाश ने कुछ महीनों में कर दिखाए हैं, मुझे नहीं लगता कि यह इससे पहले भी हुए हों। आकाश ने सबका साथ और सबका विकास के मुद्दे पर काम किया है। 

सुना है आपकी 'राजदूत' भी लोगों को बड़ा नेता बना देती है?
1884 से 'राजदूत' मोटर साइकिल साथ रही है। 1991 में जब मंत्री बने थे तो 'राजदूत' शांति लाल चौहान को दे दी थी। जिसके बाद शांति लाल जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन बन गए थे। इसके बाद ख्याली राम लोधी ने 'राजदूत' की जिद की तो फिर उन्हें दे दी। जिसके बाद वह जिला पंचायत अध्यक्ष बन गए। फिर तो 'राजदूत' की डिमांड इतनी बढ़ गई कि हम तो धर्म संकट में पड़ गए। इसके बाद हमने यह निर्णय लिया कि अब 'राजदूत' किसी को नहीं दी जाएगी। ...तो कुल मिलाकर राजदूत का भी अपना राजनीतिक करियर रहा है।

आप अमृत विचार के माध्यम से जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?
अमृत विचार समाचार पत्र प्रधान संपादक शंभू दयाल वाजपेयी के कुशल निर्देशन में लगातार बुलंदियों को छू रहा है। अमृत विचार निष्पक्ष और निर्भीक जनता की आवाज उठाता है। लोकतांत्रिक परंपराओं पर चलने वाला अखबार है। जनता से अपील है कि जिस प्रकार उन्होंने मुझ पर अपना आशीर्वाद बनाए रखा, उसी प्रकार ज्यादा से ज्यादा लोग अमृत विचार को पढ़ें।

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