भदोही: विधि विधान से पूजे गए आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी, समुद्र मंथन में आज ही के दिन हुए थे प्रकट
भदोही। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के प्रमुख नगरों व ग्रामीण क्षेत्र मे धनतेरस पर शुक्रवार को आयुर्वेद के जनक धन्वंतरी महराज का विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चन किया गया। प्रमुख वैद्य जनो के साथ आयुर्वेदिक प्रतिष्ठानों पर शुभ मुहूर्त में वैदिक मन्त्रोच्चार के बीच पूजन कर प्रसाद वितरित किया गया।
मान्यता है कि समुद्र-मंथन के दौरान आज के ही दिन धन्वन्तरी प्रकट हुए थे। उन्हें आयुर्वेद का प्रणेता भी कहा जाता है। वे एक महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वे भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं,जिनकी चार भुजाओं में से दो में शंख और चक्र है, जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषधि तथा दूसरे मे अमृत कलश लिए हुये हैं।
इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया था, जिसके पहले प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने सुश्रुत संहिता लिखी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) माने जाते हैं। सुश्रुत के बेटे चरक हुए। चरक एक घुमक्कड़ वैद्य थे जिन्होंने चरक संहिता लिखी।
कार्तिक त्रयोदशी (धनतेरस )को भगवान धन्वंतरी की पूजा का विधान है, विशेषकर बनारस में। धन्वन्तरी की प्रिय धातु पीतल कही जाती है इसलिए धनतेरस पर पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। धनतेरस का पर्व पर लोग इस मनोकामना के साथ करते हैं ताकि वे धन-धान्य और अच्छे स्वास्थ्य से संपन्न रहें।
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