मथुरा: शारदीय नवरात्र में मिनी कोलकाता में तब्दील हो जाती है कान्हा नगरी

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Published By Moazzam Beg
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मथुरा। कान्हा की नगरी मथुरा में यूं तो साल भर भक्ति रस की त्रिवेणी प्रवाहित होती रहती है मगर नवरात्र के दिनो में शक्ति स्वरूपा की आराधना के बीच ब्रज की पावन धरती ‘मिनी कोलकाता’ में तब्दील हो जाती है। इस दौरान ‘राधे राधे’ के संबोधन के पारंपरिक अभिवादन के साथ ‘जय माता दी’ शब्द भी जुड़ जाता है। 

शक्ति की देवी की आराधना के साथ ब्रजमंडल श्रद्धा के सैलाब में पूरे नौ दिन समाया रहता है जबकि षष्ठी से पांच दिन तक चलने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव के पांडाल जगह जगह सज जाते है जो ब्रज मे बंगाल में भव्य तरीके से मनायी जाने वाली दुर्गा पूजा के दर्शन की अनुभूति कराते हैं। विभिन्न मोहल्लों में सामूहिक रूप से दुर्गापूजा का आयोजन किया जाता है मगर पिछले 31 वर्ष से अधिक समय से कालिन्दी धाम मसानी में इसका आयोजन अपनी अलग पहचान ही नही बना चुका है। 

कार्यक्रम स्थल पर जाने पर ऐसा लगता है कि कान्हा की नगरी ही पश्चिम बंगाल बन गई है। कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता बंगालियों द्वारा मां दुर्गे की पूर्ण भक्ति भाव से की गई सामूहिक आराधना है। कार्यक्रम स्थल पर जाने पर लगता है कि मूल रूप से बंगाल के निवासी मां दुर्गा की भक्ति मे रंग गए हैं जिसके पास धन है वह उससे सहयोग कर रहा है और जिसके पास धन नही है वह तन और मन से इस आयोजन को सफल बनाने में इतना अधिक तल्लीन है कि लगता है कि यह कार्यक्रम उसका निजी कार्यक्रम है। 

यह इस कार्यक्रम की विशेषता कहें या मां दुर्गा की कृपा कहें कि वर्ष पर्यन्त बंगाल के ये निवासी आपसी सौहार्द्र बनाए रखते हैं तथा इनमें किसी प्रकार का मनमुटाव देखने को नही मिलता है। दुर्गा पूजा महोत्सव समिति के अध्यक्ष सुनील शर्मा ने बताया कि 20 अक्टूबर से पांच दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम का मुख्य अंश मां दुर्गा का अनूठा चकाचौंध करने वाला श्रंगार एवं मां की श्रद्धा में रोज शाम आरती के समय आयोजित किया जाने वाला सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेषकर धूनूची नृत्य है। 

मां दुर्गा के स्वरूप महिसासुर मर्दिनी का विशेष पूजन भी इस कार्यक्रम की विशेषता है। उन्होंने बताया कि बंगाल में महालय के दिन माता को आमंत्रित करने के लिए कन्याओं को भोजन कराने की मान्यता है। पश्चिम बंगाल में पंडालों में दुर्गा पूजा के आयोजन को बारा कहा जाता है। बंगाल से आये विशेष वाद्य यन्त्र ढाक की ताल पर महिलाओं और पुरूषों का सामूहिक नृत्य तथा 22 अक्टूबर को प्रसिद्ध बाॅलीवुड सिंगर राना साद एवं उनकी टीम के कलाकारों की अनूठी प्रस्तुति इस कार्यक्रम का आकर्षक अंश होगा। 

इस कलाकार की प्रस्तुति में सभी के सुखमय जीवन की कामना की जाएगी। अध्यक्ष ने बताया कि कार्यक्रम के समापन के पहले सभी विवाहित महिलाएं सिंदूर से होली जैसा खेलती है और उत्साह से मां को विदा करती है इसे सिंदूर खेला कहते है। कार्यक्रम का समापन यमुना में मूर्ति का विसर्जन से होता है जिसके आकर्षण के कारण हर साल बंगाली समुदाय के साथ साथ अन्य समुदाय के लोग भी इसमें शामिल हो जाते हैं और कान्हा की नगरी एक प्रकार से कोलकाता बन जाती है। 

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