रायबरेली: मेरिट, अनुभव व आरक्षण दरकिनार, यहां बस ऐसे ही चल रहा पुलिस विभाग!

Amrit Vichar Network
Published By Sachin Sharma
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आशीष दीक्षित, धर्मेंद्र प्रधान, रायबरेली। दीवारों पर टंगे हुए थे ब्रह्चर के कड़े नियम उसी फ्रेम के पीछे चिड़िया गर्भवती हो जाती है.. दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां रायबरेली पुलिस विभाग पर सटीक बैठती हैं। जहां पुलिस कानून के अनुपालन का दायित्व निभाने के लिए जिम्मेदार मानी जाती है, वही खुद अपने विभागीय नियमावली के विपरीत थानों व पुलिस चौकियों में भार साधकों की तैनाती में जातीय संतुलन बनाने में नाकाम रही है। यही नहीं देश की संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण लागू कर दिया गया है लेकिन पुलिस विभाग में महिला थानेदारों की तैनाती में आरक्षण का अ भी नहीं चलता है।  

पुलिस गाइडलाइन और 2016 में बने पुलिस रूल के मुताबिक जिलों में थानाध्यक्षों और पुलिसकर्मियों की तैनाती में 23 फीसदी का आरक्षण जरूरी है। मतलब कि सामान्य के साथ एससी-एसटी से ताल्लुक रखने वाले पुलिसकर्मियों को थानेदारी और अहम पद मिलने चाहिए लेकिन इस पर कोई अमल नहीं है। रायबरेली जिले की बात की जाए तो यहां पर सरकार चाहे किसी भी दल की हो, पुलिस महकमे में जुगाड़ और सिफारिश से थानेदारी पाने का शगल चलता रहा है।

हाल यह है कि राजनीतिक जोड़ जुगाड़ से चलते जहां पुलिस महकमे का जातीय आरक्षण प्रभावित हो गया है वहीं मेरिट व अनुभव को भी दरकिनार किया जाता रहा है। असल में नए पुलिस अधीक्षक अभिषेक अग्रवाल के आने के बाद विभाग में मनमानी तैनाती को लेकर जिस तरह कागज पलते जा रहे हैं उसने एसपी के कार्यालय से लेकर थानेदार तक हिले हुए हैं। पूर्व के एसपी के कार्यकाल में पुलिस महकमे में बढ़े राजनीतिक दखल के बाद जहां थानों व चौकियों पर मनमाने तरीके से अपने लोगो की पोस्टिंग कराई जाती थी जहां विभाग का कोई नियम कानून लागू नहीं होता था।

पूर्व एसपी के तैनाती के दौरान महकमे के आरक्षण व पुलिसकर्मियों के अनुभव व मेरिट को कभी देखा ही नहीं गया और नेता जी को खुश करने के लिए पुलिसकर्मियों कों तैनाती दे दी जाती थी। गौरतलब है कि विभागीय नियमावली के अनुसार 50 प्रतिशत सामान्य वर्ग के भार साधकों कों तैनाती देने का प्राविधान है, वहीं 49 प्रतिशत में ओबीसी व एससी तथा एक प्रतिशत एसटी के लिए रखा गया था लेकिन इन सबके बावजूद जिले में इस नियमावली के विपरीत थानों व चौकियों पर तैनाती दी गई है।

ऐसे में अब जब नए एसपी आये है तो उनके सामने यह संतुलन बनाना बड़ी चुनौती रहेगी। पूर्व में जिस तरीके से थानोदारों की पोस्टिंग को लेकर जो जोड़ सिफारिश चलती थी क्या उसे खत्म किया जायेगा या फिर ऐसे ही सब कुछ चलता रहेगा। माना जा रहा है कि नए एसपी के आने के बाद से जिले की पुलिस व्यवस्था में सुधार की संभावनाएं बढ़ी हैं।

थानेदारों के जातीय समीकरण पर नजर

 सदर, भदोखर, मिल एरिया, बछरावां, हरचंदपुर, महराजगंज, शिवगढ़, ऊंचाहार, गदागंज, खीरों, लालगंज तथा महिला थानेदार सामान्य वर्ग से हैं जबकि केवल दो थानों पर अनुसूचित जाति और 3 पर अन्य पिछड़ा वर्ग के थानेदार हैं। पुलिस सूत्रों पर यकीन किया जाये तो जिले के 18 थानों पर ज्यादातर थानों में सामान्य वर्ग के पुलिसकर्मियों के पास कमान है, वहीं कुछ थानों पर ही अन्य लोगो कों तैनाती दी जाती है। मौजूदा समय में सदर, भदोखर, बछरावा, ऊंचाहार डलमऊ, खींरो प्रमुख है। इतना ही नहीं पूर्व में जो तैनाती दी जाती थी उसमें कोई मेरिट व अनुभव का भी ख्याल नहीं रखा जाता था।

महिला दरोगा कों भी नही दी जाती तरजीह

महकमे में महिला पुलिस कर्मियों को भी कोई तरजीह नहीं दी जाती रही है, क्योंकि अगर महिलाओं की बात की जाए तो किसी भी थाने य चौकी का प्रभार महिला दरोगा को नहीं दिया गया है। वर्षों पहले जिले में रही महिला दरोगा उमा अग्रवाल को एक बार अतौरा चौकी का प्रभार दिया गया था लेकिन इधर काफी समय से किसी महिला दरोगा को किसी थाना य चौकी का  प्रभार नहीं दिया गया है। हालांकि शासन के निर्देश पर भले ही एसपी ने जगतपुर में महिला दरोगा को चार्ज दिया गया है। उल्लेखनीय है कि सरकार भले ही आधी आबादी को बराबर का अधिकार देने की बात करती है, बावजूद इसके जिले के पुलिस महकमे में इसका असर नहीं दिखाई पड़ रहा है।

पुलिस रूलिंग में 2016 में आरक्षण की संस्तुति के साथ उस पर काम हो रहा है लेकिन अभी भी इसमें बहुत सुधार की जरूरत है। हालांकि प्रदेश के कई जिलों में इसी के मुताबिक थानेदारों और पुलिसकर्मियों की तैनाती है लेकिन जिन जगहों पर नहीं है। उसके लिए पुलिस महकमे के बड़े अधिकारी काम कर रहे हैं। उम्मीद है कि इसके परिणाम सामने आएंगे। 

                                                                                                      बृजलाल, पूर्व डीजीपी/राज्य सभा सदस्य

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