पीलीभीत: पौराणिक इलाबांस देवल मंदिर संरक्षित धरोहरों में शुमार, पर्यटन को मिलेगी नई पहचान

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Published By Moazzam Beg
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पीलीभीत, अमृत विचार। बीसलपुर में दियूरिया जंगल के समीप स्थित पौराणिक इलाबांस देवल मंदिर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रहेगा। मंदिर को राज्य पुरातत्व परामर्शदात्री समिति द्वारा संरक्षण में लेने की संस्तुति दे दी गई है। जिसके बाद राज्य पुरातत्व विभाग की निदेशक ने डीएम को पत्र भेजकर पौराणिक स्थल से संबंधित राजस्व अभिलेख उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

ऐतिहासिक विरासतों के सानिध्य में जहां कभी पीलीभीत की संस्कृति फली फूली, आज वहीं विरासतें संरक्षण के अभाव में अतीत के पन्नों में दर्ज होती जा रही है। इन्हीं में से एक हैं तहसील बीसलपुर का प्राचीन इलाबांस देवल मंदिर। यह देवस्थल जनपदवासी ही नहीं बल्कि आसपास के जनपदवासियों के लिए भी प्रमुख आस्था का केंद्र है। इस देव स्थल पर मुख्य मंदिर समेत तीन मंदिर है। 

प्रमुख मंदिर में वन देवी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, जबकि दो अन्य अन्य मंदिरों में प्राचीन मूर्तियों के अलावा शिलाएं मौजूद है। बताते हैं कि देवस्थल की प्रतिमाएं दसवीं शताब्दी के दौरान स्थापित की गई थी। मुख्य मंदिर पर लगी शिलालेख के मुताबिक इस पौराणिक देवस्थल का निर्माण विक्रमी संवत् 1049 में कराया गया था। इस देवस्थल को वन देवी के रूप में पूजने की मान्यता है। 

इसबा

लोध राजपूत समाज के लोग इन्हें अपनी ईष्ट देवी/कुल देवी मानते हैं। यहां वर्ष में एक बार विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें जनपद के अलावा आसपास जनपदों के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं। इधर जनपद की धूल धूसरित हो रही ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर शहर के युवा अधिवक्ता शिवम कश्यप ने दिलचस्पी दिखाई। 

उनके प्रयास के चलते ही अप्रैल 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के आगरा सर्किल की टीम ने मंदिर परिसर का स्थलीय निरीक्षण किया था। निरीक्षण रिपोर्ट विभाग के उत्खनन शाखा के निदेशक को सौंप दी गई, जिसमें उत्खनन की सिफारिश की गई थी, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। करीब चार साल बाद अगस्त 2022 में पुरातत्व विभाग की लखनऊ सर्किल की टीम ने प्राचीन मंदिर का स्थलीय निरीक्षण किया। 

बताते हैं कि इसमें भी उत्खनन को महत्वपूर्ण बताया गया। इधर तमाम सर्वे आदि के बाद अब राज्य पुरातत्व परामर्शदात्री समिति ने इलाबांस देवल मंदिर को संरक्षण में लिए जाने की संस्तुति दी है। राज्य पुरातत्व विभाग ने जिला प्रशासन से देवस्थल को संरक्षण में लिए जाने को लेकर राजस्व अभिलेख उपलब्ध कराने को कहा है। इसको लेकर राज्य पुरातत्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने डीएम को पत्र भेजा है। पत्र में देव स्थल को संरक्षण में दिए जाने की संस्तुति का हवाला देते हुए खसरा-खतौनी, नजरी नक्शा, राजस्व नक्शा, गाटा संख्या एवं रकबा आदि अभिलेख उपलब्ध कराने को कहा गया है।

इपिग्राफिया इंडिका में भी देवस्थल का उल्लेख
भारतीय इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक इपिग्राफिया इंडिका के अंक एक के पेज 75 पर इलाबांस देवल स्थल का उल्लेख है। वर्ष 1829 में अंग्रेजी विद्वान एचएस वुल्डरसन के शोध पर आधारित प्रकाशित लेख के मुतााबिक दक्षिण भारत के छिन्दा राजवंश से संबंध रखने वाले राजा की पत्नी लक्ष्मी ने अपने पति की पराक्रम गाथा को दर्शाते हुए इस धरोहर का निर्माण कराया था। मुख्य मंदिर पर लगी शिलालेख के मुताबिक इस पौराणिक देवस्थल का निर्माण विक्रमी संवत् 1049 में कराया गया था।

हालांकि स्थानीय किंवदंती पर गौर करें तो वर्षों पूर्व एक महात्मा द्वारा इस स्थल पर चबूतरा निर्माण के लिए खुदाई कराई गई थी। खुदाई के दौरान ही वन देवी की प्रतिमा निकली थी। बुजुर्गों के मुताबिक तबसे श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए वनदेवी की आराधना करते आ रहे हैं। यहां आषाढ़ माह में विशाल मेला भी लगता है। इस मेले में स्थानीय श्रद्धालुओं के अलावा आसपास जनपद समेत नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर पूजा अर्चना करते है।

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छह साल के अथक प्रयास के बाद मिली सफलता
इलाबांस देवल मंदिर को संरक्षण को लेकर शहर के युवा अधिवक्ता शिवम कश्यप ने छह साल पहले मुहिम शुरू की थी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। प्रधानमंत्री कार्यालय के दखल के बाद अप्रैल 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग टीम ने निरीक्षण किया था। निरीक्षण रिपोर्ट में उत्खनन की सिफारिश की गई थी। 

वर्ष 2022 में केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के जनपद प्रवास के दौरान भी मैंने उन्हें पूरे प्रकरण से अवगत कराया था। इसी वर्ष पुरातत्व विभाग की टीम ने पुन: स्थलीय निरीक्षण किया था। उस दौरान भी उत्खनन को महत्वपूर्ण बताते हुए मामला राज्य सरकार के पाले में डाल दिया गया। गत वर्ष भी मैंने पुरातत्व विभाग से  जनपद की दस धरोहरों को संरक्षित करने संबंधी पत्राचार किया था। तमाम प्रयासों के बाद अब राज्य सरकार ने ऐतिहासिक इलाबांस देवल को संरक्षित धरोहर की सूची में शामिल करते हुए इससे संबंधित जानकारी जिला प्रशासन से मांगी है।

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