रायबरेली में कश्मीर का एप्पल बेर और कोलकाता के अमरूद जुबां में घोल रहे मिठास 

Amrit Vichar Network
Published By Jagat Mishra
On

कोरोना लॉकडाउन में बागवानी की नई किस्म को सीख बदली किस्मत, प्रधानमंत्री के लोकल फॉर वोकल के नारे को किया साकार

आशीष दीक्षित/अंगद राही/ रायबरेली, अमृत विचार। कौन कहता है आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों, कवि दुष्यंत की इस कविता की पंक्ति को पुरासी गांव के रहने वाले दो भाइयों ने मिलकर चरितार्थ कर दिया है। कोरोना का लॉकडाउन जब आया तो पूरी दुनिया में काम धंधे बंद हो गए लेकिन पुरासी गांव के दो किसान भाइयों राम सागर और गंगा सागर ने पारंपरिक खेती में होने वाले नुकसान से बचने के लिए कश्मीरी एप्पल बेर और कोलकाता के अमरूद की खेती को सीख कर न केवल अपना जीवन बदला है बल्कि रायबरेली का नाम भी रोशन किया है। इन दोनों किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोक फॉर वोकल की आवाज को भी साकार किया है। दोनों प्रगतिशील किसान आमदनी करने के साथ अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनने के साथ बेरोजगार महिलाओं को रोजगार भी दे रहे हैं।

शिवगढ़ के पुरासी गांव के रहने वाले प्रगतिशील एवं जागरूक कृषक राम सागर गंगा पाण्डेय और उनके भाई गंगासागर पाण्डेय ऐसा भागीरथी काम कर रहे हैं जो हर किसान के लिए प्रेरणा से कम नहीं है। कश्मीर में पैदा होने वाला एप्पल बेर वह अपने बाग में उगा रहे हैं। इसकी बंपर पैदावार होती है तथा साथ ही कोलकाता के प्रसिद्ध ताइवान पिंक अमरूद की बागवानी कर लाखों रुपये मुनाफा कमा रहे हैं। खेती से ही वह बच्चों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने के साथ ही अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दिला रहे हैं। अमरूद और मीठे एप्पल बेर की खेती से परिवार में सम्पन्नता आई है तो साथ ही देश प्रदेश में भी इन फलों की मिठास लोगों की जुंबा में घुल रही है। बताते हैं कि एप्पल बेर टूटना शुरू होते ही घर में नगदी आने लगती है।

बारिश और ओलावृष्टि का कोई असर नहीं
ताइवान पिंक अमरूद और एप्पल बेर की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पेड़ों में फूल आना शुरू होते ही व्यापारियों के हाथ पूरी फसल बेंचकर मोटा मुनाफा कमाया सकता हैं। अन्य फसलों की तरह न ही फसल कटने का इंतजार का करना पड़ता है। वहीं इसकी बागवानी में प्राकृतिक आपदा जैसे बारिश एवं ओलावृष्टि से नुकसान होने का खतरा नहीं रहता है।

19 - 2024-01-09T125729.314

हर साल फसल बोने का झंझट नहीं
पारंपरिक खेती की तरह कश्मीरी एप्पल बेर और अमरूद की खेती में बार-बार फसल बोने का झंझट नहीं रहता। सिर्फ देखरेख और गुड़ाई, सिंचाई करके एवं खाद डालकर बंपर उत्पादन लिया जाता है। पेड़ों की कटाई करने से पौधों में ग्रोथ होता है और लकड़ी मिल जाती है।

महिलाओं बेरोजगारों को गांव में मिलता है काम
अमरूद और एप्पल बेर की हरवेस्टिंग के समय गांव की महिलाओं को फार्म में काम मिल जाता है। एप्पल बेर तोड़ने के लिए महिलाओं को खेत में ही 2 से 3 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भुगतान कर दिया जाता है। जिससे दिन भर में उनकी अच्छी कमाई हो जाती है। जो जितनी मेहनत करता है उसकी मेहनत के हिसाब से उतनी आमदनी हो जाती है। वहीं अमरूद और एप्पल एप्पल बेर की बागवानी में कटाई एवं गुड़ाई के समय श्रमिकों को फार्म में काम मिल जाता है, जिससे उनके लिए परिवार की जीविका चलाने में कुछ आसानी हो जाती है।

19 - 2024-01-09T125858.622

लॉकडाउन को खेती का अवसर मान सीखे गुर
रामसागर पाण्डेय और गंगा सागर पांडेय बताते हैं कि वर्ष 2020 में लॉकडाउन के समय जब देश की अधिकांश आबादी बेरोजगार होकर घरों में बैठी थी उस समय उनके मन में खयाल आया कि क्यों ना धान, गेहूं की फसल से हटकर कुछ ऐसी खेती की जाए जिससे कम लागत में आय में वृद्धि के साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई जा सके। जिसके बाद उन्होंने कृषि से संबंधित विभिन्न यूट्यूब चैनलों पर अच्छी आमदनी वाली खेती के विषय में देखने और समझने के बाद एप्पल बेर और अमरूद की खेती करने का निर्णय लिया। ऑनलाइन एप्पल बेर के पेड़ मंगाकर 4 एकड़ में एप्पल बेर की बाल सिंदूरी किस्म की नेचुरल खेती की शुरुआत की जिसका काफी अच्छा रिजल्ट देखने को मिला। एप्पल बेर की खेती से पहले साल ही लाखों का फायदा हुआ। बताते हैं कि हर साल अप्रैल महीने में एप्पल बेर के पेड़ों की नीचे से कटाई कर देते हैं और 7 महीने में पेड़ फिर से तैयार हो जाते हैं जिनमें नवम्बर माह के पहले सप्ताह से फूल और फल आने लगते हैं। इसके साथ ही वर्ष 2022 में कोलकाता से अमरूद की ताइवान पिंक किस्म के पेड़ और जम्मू कश्मीर से सेब के ऑनलाइन पेंड़ मंगाकर करीब डेढ़ एकड़ में अमरूद और सेब की खेती की शुरुआत की हैं। क्लोन से तैयार किए गए अमरूद के पौधों में 1 वर्ष के अन्दर ही अमरूद पेड़ों में फल आने शुरू हो गए। पेड़ों में जमीन से लेकर ऊपर तक लगे बड़े-बड़े फलों को जो कोई देखता है वह स्तब्ध रह जाता है। वहीं एप्पल बेर में जब फल आते हैं तो पत्तियां कम फल ज्यादा दिखाई देते हैं।

क्षेत्रीय व्यापारियों को दी जाती है रियायत
अमरूद की आम किस्मों की अपेक्षा बाजार में महंगे मूल्य पर बिकने वाले इन स्वादिष्ट, मुलायम एवं कम बीजों वाले अमरूद क्षेत्रीय व्यापारियों को सस्ती दरों पर उपलब्ध करा रहे हैं। ताकी उन्हें भी अच्छा मुनाफा मिल सके, व्यापारियों को क्षेत्र में ही में बड़े आकार के स्वादिष्ट एवं चमकीले ताजे अमरूद मिलने से जहां समय और किराए की बचत होती है वहीं दिन भर में सभी अमरुद बिक जाते हैं। बड़ी मात्रा में फार्म से ही अमरूद और एप्पल बेर बिक जाते हैं। सबसे अच्छी बात है कि अमरूद की ताइवान पिंक किस्म में साल में तीन बार फल आते हैं। हालांकि अमरूद की ताइवान पिंक किस्म सुनकर दूर-दूर से व्यापारी उनके पास आने लगे हैं। इसके साथ ही सेब के पेड़ों में भी फूल और फल आने शुरू हो गए हैं लेकिन पेड़ों के ग्रोथ को देखते हुए अभी फल नहीं ले रहे हैं।

21 - 2024-01-09T130034.023

जैविक खेती से लागत को किया कम
राम सागर पाण्डेय ने बताया की उनके पास 5 हेक्टेयर से अधिक खेती है। जिसमें गोबर की खाद का प्रयोग करने के साथ ही पराली और फसल अवशेष से गड्ढों में कम्पोस्ट खाद तैयार करके खेती जैविक करते हैं। रासायनिक खांदो का प्रयोग न के बराबर कर दिया है, जिससे कम लागत में अच्छा उत्पादन मिल रहा है। खेत में गोबर और कंपोस्ट खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, फसल स्वस्थ रहती है और फल बड़े एवं चमकीले लगते हैं। जिससे बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है।

तकनीकी खेती के गुर सीखने आते हैं छात्र और किसान
रामसागर पांडेय के नेचुरल कृषि सागर फार्म पर बीएससी एजी के छात्रों के साथ ही क्षेत्रीय एवं दूर-दराज के किसान तकनीकी खेती के गुर सीखने के लिए आया करते हैं। अमरूद के पौधे में जमीन से लेकर ऊपर तक लदे बड़े आकार के फलों को देखकर किसान आश्चर्यचकित रह जाते हैं। अमरूद की ताइवान पिंक किस्म का स्वाद ऐसा कि खाने के बाद हर कोई इसका दीवाना हो जाता है। वहीं मीठे स्वादिष्ट एप्पल बेर बाजार में महंगे दामों में बिकते हैं।

ये भी पढ़ें -गोंडा: ई टेंडरिंग में फंसा 18 करोड़ के महर्षि पतंजलि पॉलिटेक्निक केंद्र का संचालन, 12 साल से छात्र छात्राएं कर रहे इंतजार

संबंधित समाचार