लखनऊ: टीबी का संक्रमण और बीमारी में अंतर, प्रीवेंट थेरेपी से थमेगा रोग, जानिये क्या बोले विशेषज्ञ?

Amrit Vichar Network
Published By Sachin Sharma
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लखनऊ, अमृत विचार। भारत में हर साल प्रति लाख लोगों में करीब 185 लोग टीबी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में 245 नए मरीज मिल रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के टीबी मुक्त भारत अभियान को सफल बनाना है तो मरीजों की खोज और उनके इलाज यानी की डिटेक्ट और ट्रीट के नियम के आधार पर चलने के साथ ही हमको प्रीवेंट थेरेपी भी देनी होगी। यह कहना है आगरा स्थित एसएन मेडिकल कॉलेज में रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉक्टर गजेंद्र विक्रम सिंह का।

उन्होंने बताया कि डिटेक्ट और ट्रीटमेंट के प्रयास से महज तीन फ़ीसदी तक ही टीबी के प्रसार में कमी आ रही है।
लेकिन टीबी प्रीवेंट थेरेपी देने से 12 से 13% तक टीबी रोकथाम की दर बढ़ जाएगी। यही वह फार्मूला है जिससे टीवी मुक्त भारत का सपना पूरा हो सकता है।

डॉक्टर गजेंद्र विक्रम सिंह किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत तीन दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में यूपी के 31 प्राइवेट मेडिकल कालेज के चिकित्सक टीबी के बारे में प्रशिक्षण लेने पहुंचे थे। 

इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि टीबी का बैक्टीरिया दो प्रकार से लोगों को बीमार करता है। जिसमें से एक है ड्रग सेंसिटिव टीबी और दूसरा ड्रग रेजिस्टेंस टीबी। उन्होंने कहा कि टीबी का संक्रमण होना अलग बात है और बीमारी होना अलग। टीबी से ग्रसित मरीजों के सीधे संपर्क में रहने वाले करीब 30 फ़ीसदी लोगों को टीबी का संक्रमण होता है। इसमें से करीब 10 फ़ीसदी लोग टीबी बिमारी की चपेट में आते है।

इन लोगों को टीबी बीमारी का ज्यादा खतरा

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी की बीमारी से कुछ लोगों को बहुत सावधान रहना चाहिए। जिसमें से कुपोषित, एचआईवी से संक्रमित, मधुमेह से पीड़ित, शराब और धूम्रपान का सेवन करने वाले लोग शामिल है।

कुपोषित व्यक्ति में 10 गुना एचआईवी संक्रमित में 50 गुना। साथ ही शराब और धूम्रपान करने वाले लोगों को 2.8 गुना टीबी संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ऐसे में डिटेक्ट,ट्रीट के साथ टीबी प्रीवेंट थेरेपी देना बहुत जरूरी है। टीबी प्रीवेंट थेरेपी के दौरान संक्रमित लोगों को दवा दी जाती है। जिससे उनके अंदर मौजूद टीबी का संक्रमण बीमारी का रूप नहीं ले पता है।

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