अमेठी: करोड़ों की लागत से बना आबकारी भवन खंडहर में हो गया तब्दील, इंदिरा गांधी के शासनकाल में हुआ था निर्माण
अमेठी। करोड़ों की लागत से बना आबकारी प्रशिक्षण केंद्र का भवन देखरेख के अभाव में अब जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। जिसकी देखरेख न तो जिला प्रशासन ही कर रहा है और न ही सरकार। जिसके चलते 25 वर्ष पूर्व बनाए गए आबकारी प्रशिक्षण केंद्र अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। 80 के दशक में बने आबकारी भवन में पहले गैस प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण दिया जाता था।
जायस के जगदीशपुर रोड़ पर कस्बे से महज दो किलोमीटर दूर मोल्वी खुर्द चौराहे पर 80 के दशक में बने भवन को 16 सितंबर, 1991 को उत्तर प्रदेश के आबकारी तथा परिवहन मंत्री रहे सत्य प्रकाश विकल ने लगभग सात बीघा क्षेत्रफल में फैले आबकारी विभाग के प्रशिक्षण संस्थान का उद्धघाटन किया था। स्थानीय लोगों ने इलाके की तेजी से तरक्की की कल्पना करते हुए अनेक सपने बुन डाले थे।
वहीं बने उक्त खूबसूरत भवन को बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन देखने भी आने लगे थे, लेकिन शायद यही खूबसूरती उसकी राह में ऐसी बाधा बन गई कि देश व प्रदेश की तमाम राजनीतिक उलझनों के चलते विभाग उसे किसी भी उपयोग में नहीं ला पा रहा है। हालत यह है की 25 वर्षो की गुमनामी के बाद उक्त भवन अब जर्जर होने की कगार पर बिना उपयोग के ही पहुंच रहा है।
कभी चौकीदार रहे रामनेवाज ने बताया कि जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब 80 के दशक में भवन का निर्माण कराया गया था। पहले इस भवन में गैस के प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन कुछ ही दिन चले प्रशिक्षण के बाद भवन को 1990 में खाली कर दिया गया था। एक वर्ष इंतजार करने के बाद 1991 में आबकारी विभाग को हैंडओवर कर आबकारी से संबंधित सिपाही, इंस्पेक्टर व एडिशनल रैंक तक के लोगों को प्रशिक्षण देने का काम किया जाने लगा था। आबकारी प्रशिक्षण का कार्य अनवरत 1999 तक चलता रहा।
आबकारी विभाग का प्रशिक्षण केंद्र बंद होने से 1999 के बाद से ही भवन की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा। प्रदेश में वर्ष 2007 में बसपा की सरकार बनते ही पहले तो रायबरेली व सुल्तानपुर की पांच विधान सभाओं को काटकर छत्रपति शाहू जी महराज नगर का गठन किया गया, फिर इस भवन में परिजोनाओं की झड़ी लग गई। बीच-बीच जिला उद्योग विभाग, समाज कल्याण विभाग, जिला सैनिक कल्याण विभाग एवं पुनर्वास के साथ कई कार्यालयों ने आकर अपना-अपना कार्यालय स्थापित किया। लेकिन एक भी कार्यालय इस भवन में लंबे समय तक नहीं चल सका।
इसीलिए देखरेख के अभाव में आज भवन जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। जबकि स्थानीय लोगों ने कई बार शासन प्रशासन का ध्यान इसकी ओर आकृष्ट कराकर इसे विभाग के उपयोग के लिए या अन्य किसी रूप में उपयोग किये जाने की अपील की, लेकिन करोड़ो की लागत के इस भवन को शासन या प्रशासन द्वारा अब तक उपयोग के लायक पता नहीं किन कारणों से नहीं समझा जा रहा है। इसीलिए स्थानीय लोगों ने धीरे-धीरे भवन के कुछ हिस्सों में कब्जा कर लिया है।
यहां के निवासी जितेंद्र सिंह ने बताया कि भवन बनने से यहां की युवा पीढ़ी रोजगार पाने के लिए उत्सुक रही, लेकिन संचालन न होने से स्थानीय लोग मायूस हैं, भवन में किसी भी विभाग कस दफ्तर चल रहा होता तो कम से कम भवन ही सुरक्षित बचा होता।

अधिवक्ता सुरेश पटेल ने कहा कि भवन की देखरेख न होने से एक तरफ जहां भवन अतिक्रमण की चपेट में आ रहा है, वहीं दूसरी ओर मेंटिनेंस न होने से भवन जर्जर होता जा रहा है, वहीं प्रशासन का खौफ न होने के कारण अराजक तत्वों का सुरक्षित अड्डा भी बन गया है।


निवासी अरविंद मोदनवाल ने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव आते ही लंबे लंबे वादे करके चले जाते है, नई नई योजनाओं से लोगों को लुभाने के कार्य करते है, लेकिन कोई भी पुरानी बंद पड़ी योजनाओं को निरन्तर चलाने की बात नहीं करता, कस्बे में आईटीआई प्रशिक्षण केंद्र किराए के जर्जर भवन में चल रहा है, आईटीआई को ही खाली पड़े आबकारी भवन में शिफ्ट कर दिया जाय तो राजस्व बचने के साथ-साथ प्रशिक्षण ले रहे अभ्यर्थियों को सुविधाओं के साथ बैठने की भी उचित व्यवस्था मिल सकेगी।

यहां के निवासी अजय सिंह ने बताया कि कस्बा सहित क्षेत्र की आबादी लगभग साढ़े तीन लाख की है, जिनके इलाज की जिम्मेदारी पीएचसी जायस पर ही निर्भर है, सीएचसी बनाये जाने की प्रक्रिया लंबित है, आबादी के हिसाब से सीएचसी की जरूरत भी है, ऐसे में अगर आबकारी भवन में सीएचसी बना दी जाय तो क्षेत्रीय लोगों को इलाज में और बढ़िया सुविधाएं मिलने की उम्मीद जागेगी।
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