लखनऊ: अभियंताओं को निजीकरण बर्दाश्त नहीं

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लखनऊ, अमृत विचार। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण पर एसोसिएशन की प्रान्तीय कार्यसमिति ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। एसोसिएशन ने सरकार व पावर कार्पोरेशन को एक प्रस्ताव भेजकर यह मांग उठाई कि केस्को की तर्ज पर पूर्वांचल को सुधार की दिशा में हम सभी अभियंता ले जाने के लिए दृढ़ …

लखनऊ, अमृत विचार। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण पर एसोसिएशन की प्रान्तीय कार्यसमिति ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। एसोसिएशन ने सरकार व पावर कार्पोरेशन को एक प्रस्ताव भेजकर यह मांग उठाई कि केस्को की तर्ज पर पूर्वांचल को सुधार की दिशा में हम सभी अभियंता ले जाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उन्होंने कहा कि ऊर्जा मंत्री द्वारा चलाए जा रहे अभियान 15 प्रतिशत एटीएंडसी हानियों को प्राप्त करने के लिए हम संकल्प लेते हैं।

ऐसे में निजीकरण के फैसले पर सरकार पुनर्विचार करे, अन्यथा की स्थिति में एसोसिएशन का यह प्रस्ताव पत्र ही आंदोलन का नोटिस समझा जाए और निजीकरण का कोई भी निर्णय होता है तो पूरे प्रदेश के सभी बिजली निगमों में कार्यरत सभी दलित व पिछड़े वर्ग के अभियन्ता उसी क्षण आंदोलन पर चले जाएंगे। जिसकी जिम्मेदारी सरकार व प्रबंधन की होगी। एसोसिएशन के आंदोलन के ऐलान पर के एक घंटे बाद ही पावर कार्पोरेशन प्रबन्धन ने एसोसिएशन को पत्र लिखकर 3 अक्टूबर को 12 बजे बातचीत के लिए बुलाया है।

वहीं दूसरी ओर पावर आफिसर्स एसोसिएशन के समर्थन में आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति का संयोजक मंडल, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत, आल इंडिया एससीएसटी इम्प्लाइज एसोसिएशन की प्रदेश यूनिट के मण्डलीय सचिव अखिलेश गौतम व डिप्लोमा इन्जीनियर्स स्टूडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन, किसान सभा, एससीएसटी कार्मिक/अधिकारी कल्याण समिति कृषि विभाग, जल संस्थान नगर निगम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संगठन अध्यक्ष शैलेश कुमार धानुक ने पूरा समर्थन देते हुए आर-पार की लड़ाई में योगदान देने का आश्वासन दिया।

पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन अध्यक्ष केबी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, उपाध्यक्ष पीएम प्रभाकर, एसपी सिंह, अति. महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपी केन संगठन सचिव अजय कुमार ने कहा एसोसिएशन का प्रस्ताव पहुंचते ही पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने शनिवार को 12 बजे एसोसिएशन के साथ दो पक्षीय वार्ता का निर्णय लिया है। वहीं दूसरी ओर नेताओं ने स्पष्ट किया कि निजीकरण प्रस्ताव की वापसी से कम पर कोई बात नहीं बनने वाली। इसलिये उप्र सरकार को अविलंब अपने निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए टकराव के रास्ते से बचना चाहिए।

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