पीलीभीत: संरक्षित PTR में जान की बाजी हार चुके 15 से अधिक बाघ, 9 साल में छह बाघों को आशियाने से होना पड़ा बेघर, जंगल से बाहर निकलने को मजबूर 

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Published By Vishal Singh
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सुनील यादव/ पीलीभीत, अमृत विचार। पीलीभीत टाइगर रिजर्व ने जिन बाघों की बदौलत अंतरराष्ट्रीय पटल पर ख्याति अर्जित की, बदले में अब उन्हीं बाघों को संरक्षण कम और मौतें अधिक मिलीं। पीटीआर के आंकड़े खुद गवाह है। पीटीआर बनने से लेकर अब तक यानी नौ साल में 15 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है। वहीं छह बाघों को अपने ही आशियानों से बेघर होना पड़ा। 

बाघों की इस दुर्दशा का आंकड़ा जिस तेजी से बढ़ रहा है, इससे बाघों के संरक्षण को लेकर चल रही कवायद पर प्रश्नचिन्ह  लगना लाजमी है। हालांकि विशेषज्ञ इसके पीछे क्षेत्रफल के हिसाब से बाघों की संख्या अधिक होना प्रमुख वजह बताते आ रहे हैं। वहीं पूर्व में जिन बाघों की मौतें हुई हैं, उनमें से अधिकांश बाघ की मौत का कारण भले ही स्पष्ट न हुआ हो, मगर हर बाघ की मौत अपने पीछे एक सवाल छोड़ गई। जिसका जवाब वन अफसरों के पास भी नहीं है।

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जनपद में 73 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में फैले पीलीभीत के जंगल को जून 2014 में पीलीभीत टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया था। उस दौरान आनन-फानन में हुई घोषणा का नतीजा यह रहा कि टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण को लेकर जिन संसाधनों की जरुरत थी, आज भी टाइगर रिजर्व प्रशासन उनकी कमी से जूझ रहा है। वर्तमान में पीटीआर में 71 बाघ हैं।

खास बात यह है कि जिस जंगल को बाघों की सुरक्षा को लेकर टाइगर रिजर्व घोषित किया गया, वहीं सुरक्षित स्थान अब उनके लिए कब्रगाह साबित हो रहा है। पीटीआर की भौगोलिक स्थिति के चलते बाघों के जंगल से बाहर निकलने से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। पीटीआर घोषित होने के बाद से लेकर अब 45 इंसान बाघ हमले में अपनी गंवा जा चुके हैं।

ऐसा नहीं है कि इन वर्षों में सिर्फ इंसानों ने ही अपनी जान गंवाई, विभिन्न कारणों से अपने ही घर में नौ साल के भीतर 15 से अधिक बाघों को अपनी जिदंगी से हाथ धोना पड़ा है। हालांकि इनकी मौतों के कारण अलग-अलग पाए गए।

नौ सालों में इन इलाकों में बाघों ने गंवाई जान :

  • 16 अक्टूबर  2014-  महोफ  रेंज में बाघ का शव मिला
  • 23 अप्रैल  2015-  पूरनपुर क्षेत्र की हरदोई ब्रांच नहर में मिला बाघ का शव।
  • 03 मई  2017- माला रेंज के धमेला कुंआ के पास दो नर शावकों के मिले शव।
  • 12 जुलाई  2017- खुटार रेंज के नजदीक हरदोई ब्रांच में मिला बाघ का शव।
  • 29 मार्च  2018- शारदा डैम में मिला बाघ का शव।
  • 11 अप्रैल  2018- बराही रेंज की शारदा नहर में मिला एक शावक का शव।
  • 19 अप्रैल  2018- महोफ रेज में मिला बाघ का शव।
  • 20 मई  2018-  खारजा नहर की पटरी पर मिला बाघ का सड़ा गला शव ।
  • 24 जुलाई  2019- पूरनपुर के मटेहना में ग्रामीण और बाघ के बीच संघर्ष में बाघ की मौत।
  • 14 सितंबर  2019-  दियूरिया रेंज की हरदोई ब्रांच नहर में बाघ का शव मिला।
  • 10 फरवरी  2020- पूरनपुर क्षेत्र में हरदोई ब्रांच नहर के दंदौल पुल के पास मिला बाघ का शव।
  • 03 मई  2020- माला रेंज में रेस्क्यू के बाद हुई बाघ की मौत।
  • 20 मई  2020- महोफ रेंज की कंपार्टमेंट 15 में मिला बाघ का सड़ा गला शव।
  • 23 सितंबर 2020- पूरनपुर क्षेत्र में हरदोई ब्रांच नहर के दंदौल पुल के पास मिला बाघ का शव।

छह बाघों का अपने ही वासस्थलों से टूटा नाता
टाइगर रिजर्व बनने के बाद 15 बाघों को तो अपनी जान गंवानी ही पड़ी,  इसके साथ जंगल से बाहर निकलने की सजा के तौर पर छह बाघों अपने ही आशियानों से बेघर होना पड़ा है। टाइगर रिजर्व के आंकड़ों के मुताबिक जंगल से बाहर निकलने पर 13 बाघों को रेस्क्यू किया गया हे। इसमें सात बाघों को तो पुन: जंगल की आवोहवा में सांस लेने का मौका मिल सका, लेकिन छह बाघों को लखनऊ और कानपुर चिड़ियाघर में शिफ्ट करना पड़ा।

इधर 21 जनवरी को भी एक बाघिन को पीलीभीत रेंज में नगर पंचायत पकड़िया नौगवा के आबादी क्षेत्र के समीप से दोबारा रेस्क्यू किया गया है। फिलहाल यह बाघिन अभी पिंजरे में कैद है। अब यह बाघिन जंगल की आवोहवा में सांस लेगी या फिर इसे भी कहीं कैदखाने में डाला जाएगा। इसका फैसला होना अभी बाकी है।

बढ़ी संख्या तो घटने लगा दायरा
बाघों के जंगल से निकलने के कई कारण है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसमें प्रमुख कारण बाघों की बढ़ती संख्या है। वन्यजीव विशेषज्ञ एवं वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व प्रोजेक्ट हेड पीसी पांडेय के मुताबिक प्रत्येक बाघ का अपना निश्चित दायरा होता है।

पूर्व में एक बाघ का कार्यक्षेत्र 20 किमी होता था, लेकिन 20 किमी में दो से चार बाघों को देखा जा रहा है। इससे बाघों में आपसी संघर्ष बढ़ा है। अधिकांश बाघ इसी वजह से जंगल से बाहर निकल रहे हैं। इसके अलावा भी कई अन्य कारण  है।

वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा सर्वोपरि है। बाघों के संरक्षण को लेकर एनटीसीए की गाइडलाइन के मुताबिक कार्य किए जा रहे हैं। टाइगर कंजर्वेशन प्लान के तहत उनके वासस्थलों को सुरक्षित करने की प्रक्रिया चल रही है। बाघ जंगलों से बाहर न निकले, इस पर काम चल रहा है- नवीन खंडेलवाल, डिप्टी डायरेक्टर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व।

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