बरेली: ट्रे में रखकर सामने आए कटे हाथ और पैर, कहती थी- डॉक्टर बनकर दिखाऊंगी...खूब रोया पिता
फूट-फूटकर रोया पिता, डॉक्टर से पूछा- कहां ले जाऊं इन्हें, क्या इसीलिए पाला था उसे
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अंकित चौहान, बरेली, अमृत विचार। दसवीं में उसने 82 फीसदी नंबर लाकर पिता को खुश कर दिया था। वादा किया था कि वह उन्हें डॉक्टर बनकर दिखाएगी लेकिन बुधवार को अस्पताल का स्टाफ उसके कटे हुए पैर और हाथ एक ट्रे में रखकर पिता के सामने लाया तो कुछ पल के लिए उनका चेहरा सफेद हो गया। हाथ कंपकंपाते रहे लेकिन ट्रे को थामने के लिए आगे नहीं बढ़ पाए। मन में उठा तूफान जब काबू से बाहर हो गया तो बिलख पड़े। डॉक्टर से बोले- ये हाथ-पैर कहां ले जाऊं मैं। क्या इसीलिए पाला था उसे।
शोहदों के ट्रेन के आगे धक्का देने के बाद अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवा चुकी बेटी को मंगलवार शाम शहर के भाष्कर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां से कुछ देर बाद एक निजी मेडिकल कॉलेज में भेज दिया गया। यहां वह आईसीयू में वेंटिलेटर की मदद से जिंदगी की जंग लड़ रही है। बाहर बैठे उसके पिता को भी अपनी भावनाओं से जंग लड़नी पड़ रही है। आंसुओं से नम आंखों में जो सबसे बड़ा सवाल साफ नजर आ रहा है, वह उनके साथ मौजूद परिचित लोग खुलकर बयां कर रहे हैं... अगर लड़की बच भी गई तो उसका भविष्य क्या होगा।
इसी बीच एक पल ऐसा भी आया, जिसने देखने वालों को भी बुरी तरह झकझोर दिया। मेडिकल कॉलेज का स्टाफ बेटी के कटे हुए दोनों पैर और एक हाथ ट्रे में रखकर पिता के सुपुर्द करने चला आया। बेटी के कटे हाथ-पैर देखते ही पिता का जिस्म बुरी तरह थरथराने लगा। वह फूट-फूटकर रोए, डॉक्टर से पूछा कि ये हाथ-पैर मैं कहां ले जाऊं। सबसे बड़ी बेटी है, बहुत प्यार से पाला है उसे। स्टाफ ने जैसे-तैसे ढांढस बंधाया और कटे हुए हाथ-पैर उनके सुपुर्द कर दिए।
लड़की के पिता ने बताया कि उनकी बेटी शुरू से पढ़ाई में तेज है। दसवीं में उसके 82 प्रतिशत नंबर आए थे तो बहुत खुश हुई थी। गांव में उसके सबसे ज्यादा नंबर थे। जब-तब वह उनसे कहती थी कि वह उन्हें डॉक्टर बनकर दिखाएगी। शोहदों की क्रूरता ने फिलहाल उसकी उड़ान को जहां के तहां रोक दिया।
आधी आबादी का नजरिया...हर घटना के बाद खोखले दावों में सिमट जाती हैं संवेदनाएं
यह अपराध जघन्य है, ऐसी घटनाओं से लड़की की जिंदगी बर्बाद हो जाती है और हम सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करके छोड़ देते हैं। हमारे समाज को इन मुद्दों पर बात करनी चाहिए, जागरूक होना चाहिए---प्रिंसी सक्सेना, वन स्टॉप सखी, काउंसलर।
हमें अपने बच्चों को आत्मरक्षा के गुर और सेफ्टी गैजेट्स का इस्तेमाल सिखाना चाहिए, जागरूकता भी होनी चाहिए। ऐसी परिस्थितियों से समझौते के बजाय विरोध और मुकाबला करना चाहिए। माता-पिता को सजग रहना चाहिए खासकर तब, जब पहले से पता हो कि बच्चे को परेशानी है---डॉ. सुविधा शर्मा, विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग बरेली कॉलेज।
यह परिस्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी घटनाओं के बाद अपराधियों पर कम और पीड़ित पर ज्यादा फर्क पड़ता है। उसकी सोशल लाइफ खराब हो जाती है। घटना के बाद भी पता ही नहीं चलता कि अपराधी को क्या सजा मिली। दुर्घटना के बाद लड़की का मनोबल गिरता जाता है। अपराधी को ऐसी सजा मिले कि दूसरे भी सबक लें---डॉ. नीलम गुप्ता, राजनीति विभाग बरेली कॉलेज।
मानव और संवेदनाओं को अलग देखने का मतलब मानवता का अर्थ समाप्त हो जाना है। एक छात्रा के साथ ऐसी हृदय विदारक घटना समाज, शिक्षा और प्रशासन सब पर सवाल उठाती है। भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान सूझबूझ और संवेदनाएं भूल रहा है। एक बेटी की जिंदगी एक पल में तबाह हो गई। अपराधी को ऐसी सजा मिले जो कि एक मिसाल बनकर सामने आए--- डॉ. उज्मा कमर, मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद्।
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